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कोरोना के दौर में स्वाइन फीवर से बढ़ता आतंक

प्रभाकर मणि तिवारी
६ मई २०२०

पूरा देश फिलहाल कोरोना की चपेट में हैं. लेकिन इसी बीच पूर्वोत्तर राज्य असम में अफ्रीकन स्वाइन फीवर (एएसएफ) की दस्तक ने सरकार के लिए एक नया सिरदर्द पैदा कर दिया है.

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China Afrikanische Schweinepest | Symbolbild Schweine in Shenzhen
तस्वीर: picture-alliance/imagechina/Y. Shuiling

अफ्रीकन स्वाइन फीवर या फ्लू कहे जा रहे इस वायरस के चीन से अरुणाचल प्रदेश होकर राज्य में पहुंचने की बात कही जा रही है. लेकिन हकीकत यह है कि स्वास्थ्य अधिकारी अब भी इस मुद्दे पर एकमत नहीं हैं कि आखिर यह वायरस कहां से और कैसे आया. असम में इस वायरस की चपेट में आकर 28 सौ से ज्यादा से ज्यादा सुअरों की मौत हो चुकी है. असम ने तो सूअर के उत्पादों की खरीद-बिक्री पर पाबंदी लगा ही दी है.

'अफ्रीकी' क्यों कहलाता है ये स्वाइन फ्लू

पड़ोसी मेघालय ने भी असम से सुअरों की खरीद-फरोख्त रोक दी है. असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने पशुपालन व वन विभाग को इस खतरनाक वायरस से निपटने के लिए ठोस योजना बनाने का निर्देश दिया है. एएसएफ का पहला मामला वर्ष 1921 में केन्या और अफ्रीका में सामने आया था. वर्ष 2018 से 2020 के दौरान चीन में 60 फीसदी से ज्यादा पालतू सुअरों की इस वायरस की चपेट में आकर मौत हो चुकी है.

विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड आर्गनाइजेशन फार एनिमल हेल्थ) के मुताबिक, यह बीमारी पालतू और जंगली सुअरों को प्रभावित करती है. यह जीवित या मृत सुअरों और उनके उत्पादों के जरिए तेजी से फैलती है. यह संक्रमण संपर्क में आने वाले कपड़ों, जूतों, वाहनों और दूसरे उपकरणों के जरिए भी फैल सकता है. इसका कोई टीका भी नहीं है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस वायरस के जानवरों से इंसानों में फैलने का कोई खतरा नहीं है. बावजूद इसके इसने आतंक तो फैला ही दिया है. यही वजह है कि राज्य सरकार ने तत्काल प्रभाव से सुअर के मांस औऱ उससे बने उत्पादों की खरीद-बिक्री पर पाबंदी लगा दी है.

असम के पशुपालन मंत्री अतुल बोरा दावा करते हैं, "इस बीमारी का पता इस साल फरवरी के आखिर में चला था. लेकिन यह अरुणाचल प्रदेश से सटे चीन के झियांग प्रांत के एक गांव में बीते साल अप्रैल में शुरू हुई थी. वहीं से यह वायरस अरुणाचल होते हुए राज्य में पहुंचा है.” उन्होंने बताया कि फिलहाल हम सुअरों को सामूहिक तौर पर मारने के बारे में नहीं सोचा जा रहा है. संक्रमित इलाकों के एक किमी दायरे को कंटेनमेंट जोन घोषित कर नमूनों की जांच के अलावा 10 किमी के दायरे में इस संक्रमण पर निगाह रखी जा रही है. उसके बाद ही संक्रमित सुअरों को मारने का फैसला किया जाएगा.

असम से हुई भारत में शुरुआत

बोरा बताते हैं कि बीते साल हुई गिनती के मुताबिक असम में सुअरों की तादाद 21 लाख थी अब बढ़ कर लगभग 30 लाख हो गई थी. भोपाल स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज ने इस वायरस के अफ्रीकन स्वाइन फीवर होने की पुष्टि कर दी है. केंद्र सरकार के मुताबिक यह देश में इस वायरस के संक्रमण का पहला मामला है.

असम सरकार ने यह साफ कर दिया है कि इस वायरस का कोरोना से कोई संबंध नहीं है. पशुपालन निदेशक डॉक्टर पुलिन चंद्र दास कहते हैं, "अब तक मिली जानकारी के मुताबिक चीन ने कुछ मृत सुअरों के शव नदी में फेंक दिए थे. वहां से वे बहते हुए पहले अरुणाचल पहुंचे और उसके बाद असम. इससे पहले काजीरंगा नेशनल पार्क में भी सात मृत सुअर मिले थे.” 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के हवाले से दास बताते हैं कि स्वाइन फ्लू जानवरों से इंसानों में फैल सकता है, लेकिन स्वाइन फीवर से ऐसा कोई खतरा नहीं है. राज्य सरकार ने भी लोगों को इस बात का भरोसा दिया है. लेकिन दूध के जले लोगों के छाछ भी फूंक-फूंक कर पीने की तर्ज पर कोरोना से आतंकित लोगों में अब इस वायरस का आतंक लगातार बढ़ रहा है. खासकर उन लगभग साढ़े तीन सौ गांवों के लोग तो इससे बेहद आतंकित हैं जहां भारी तादाद में सुअरों की मौत हुई है.

संक्रमण रोकने की कोशिशें

इस बीच, मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने एक उच्च-स्तरीय बैठक में परिस्थिति की समीक्षा की है और पशुपालन विभाग को तत्काल जरूरी कदम उठाने का निर्देश दिया है ताकि इस संक्रमण पर अंकुश लगाया जा सके. सोनोवाल ने प्रभावित किसानों के लिए एक आर्थिक पैकेज का भी भरोसा दिया है. सोनोवाल कहते हैं, "फिलहाल हम इस संक्रमण पर अंकुश लगाने की दिशा में काम कर रहे हैं. हमारा मकसद इस वायरस को फैलने से रोकना है. इसी वजह से संक्रमित इलाकों के एक किलोमीटर के दायरे में तमाम सुअरों के नमूनों की जांच की जाएगी. सरकार ने सुअर के मांस की खरीद-बिक्री पर अगले आदेश तक पाबंदी लगा दी है.”

पशु विशेषज्ञों का कहना है कि देश में यह बीमारी नई है. अब तक इसका कोई टीका नहीं है. ऐसे में इसका संक्रमण रोकने के लिए संक्रमित सुअरों को मारने के अलावा कोई चारा नहीं है. डॉक्टर पुलिन चंद्र दास कहते हैं, "इस नए वायरस की वजह से खासकर ग्रामीण इलाके के लोगों में भारी आतंक है. उनको डर है कि कहीं कोरोना की तरह यह वायरस भी इंसानों के लिए जनलेवा नहीं बन जाए.” विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े पैमाने पर जांच और निगरानी के जरिए ही एएसएफ पर अंकुश लगाना संभव है. सरकार के तमाम दावों और प्रयासों के बावजूद राज्य के विभिन्न हिस्सों में सुअरों की मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है.

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