अमेरिका जानता था ब्रेस्ट इम्प्लांट का कच्चा चिट्ठा
२८ दिसम्बर २०११अमेरिका में स्वास्थ्य मंत्रालय के फूड एंड ड्रग एडमिनिसट्रेशन (एफडीए) विभाग ने मई 2000 में पीआईपी कंपनी के एक कारखाने की जांच की, जिससे पता चला की इम्प्लांट्स का माल मिलावटी है. हालांकि यह बात सिलिकॉन नहीं, बल्कि सेलाइन ब्रेस्ट ट्रांसप्लांट के लिए कही गई. एक महीने बाद एफडीए ने पीआईपी को चिट्ठी लिख कर कहा, "आपकी कंपनी के उत्पाद और गुणवत्ता परखने वाली व्यवस्था में बहुत गड़बड़ी पाई गई है." लेकिन एफडीए की चेतावनी का पीआईपी पर कोई फर्क नहीं पड़ा. कंपनी आगे भी अपना उत्पाद बनाती रही.
अब एफडीए की रिपोर्ट का खुलासा होने के बाद से सवाल उठ रहे हैं कि क्या फ्रांस सरकार को इस बारे में कुछ पता नहीं था. एफडीए की प्रवक्ता का कहना है कि वह इस बात को सुनिश्चित नहीं कर सकती कि क्या एफडीए ने अपनी जांच के नतीजे फ्रांस के स्वास्थ्य मंत्रालय से साझा किए थे.
ब्रेस्ट इम्प्लांट बनाने वाली फ्रांस की कंपनी पीआईपी पर आरोप है की उसने घटिया सिलिकॉन का इस्तेमाल किया, जिससे महिलाओं को कई बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है. पीआईपी के इम्प्लांट कई बार टूट जाते हैं और इससे सिलिकॉन शरीर में घुलमिल सकता है. इसके बाद फ्रांस की 30,000 महिलाओं को इन्हें हटवाना पड़ रहा है.
फ्रांस के अलावा पीआईपी के प्रोडक्ट करीब 65 देशों में बेचे गए हैं. दुनिया भर में लाखों महिलाएं इसका इसका इस्तेमाल कर रही हैं. फ्रांस में अब तक 2000 महिलाएं इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करा चुकी हैं. सरकार ने कहा है कि वह सभी 30,000 महिलाओं के इम्प्लांट हटाने का खर्च उठाएगी. वेनेजुएला में भी ऐसे मामलों में सरकार ने खर्च उठाने की बात कही है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि जो महिलाएं इन्हें हटवाना नहीं चाहतीं उन्हें हर छह महीने में जांच करानी होगी.
जर्मनी में भी इस बात पर बहस चल रही है. अब तक सात ब्रेस्ट कैंसर के मामले सामने आ चुके हैं. हालांकि यह पता नहीं चला है कि क्या कैंसर की वजह खराब इम्प्लांट हैं. सरकार ने महिलाओं को डॉक्टर के पास जा कर जांच कराने की हिदायत दी है, लेकिन खर्चा उठाने की अब तक कोई बात नहीं की गई है.
इंटरपोल ने पीआईपी के मालिक जौं क्लोद मास का नाम मोस्ट वांटेंड सूची में डाल दिया है. 72 साल के मास की तस्वीर इंटरपोल की वेबसाइट पर लगा दी गई है. रिपोर्टों के अनुसार मास पीआईपी शुरू करने से पहले कसाई की दुकान चलाते थे.
रिपोर्टः एएफपी, रॉयटर्स/ईशा भाटिया
संपादनः ए जमाल