अब बेचैनी से नतीजे का इंतजार
११ मई २०११अब उनको बेचैनी से इंतजार है तीन दिनों बाद शुक्रवार को आने वाले मतदान के नतीजों का. लेकिन इस दौरान अपना तनाव कम करने के लिए वह विभिन्न तरीकों का सहारा ले रहे हैं. यह दोनों हैं बंगाल के मुख्यमंत्री और सीपीएम के नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य और केंद्रीय रेल मंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी.
राज्य के इतिहास में सबसे लंबे विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान यह दोनों अपनी-अपनी पार्टी के स्टार प्रचारक थे. इन दोनों में काफी समानताएं हैं.
दोनों की छवि बेदाग है. निजी जीवन में कहीं किसी घपले का आरोप नहीं है. राज्य विधानसभा के इस अहम चुनाव में इन दोनों पर अपनी-अपनी पार्टी को पार उतारने का भारी बोझ था. यह चुनाव इन दोनों नेताओं की साख और नाक की लड़ाई बन गया था. अब यह दोनों तनाव कम करने के लिए अलग-अलग तरीकों का सहारा ले रहे हैं. ममता तो आखिरी दौर के मतदान के लिए चुनाव अभियान खत्म होने के कुछ देर बाद ही यहां कालीघाट स्थित अपने आवास पर लौट आई थीं.
घर पहुंचते ही उन्होंने चित्र बनाने के लिए कूची और रंगों का ऑर्डर दिया और उसके बाद अपने टेबलेट पीसी पर रवींद्र संगीत सुनने लगीं. ध्यान रहे कि 9 मई को कविगुरू रवींद्र नाथ टैगोर की 151वीं जयंती थी. इस मौके पर सोमवार को रेलवे की ओर से आयोजित एक समारोह में उन्होंने दर्शक की हैसियत से हिस्सा लिया. अपने विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान ममता ने बीते एक महीने के दौरान पूरे राज्य में रिकार्ड डेढ़ सौ चुनावी रैलियों को संबोधित किया.
अब ममता अपना तनाव कम करने के लिए पेंटिंग्स बना रही हैं. इससे पहले भी उन्होंने अपनी पेंटिंग्स बेच कर चुनाव अभियान के लिए दो करोड़ से ज्यादा की रकम बटोरी थी.
चुनाव अभियान खत्म होने के बाद घर लौटी ममता ने अरसे बाद उस दिन अपनी मां और घर के दूसरे सदस्यों के साथ होटल से मंगाया हुआ खाना साथ बैठ कर खाया. वह चुनावी नतीजों से पहले राजनीति के मुद्दे पर कोई बात नहीं करना चाहतीं.
दूसरी ओर, मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्ट्चार्य आम दिनों की तरह राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग जाने लगे हैं. ममता के मुकाबले उन्होंने बहुत कम रैलियों को ही संबोधित किया. अपने इलाके यादवपुर में चुनाव खत्म होने के बाद उन्होंने माओवादी असर वाले बांकुड़ा, पुरुलिया और पश्चिम मेदिनीपुर में कुछ रैलियों में शिरकत की. दफ्तर भले नियमित जा रहे हों, उनके चेहरे पर तनाव की रेखाएं साफ झलकती हैं.
वह फिलहाल पत्रकारों से बातचीत नहीं कर रहे हैं. बुद्धदेव कहते हैं कि वह चुनावी नतीजों के बाद ही पत्रकारों से बात करेंगे. वैसे राज्य सचिवालय में फिलहाल मुख्यमंत्री के पास कोई काम नहीं है. सबको इन नतीजों का ही इंतजार है. रवींद्र जयंती के मौके पर आयोजित समारोह में चुनावी आचार संहिता की वजह से उन्होंने भी दर्शक की हैसियत से ही शिरकत की. उनका समय दफ्तर, सीपीएम दफ्तर और अपने घर पर बीत रहा है. कलाप्रेमी मुख्यमंत्री ने अपने पसंदीदा कला-संस्कृति परिसर रवींद्र सदन से भी मुंह मोड़ रखा है.
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बुद्धदेव और ममता अच्छी तरह जानते हैं कि इस चुनावी वैतरणी में अपनी-अपनी पार्टी की नैया पार लगाने की जिम्मेवारी उनके कंधों पर ही थी. इसलिए साख और नाक की इस लड़ाई में दोनों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. इनमें से किसकी नाव किनारे लगेगी, यह तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे. लेकिन इन दोनों ने अपनी पार्टियों को जिताने की ईमानदार कोशिश तो की ही है.
रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: एस गौड़