अपने ही हथियार बने भारतीय सेना के दुश्मन
४ मार्च २०१९फरवरी 2010 से लेकर अप्रैल 2017 के बीच भारत की सेनाओं के 20 विमान और हेलिकॉप्टर क्रैश हुए. हादसे का शिकार होने वाले विमानों में अमेरिका से खरीदा गया अत्याधुनिक विमान C-130J हरक्यूलिस भी शामिल है. ऐसे छह विमान 6,000 करोड़ रुपये में अमेरिकी कंपनी बोइंग से खरीदे गए थे. खरीद के चार साल बाद ही उनमें से एक विमान क्रैश हो गया. बिना किसी सैन्य ऑपरेशन के क्रैश होने वाले विमानों में रूस से खरीदा गया कार्गो एंतोनोव AN-32 और सुखोई 30 जैसा अत्याधुनिक लड़ाकू विमान भी शामिल है.
इनके अलावा इस अवधि के दौरान चार मिग-21, चार जैगुआर, दो एमआई-17 हेलिकॉप्टर, दो चीता हेलिकॉप्टर, दो किरण ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट, एक मिराज, एक बीएई सिस्टम हॉक जैसे विमान भी हादसे का शिकार हो गए. इनमें मिग-21 और जैगुआर तो ऐसे लड़ाकू विमान हैं जिन्हें दुनिया की ज्यादातर सेनाएं रिटायर कर चुकी हैं. 1964-65 से लेकर अब तक भारतीय वायुसेना के करीब 400 मिग-21 क्रैश हो चुके हैं. इनमें से ज्यादातर हादसे शांति काल के दौरान हुए हैं.
अब बात युद्ध जैसे माहौल की. 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भी भारतीय वायुसेना के दो मिग क्रैश हुए. मिग-21 को पाकिस्तानी सेना ने निशाना बनाया और मिग-27 इंजन में खराबी की वजह से क्रैश हुआ. कारगिल युद्ध के 20 साल बाद फरवरी 2019 में भारतीय वायुसेना ने एक बार फिर मिग-21 विमानों ने पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों का पीछा किया. इस दौरान भारतीय वायुसेना का एक मिग-21 क्रैश हो गया. पायलट अभिनंदन वर्धमान को पाकिस्तान ने हिरासत में ले लिया. अभिनंदन लौट आए लेकिन करीब 60 साल पुराने डिजायन वाले मिग-21 के टुकड़े पाकिस्तान में बिखरे पड़े हैं.
अमेरिकी अखबार न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय वायुसेना ने अपना विमान ऐसे देश के खिलाफ खोया, जिसकी सेना उसकी आधी और सैन्य बजट एक चौथाई से कम है. न्यू यॉर्क टाइम्स की इस रिपोर्ट से भारत के रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी भी सहमत हैं. बेदी कहते हैं, "भारतीय वायुसेना में 42 स्वाड्रन हैं. फिलहाल इनमें से 30 ही सक्रिय हैं. 2022 तक सक्रिय स्क्वॉड्रनों की संख्या 24 रह जाएगी." एक स्क्वॉड्रन में 16 से 18 लड़ाकू विमान होते हैं.
न्यू यॉर्क टाइम्स के मुताबिक अगर कड़ा युद्ध छिड़ जाए तो भारतीय सेना के पास सिर्फ दस दिन का गोला बारूद है. अखबार के मुताबिक यह आंकड़ा भारत सरकार का अनुमान है. 68 फीसदी सैन्य उपकरण बेहद पुराने हैं, आधिकारिक रूप से इन्हें विटेंज कहा जाता है. संसदीय रक्षा समिति के सदस्य और सांसद गौरव गोगोई ने अमेरिकी अखबार से कहा, "हमारी सेनाओं के पास आधुनिक हथियार नहीं हैं, लेकिन उन्हें 21वीं सदी के सैन्य ऑपरेशन करने पड़ते हैं."
राहुल बेदी के मुताबिक हथियारों के मामले में भारतीय सेना बहुत पिछड़ी हुई है. बेदी कहते हैं, "हाई टेक युद्ध लड़ने के लिए आपको आधुनिक हथियारों की जरूरत पड़ती है. यहां उसकी की भारी कमी है." बेदी के मुताबिक खुद भारतीय सेना इस बात को मानती है कि उसके पास 25 फीसदी आधुनिक औजार हैं. करीब 45 फीसदी हथियार पुराने हो रहे हैं और 30 फीसदी तो पूरी तरह रिटायर होने लायक हैं. हमेशा कल पुर्जों की कमी की शिकायत बनी रहती हैं. बेदी कहते हैं कि वह बीते 30 साल से बिल्कुल यही तंगहाली देख रहे हैं.
इस बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में एके-203 का कारखाना लगाने का एलान किया है. कलाश्निकोव कंपनी की यह असॉल्ट राइफल, इंसास (इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम) की जगह लेगी. 1998 से सेना में शामिल इंसास राइफल का प्रदर्शन बेहद लचर कहा जाता है. भारतीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भी ऐसे कई मौके आए जब सैनिकों की इंसास राइफल जाम हो गई या उसकी मैग्जीन क्रैक हो गई. सैनिकों की बढ़ती नाराजगी के बाद कई यूनिटों ने हर मौसम में भरोसेमंद एके-47 इस्तेमाल करनी शुरू कर दी.
यह पूरी तस्वीर बताती है कि सैन्य बल के मामले में दुनिया की दूसरी बड़ी फौज किस कदर लाचारगी से घिरी है. भारत न तो खुद उन्नत हथियार विकसित कर पाया है, न ही उनकी खरीद के लिए तेज और पारदर्शी प्रक्रिया खोज पाया है. राहुल बेदी के मुताबिक 30 साल पहले भी नौकरशाही इसके लिए जिम्मेदार थी और आज भी है. अत्याधुनिक संघर्ष में सैनिक सिर्फ हिम्मत, मनोबल और जज्बे से लड़ रहे हैं.