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अफ्रीका को जलवायु की रक्षा के लिए पैसे क्यों नहीं मिल रहा है

नगाला किलियन चिमटोम
२६ मार्च २०२२

अफ्रीकी महाद्वीप जलवायु से जुड़ी वित्तीय मदद के संकल्प को पूरा करने के लिए अमीर देशों पर जोर डाल रहा है. जमीनी स्तर पर अनुभव की कमी से अहम जलवायु अनुकूलन परियोजनाएं रुकी पड़ी हैं.

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अफ्रीका में जलवायु से जुड़ी परियोजनाओं के लिए धन नहीं मिल पा रहा है
अफ्रीका में जलवायु से जुड़ी परियोजनाओं के लिए धन नहीं मिल पा रहा हैतस्वीर: DW

अफ्रीकी महाद्वीप, दक्षिण से लेकर पूरब तक जलवायु परिवर्तन की मार से घिरा है. दक्षिण में चक्रवातों की विपदा है तो पूर्व में बाढ़ और सूखा. वैश्विक ग्रीन हाउस उत्सर्जन में अफ्रीकी भागीदारी न्यूनतम है- महज 3.8%. फिर भी वो उस संकट की एक बड़ी गंभीर कीमत चुका रहा है जिसमें उसका कोई हाथ नहीं.

कई विशेषज्ञ इस बात को मानते हैं कि अफ्रीका को पैसो की मदद बहुत जरूरी है जिससे वो जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के लिहाज से खुद को ढाल सके. एक दशक पहले, अमीर देशों ने 2020 तक इसी मकसद को पूरा करने की खातिर विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर की धनराशि देने का संकल्प किया था.

इस डेडलाइन को दो साल बीत चुके हैं- और विकसित देशों का अनुमान है कि वे 2023 से पहले तो अपना वादा पूरा नहीं कर पाएंगे. उन पर अपना वादा पूरा करने का दबाव लगातार बढ़ रहा है.

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संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के लिए अफ्रीका से जलवायु परिवर्तन समन्वयक रिचर्ड मुनांग ने डीडब्लू को बताया, "हमें ये समझने की जरूरत है कि अफ्रीका पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा तेजी से गरम हो रहा है. खाद्य असुरक्षा की चुनौतियां और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां जिनसे हम आज जूझ रहे हैं वे ना सिर्फ बनी रहेंगी बल्कि अफ्रीका को बहुत जोखिम भरी और दुविधा वाली स्थिति में डालेंगी.”

दो हफ्ते पहले मोजाम्बिक में चक्रवात से बहुत नुकसान हुआ
दो हफ्ते पहले मोजाम्बिक में चक्रवात से बहुत नुकसान हुआतस्वीर: Andre Catueira/EPA-EFE

जरूरतें बढ़ती जा रही हैं

2100 तक विश्व आबादी में अफ्रीकी योगदान 17 फीसदी से बढ़कर 40 फीसदी हो जाने का अनुमान है. इसे देखते हुए जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं के लिए करो या मरो की स्थिति आ गई है. टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एडीजी) पर अपनी गति बनाए रखने के लिए अफ्रीकी महाद्वीप की जद्दोजहद भी जारी है. संयुक्त राष्ट्र के तमाम सदस्य देशों ने 2030 तक गरीबी के खात्मे और जलवायु मामलों में लचीलापन बढ़ाने के लिए 2015 में इन विकास लक्ष्यों को पूरा करने का संकल्प लिया था. उन्हीं के साथ राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) भी शामिल किए गए थे.

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मुनांग बताते हैं कि, "अफ्रीका को एनडीसी पर अमल के लिए दो खरब डॉलर की दरकार है और एसडीजी के लिए 1.2 खरब डॉलर चाहिए होंगे. इसीलिए ये कतई जरूरी है कि जलवायु लचीलापन हासिल करने में अफ्रीका की मदद की जाए.”

हाल की प्राकृतिक विपदाओं की ओर साक्ष्य के तौर पर इशारा करते हुए मुनांग का कहना है कि विश्व बिरादरी को यथाशीघ्र अपने वादों पर अमल करना चाहिए.

वो कहते हैं, "आप देख रहे हैं, मांएं भूखी हैं, फसल बर्बाद हो रही है, लोग बाढ़, सूखे की मार झेल रहे हैं और विस्थापन को विवश हैं...ये सारी वास्तविकताएं जलवायु परिवर्तन के तहत बढ़ने ही वाली हैं.”

