अपने ही बच्चों के शिकार बुजुर्ग
१८ जून २०१३भारत के गैर सरकारी संगठन हेल्प एज इंडिया के सर्वे के अनुसार 23 फीसदी बुजुर्ग अत्याचार के शिकार हैं. ज्यादातर मामलों में बुजुर्गों को उनकी बहू सताती है. 39 फीसदी मामलों में बुजुर्गो ने अपनी बदहाली के लिए बहुओं को जिम्मेदार माना है. हेल्प एज इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैथ्यू चेरियन ने डॉयचे वेले को बताया, "सताने के मामले में बेटे भी ज्यादा पीछे नहीं. 38 फीसदी मामलों में उन्हें दोषी पाया गया है." चौंकाने वाली बात यह है कि मां बाप को तंग करने के मामले में खुद की बेटियां भी पीछे नहीं है. छोटे महानगरों में 17 फीसदी बेटियां अपने मां बाप पर जुल्म ढा रही हैं.
मां बाप के साथ मारपीट भी
हेल्प एज इंडिया की सोनाली शर्मा कहती हैं कि अध्ययन में सामने आयी कुछ सच्चाई काफी कड़वी है, “परिस्थितियां इस कदर बदल रही हैं कि बुजुर्गों की दर्द भरी दास्तान सुनकर कानों को यकीन भी न हो. बुजुर्ग अपने ही घर के भीतर असुरक्षित हैं." ताना मारना, उलाहना देना या गाली देना तो आम बात है.
मैथ्यू चेरियन बताते हैं कि बुजुर्गों के साथ मारपीट की शिकायतें भी अब बढ़ने लगी है. उनका कहना है कि "सर्वे में शामिल 39 फीसदी बुजुर्गों को परिवार वालों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है." अत्याचार का शिकार होने वाले बुजुर्गों में 35 फीसदी ऐसे हैं, जिन्हें लगभग रोजाना परिजनों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है. डॉ सुनंदा इनामदार कहती हैं कि घरेलू हिंसा के शिकार ज्यादातर बुजुर्ग तनाव के शिकार हो जाते हैं.
अत्याचार का शिकार होने वालों में से 79 फीसदी के मुताबिक, उन्हें लगातार अपमानित किया जाता है. 76 फीसदी को अक्सर बिना बात के गालियां और उलाहना सुनने को मिलती हैं. सर्वे में शामिल 69 फीसदी बुजुर्गों का कहना है कि उनकी अवहेलना की जाती है. उनकी जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया जाता.
डॉ सुनंदा को लगता है कि तेजी से आगे बढ़ते युवाओं के लिए परंपरा, मूल्य या संस्कृति निर्जीव शब्द हैं और बाधक भी. वे आगे कहती हैं "अगर मां-बाप बच्चों को बोझ लगने लगे है, तो इसके लिए कुछ हद तक मां-बाप खुद भी जिम्मेदार हैं. क्योंकि उन्हीं की परवरिश में बच्चा परंपराओं से जुड़ता या दूर होता है."
छोटे-बड़े सभी शहरों में
बुजुर्गों के प्रति बढती असंवेदना के लिए सिर्फ देश के बड़े महानगर ही जिम्मेदार नहीं हैं. यह प्रवृति छोटे शहरों में भी दिखाई देने लगी है. मैथ्यू चेरियन कहते हैं, "बुजुर्गों के प्रति संवेदनहीनता देश के छोटे-बड़े सभी शहरों में दिखाई देती है. यह प्रवृति देश के उत्तर-दक्षिण और पूरब-पश्चिम हर जगह पाई जा रही है."
बुजुर्गो पर अत्याचार लिहाज से देश के 24 शहरों में तमिलनाडु का मदुरई सबसे ऊपर है, जबकि उत्तर प्रदेश का कानपुर का नंबर दूसरा है. मदुरई में 63 फीसदी और कानपुर के 60 फीसदी बुजुर्ग अत्याचार का शिकार हो रहे हैं.
बड़े महानगरों में हैदराबाद इस कुख्यात सूची में पहले स्थान पर है जहां 37.5 फीसदी बुजुर्गों को अपने बच्चों से शिकायत है. 28 फीसदी के साथ कोलकाता दूसरे, 20 फीसदी के साथ दिल्ली तीसरे स्थान पर है. मुंबई का स्थान चौथा हैं यहां केवल 11.43 फीसदी बुजुर्गों ने अत्याचार होने की बात स्वीकार की है जबकि चेन्नई में सबसे कम 9.64 फीसदी बुजुर्गों को शिकायत है.
मैथ्यू चेरियन का कहना है कि बड़े शहरों के बुजुर्ग अपना दर्द सार्वजानिक नहीं करना चाहते. मुंह खोलने पर परेशानी और बढ़ने की आशंका के चलते वो चुप रहना पसंद करते हैं. दूसरे बदनामी का डर भी बना रहता है.
संपत्ति और विवाद
संपत्ति विवाद के चलते भी बुजुर्गों पर अत्याचार हो रहे हैं. मीडिया में आये दिन बुजुर्गों को अपने ही घर में कैद किये जाने या फिर घर से बेदखल किये जाने की खबरें आती रहती है. बुजुर्ग महिलाओं के साथ हो रहे घरेलू हिंसा मामले में ज्यादातर पारिवारिक संपत्ति ही कारण बन रहे हैं. अदालत को भी बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए विशेष निर्देश देने पड़ रहे हैं. ऎसे ही एक मामले में जोधपुर की अदालत ने पिछले दिनों एक बुजुर्ग महिला को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए घर में सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश दिए.
कानून नहीं चाहते
माता-पिता के संरक्षण के लिए कानून भी बने हुए हैं. ऐसा ही एक कानून है, 'माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का रख-रखाव व कल्याण अधिनियम-2007'. इसमें बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल के प्रावधान है. वृद्धावस्था से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए यह एक ऐतिहासिक कानून है. हेल्प एज इंडिया की सोनाली शर्मा कहती हैं कि जानकारी का अभाव और बदनामी के डर चलते बुजुर्ग खुद ही कानून का सहारा लेने में हिचकते हैं. कई मामलों में बुजुर्ग अपने बच्चों को इस कदर प्यार करते हैं कि उनकी प्रताड़ना भी खामोशी से सह लेते हैं.
मैथ्यू चेरियन का मानना है कि अकेले कानून से कुछ नहीं होगा. बच्चों में शुरू से ही संस्कार के बीज बोने पडेंगे. हमारी नई पीढ़ी को बचपन से ही बुजुर्गो के प्रति संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है. साथ ही बुजुर्गो को आर्थिक रूप से सबल बनाने के विकल्पों पर भी ध्यान देना होगा.
रिपोर्ट: विश्वरत्न, मुंबई
संपादनः आभा मोंढे