बुनियादी व्यवस्था के लिए तरस रही है मायानगरी मुंबई
२६ जुलाई २०१९हाल में भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई कभी शहर में पानी भरने के चलते, तो कभी किसी जानलेवा हादसे के चलते खबरों में बनी रही. 22 जुलाई को मुंबई के पॉश इलाकों में शुमार बांद्रा की बहुमंजिला इमारत में आग लग गई. इमारत में राज्य सरकार की टेलीकॉम कंपनी एमटीएनएल के अधिकारी रहते थे. हालांकि फायर डिपार्टमेंट की मुस्तैदी के चलते इस घटना में जान का कोई नुकसान नहीं हुआ. इस घटना के एक दिन पहले ही मुंबई के ताज होटल के पास खड़ी एक इमारत में आग लगने के कारण एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.
जब भारी बारिश के चलते मुंबई में जगह-जगह पानी भरा हुआ था, उस वक्त भी डोंगरी के इलाके में दीवार गिरने के चलते 13 लोगों की जान चली गई. ये सारे हादसे मुंबई के पुराने पड़ते बुनियादी ढांचे पर सवाल खड़े कर रहे हैं. यहां सवाल मुंबई में रहने वाली दो करोड़ से ज्यादा आबादी का भी है, जो इस ढांचे के बीच जिंदगी गुजार रहे हैं.
खराब योजना और तेजी से बढ़ता शहर
पिछले कुछ दशकों से मुंबई बहुत तेजी से बड़ा है. शहर में ऊंची इमारतें यहां रहने वाले लोगों की जरूरतें पूरा कर रही हैं. शहर अब दुनिया का एक वैश्विक आर्थिक हब बनने को तैयार है. इसके बावजूद आर्थिक प्रगति की राह पर दौड़ती मुंबई हर साल बारिश में अपनी रफ्तार थामने को मजबूर हो जाती है. इसके साथ ही निर्माण कार्य और कचरे के चलते पानी जमने की समस्या यहां अब आम बात है.
जानकार मानते हैं कि खराब योजना और सुरक्षा को लेकर अपनाया गया ढुलमुल रवैया भी शहर की इमारतों पर जोखिम बढ़ा रहा है. रियल एस्टेट डेवलपर मानस जैन ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "जगह की कमी से जूझती मुंबई में वर्टिकल ग्रोथ ही एकमात्र रास्ता है. जितना ज्यादा फ्लोर स्पेस इंडेक्स होगा उतना बेहतर वर्टिकल डेवलपमेंट होगा. यह तरीका बुनियादी ढांचों को मजूबत करेगा." जैन यह भी कहते हैं कि इस पर बिल्कुल सही तरीके से योजना बनाई जानी चाहिए.
फ्लोर स्पेस इंडेक्स, कुल बिल्ड अप एरिया मतलब जिस हिस्से पर निर्माण किया गया है और कुल प्लॉट के क्षेत्रफल का अनुपात होता है. वर्टिकल डेवलपमेंट से मतलब पहले कम धीरे और परंपरागत तरीके से शुरू कर ऊंचाई पर जाना होता है. हालांकि मुंबई की नगर निगम इकाइयां वर्टिकल ग्रोथ को पानी, सीवेज और ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिहाज से सबसे बड़ी समस्या मानती हैं.
मुंबई के असिस्टेंट म्युनिसिपल कमिश्नर देवीदास क्षीरसागर ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "मुंबई के सामने काफी चुनौतियां हैं. मसलन पिछले पांच सालों में आग और बिल्डिंग गिरने की घटनाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं. हम लगातार इन समस्याओं से निपटने के लिए काम कर रहे हैं. "
शहर को चाहिए समाधान
विशेषज्ञ मानते हैं कि अव्यवस्थित और बेतरतीब तरीके से बनाई गई योजनाओं ने मुंबई को प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के प्रति संवेदनशील बना दिया है. सिटी प्लानर रवि आहूजा कहते हैं, "जब बारिश में मुंबई में पानी भर जाता है तो हर साल निचले इलाकों में लोगों की जान जाती है. लोग मुंबई के लोगों के हौसलों की बात करते हैं लेकिन ये काफी नहीं है."
विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी का नतीजा खराब योजनाओं के रूप में नजर आता है. प्रशासनिक समस्याओं ने मुंबई में जल निकासी को बदतर बना दिया है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक शहर की 30 फीसदी इमारतें फायर डिपार्टमेंट की ओर से असुरक्षित करार दी जा चुकी हैं. वहीं 50 साल से भी अधिक पुरानी शहर की 15 हजार बिल्डिंगों पर ढहने का खतरा मंडरा रहा है.
पिछले साल मुंबई में करीब 3,724 आग के मामले दर्ज किए गए थे. दिसंबर 2017 में एक बियर बार में लगी आग में करीब 14 लोग मारे गए थे. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक दशक में ऐसे करीब 49 हजार मामले सामने आए जिसमे अब तक 600 लोगों की जान जा चुकी है. डिप्टी कमिश्नर मंजुनाथ सिंघे कहते हैं, "मौजदा इमारतों और जगहों का सही ढंग से ऑडिट नहीं हुआ है. कुछ बिल्डर अब भी सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर रहे हैं. जब तक इस पर कठोर कदम नहीं उठाए जाते परिणाम घातक रहेंगे."