इथियोपिया सूखे की मार झेल रहा है
इथियोपिया सूखे की मार झेल रहा हैतस्वीर: Hamar Woreda Government Communication Affairs Office

क्यों नहीं मिलता है पैसा

लेकिन इस पूरी बहस में अफ्रीकी द्वंद्व की सिर्फ आंशिक झलक ही मिलती है. जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण परियोजनाओं के लिए जारी कुछ फंड जब महाद्वीप में पहुंचता है तो अक्सर ये साफ नहीं होता कि उसका ठीक ठीक क्या इस्तेमाल हो रहा है और आखिर उसे हासिल कैसे किया जा सकता है.

कैमरून की वानिकी तकनीशियन और एनजीओ लीडर एडलीन टेंगम कहती हैं कि उन्होंने कई दफा जलवायु के लिए जारी इस पैसे तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहीं.

उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "स्थानीय समुदायों की रोजीरोटी के स्तर में सुधार के जरिए हमारा विचार है बर्बाद इलाकों की पुनर्बहाली. इस किस्म के प्रोजेक्टों के लिए पैसा चाहिए और उसके लिए हमें जूझना पड़ रहा है. हर बार मैं जब प्रोजेक्ट जमा करती हूं, उसे घटिया बता कर खारिज कर दिया जाता है.”

ये अकेली टेंगम की लड़ाई नहीं है. संयुक्त राष्ट्र वन फोरम से जुड़े पीटर गोंडो कहते हैं कि जलवायु का पैसा मिलने में कठिनाई, पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में एक जानी पहचानी समस्या है. वो कहते है कि घूम फिर कर सारा मामला, परियोजनाओं के प्रस्तावों के निरूपण में अनुभव की कमी पे आकर अटक जाता है.

वो कहते हैं, "अभ्यर्थियों को ये दिखाना होता है कि उनके प्रस्तावित प्रोजेक्ट, जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण और अनुकूलन में किस तरह योगदान करते हैं. इस प्रस्तुति में बहुत सारे विस्तृत, सटीक डाटा की जरूरत पड़ती है जिससे ये अनुमान लगाया जा सके कि अगर आप अपना प्रोजेक्ट चालू करते हैं तो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की कटौती में आप कितना योगदान करने वाले हैं. कई देशों में जरूरी दक्षता वाले पर्याप्त जानकार हैं ही नहीं.”

अफ्रीकी देश जलवायु से जुड़ी कई मुसीबतों का सामना कर रहे हैं
अफ्रीकी देश जलवायु से जुड़ी कई मुसीबतों का सामना कर रहे हैंतस्वीर: Messay Teklu/DW

बेहतर भविष्य का प्रशिक्षण

ज्यादा से ज्यादा जलवायु परियोजनाएं हासिल करने और उन्हे लागू करने के लिए अफ्रीकी वन फोरम ने ग्लोबल फॉरेस्ट फाइनेन्सिंग फेसिलिटेशन नेटवर्क (जीएफएफएफएन) के साथ भागीदारी की है. दोनों मिलकर पब्लिक सेक्टर और स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों के लिए, जलवायु कोष और ठोस परियोजनाएं तैयार करने के बारे में प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन करते हैं.

टेंगम ने दोआला में ऐसी ही एक वर्कशॉप में भाग लिया था. वहां उन्हें ना सिर्फ ये जानकारी मिली कि उनके पास किस तरह की फंडिंग के अवसर हैं बल्कि ये भी जाना कि फंड की जरूरतों को पूरा करने वाले प्रोजेक्टों को कैसे ड्राफ्ट करना है. वो कहती हैं कि वो भविष्य के प्रस्तावों को जमा करने के बारे में अब ज्यादा आश्वस्त हुई हैं.

"मैंने वो तरीका सीख लिया है कि जो मुझे समस्या से समाधान की ओर ले जाएगा, हमारे वित्तीय मददगार यही चाहते हैं.”

आखिरकार, इस अभियान का मकसद ये सुनिश्चित करना है कि अफ्रीका को मौजूदा और आगामी अंतरराष्ट्रीय जलवायु संबंधित आर्थिक मदद आसानी से हासिल होती रहे. सेक्टर से जुड़े साझेदारों का कहना है कि उचित वित्तीय सहायता और प्रस्तावों की ड्राफ्टिंग और प्रस्तुति में अनुभव के साथ अफ्रीकी महाद्वीप उत्सर्जन में कमी और जलवायु-अनुकूल भविष्य के रास्ते पर आगे बढ़ सकेगा.