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समाज

कोरोना वॉरियर बने लोगों का जज्बा देखने लायक

२९ मई २०२०

दिल्ली की इमराना शैफी, रोहतास की सीता यादव, लखनऊ के मुजीबुल्लाह और फिल्म अभिनेता सोनू सूद ये लोग एक दूसरे को नहीं जानते. कोरोना से जंग में इनके काम ने इन्हें एक कतार में ला खड़ा किया है.

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Sonu Sood indischer Schauspieler
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Jaiswal

कोरोना संकट के इस दौर में जहां स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी और दूसरे पेशों से जुड़े लोग कोरोना वॉरियर्स के तौर पर सेवा की मिसाल पेश कर रहे हैं वहीं तमाम लोग ऐसे भी हैं जो स्वेच्छा से इस संक्रमण से निपटने और संक्रमण की वजह से परेशानी में आए लोगों की आगे बढ़कर मदद कर रहे हैं.

देश के तमाम राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए ट्रेनों, बसों और अन्य साधनों के बावजूद बड़ी संख्या में मजदूर पैदल और साइकिल से चलने को मजबूर हैं. इन्हीं परिस्थितियों में एक ऐसी तस्वीर भी सामने आई जिसने ना सिर्फ 180 मजदूरों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी बल्कि लोगों के सामने मानवीय संवेदना का एक बेहतरीन नमूना पेश किया.

हवाई जहाज में मजदूर

गुरुवार को झारखंड की राजधानी रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर हवाई चप्पल पहले मजदूर जब एयरपोर्ट से बाहर निकल रहे थे तो उनकी खुशी देखने लायक थी. ये मजदूर मुंबई से एक विशेष चार्टर विमान से रांची आए थे. विमान में 180 लोग थे और ये मजदूर थे. इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.

इन लोगों को विशेष विमान से रांची भेजने का खर्च बेंगलुरु की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कुछ पुराने छात्रों ने उठाया था. हालांकि रांची पहुंचने के बाद स्वास्थ्य जांच, खाने का पैकेट देना और लोगों को एअरपोर्ट से उनके घरों तक पहुंचाने का काम झारखंड सरकार की ओर से किया गया.

कोरोना ने बदला भारत की पुलिस को

इस हवाई जहाज में सवार लोगों में कोई राज मिस्त्री का काम करता है तो कोई सिलाई का. बहुत सी महिलाएं घरों में काम करती हैं. इन लोगों का कहना था कि लॉकडाउन के बाद सभी की आमदनी बंद हो गई थी और मुंबई में रहने का कोई ठिकाना और खाने का कोई साधन नहीं था.

यात्रियों ने मीडिया से बातचीत में बताया कि इसी दौरान कुछ लोगों ने संपर्क किया और कहा कि उन्हें हवाई जहाज से घर भेजा जाएगा तो मजदूर हैरान रह गए.  गुरुवार को उनका सपना साकार भी हो गया. ये सभी मजदूर न सिर्फ पहली बार हवाई जहाज में बैठे थे बल्कि कई ने तो पहली बार इतनी नजदीक से हवाई जहाज देखा भी था.

लखनऊ के मुजीबुल्लाह

लखनऊ में अस्सी साल के मुजीबुल्लाह पेशे से कुली हैं लेकिन कुली होने के बावजूद वो एक कोरोना वॉरियर का फर्ज निभा रहे हैं. मुजीबुल्लाह उन मजदूरों का सामान प्लेटफॉर्म से बाहर पहुंचाने में मदद कर रहे हैं जो श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से लखनऊ स्टेशन पर उतर रहे हैं.

मुजीबुल्लाह बताते हैं कि वो 1970 से इसी स्टेशन पर कुली का काम कर रहे हैं. वो कहते हैं, "मेरे पिता भी यहीं कुली का काम करते थे और मैंने भी इसी स्टेशन पर अपने पचास साल गुजार दिए हैं. लॉकडाउन के चलते काम बंद था. लेकिन जब स्पेशल ट्रेनें आने लगीं और लोगों को परेशानी में देखा तो मुझे लगा कि मैं इनकी और तो कुछ मदद नहीं कर सकता लेकिन कम से कम इनका कुछ बोझ तो हल्का कर ही सकता हूं. बस, मैंने मदद करनी शुरू कर दी. इनसे कोई पैसा नहीं ले रहा हूं. पैसा जितना कमाना था कमा चुका, अब इंसानियत कमाने की कोशिश में हूं.”

मुजीबुल्लाह भले ही अस्सी साल के हैं लेकिन इस काम से उन्हें इतनी खुशी मिल रही है कि छह किलोमीटर दूर अपने घर से वो रोज पैदल आते हैं और पैदल जाते हैं. इसके अलावा वो घंटों यहां लोगों की मदद के लिए तैयार रहते हैं. मुजीब बताते हैं कि कुछ यात्री पैसा देने की कोशिश भी करते हैं तो मैं उन्हें साफ मना कर देता हूं.

अभिनेता सोनू सूद

बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद भी इस मुश्किल समय में सैकड़ों लोगों के लिए मसीहा बनकर सामने आए हैं और बड़ी संख्या में महाराष्ट्र में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाया है. उनके इस काम की सोशल मीडिया पर भी जमकर चर्चा हुई और सोनू सूद ने मजबूर, बेबस और असहाय लोगों की ट्विटर पर ही बड़े मजेदार तरीके से उनकी सहायता की.

महाराष्ट्र में फंसे बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के लिए सोनू सूद ने ना सिर्फ बसों का इंतजाम किया बल्कि उनके लिए खाने-पीने की सुविधा मुहैया कराने के साथ-साथ संबंधित राज्यों से इन्हें पहुंचाने की अनुमति भी अपने स्तर से ही ली.

सोनू सूद ने ट्विटर के अलावा मदद के लिए वॉट्सऐप नंबर भी दे रखा है. उन्हें हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूरों के संदेश मिल रहे हैं और वो सबकी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा है, "आपके संदेश हमें इस रफ्तार से मिल रहें हैं. मैं और मेरी टीम पूरी कोशिश कर रहें हैं कि हर किसी को मदद पहुंचे! लेकिन अगर इसमें हम कुछ मैसेज को मिस कर दें, तो उसके लिए मुझे क्षमा कीजिएगा.”

यही नहीं, सोनू सूद ने केरल की एक फैक्ट्री में फंसी 177 लड़कियों को एयरलिफ्ट भी कराया है. मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक, लड़कियों के फंसे होने की जानकारी सोनू सूद को भुवनेश्वर में रह रहे उनके एक दोस्त ने दी थी. सोनू सूद ने इसके लिए सरकार से सभी जरूरी अनुमति ली ताकि कोच्चि और भुवनेश्वर एयरपोर्ट को खोला जा सके. इसके बाद उन्होंने बेंगलुरु से एक स्पेशल एयरक्राफ्ट मंगाकर लड़कियों को भुवनेश्वर में उनके घरों तक पहुंचाया.

दिल्ली की इमराना सैफी

मिलिए कोरोना हीरो देवदत्त से

दिल्ली की इमराना सैफी भी ऐसी ही कोरोना वॉरियर हैं जो स्वेच्छा से धार्मिक इमारतों के आस-पास और गलियों में साफ-सफाई का बीड़ा उठाए हुए हैं. इमराना और उनकी कुछ साथी दिल्ली के मंदिरों, चर्चों, गुरुद्वारों और मस्जिदों में सैनिटाइजर टैंक लेकर छिड़काव करती दिखती हैं. ऐसे समय में जबकि पूरा देश कोरोना संकट से संघर्ष कर रहा है, इमराना और उनकी टीम सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए हर धार्मिक इमारत को सैनिटाइज करने की जिम्मेदारी निभा रही है.

इमराना हर दिन किसी एक इलाके में धार्मिक स्थलों का दौरा करती हैं. उनके हाथ में सैनेटाइजर टैंक रहता है और वो चुपचाप इन जगहों पर उससे छिड़काव करती हैं. इमराना बताती हैं कि वो मंदिरों, चर्चों, गुरुद्वारों और मस्जिदों में सैनेटाइजर टैंक लेकर छिड़काव करती हैं. उनका और उनकी टीम की दूसरी महिलाओं का ये काम रमजान के दिनों में भी जारी रहा.

इमराना सैफी ने सिर्फ सातवीं तक पढ़ाई की है लेकिन कोरोना संक्रमण से बचने के लिए साफ-सफाई और सैनिटाइजेशन के महत्व को बखूबी समझती हैं. वो कहती हैं कि उन्होंने फिलहाल तीन महिलाओं की टीम बनाई है जो कि संक्रमण को रोकने की कोशिशों में लगी है. ये लोग अब तक जाफराबाद, चांदबाग, नेहरू विहार, शिव विहार, बाबू नगर जैसे इलाकों की संकरी गलियों में जाकर उन्हें सैनिटाइज कर चुकी हैं.

रोहतास की सीता यादव

बिहार में रोहतास जिले की कोचस प्रखंड स्थित नरवर पंचायत की मुखिया सीता यादव भी जनसेवा में लगी हुई हैं. जब गांव में सैनिटाइजेशन के लिए मजदूर नहीं मिले तो इस काम को उन्होंने खुद करने का संकल्प लिया. करीब एक सप्ताह तक पीठ पर सैनिटाइजर का डिब्‍बा बांधकर उन्होंने अकेले ही पूरे गांव को सैनिटाइज कर दिया.

सीता यादव कहती हैं कि वो रोज सुबह अपने चेहरे पर मास्क लगाकर, हाथों में दस्ताने पहन कर और पीठ पर सैनिटाइजर का डिब्बा बांधकर निकल पड़ती थीं और गांव भर में हर जगह को वो अब तक कई बार सैनिटाइज कर चुकी हैं.

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