अंतरिक्ष में मलबा
१ अप्रैल २००९वो टुकड़ा तेज़ी से अंतरिक्ष में घूम रहा है. उसकी गति लगभग 30 हज़ार किलेमीटर प्रति घंटे की है. स्टेशन के अंतरिक्ष यात्री इस उड़ते हुए टुकड़े को देखते ही स्टेशन से लगे सोयुज़ कैपसूल में चले जाते हैं. ख़तरे की स्थिति में सोयुज़ कैपसूल को आईएसएस से अलग किया जा सकता है. लेकिन, सौभाग्य से टुकड़ा चार किलोमीटर की दूरी से आईएसएस की बगल से निकल जाता है.
यह टुकड़ा कहां से आया? जवाब है, अंतरिक्ष में फैले कूड़े से. बड़े दिनों से वैज्ञानिक अंतरिक्ष में पिछले मिशनों द्वारा छोड़े गए कूड़े पर लोगों का ध्यान दिलाने की कोशिश करते रहे हैं. उनका कहना है कि छोटे से छोटे टुकड़ों की भी गतिज ऊर्जा बहुत ज़्यादा होती है, जिसका मतलब है कि कुछेक मिलीमीटर बड़े टुकड़े भी सैटेलाईटों को भारी क्षति पहुंचा सकते हैं और कई सेंटीमीटर बड़े टुकड़े तो पूरे स्पेस स्टेशन या शटलयान को हिला कर रख सकते हैं.
यह कूड़ा कैसा होता है और कहां से आता है? वह बना होता है पुराने सैटेलाईटों में धमाके से, उन्हें अंतरिक्ष में पहुंचाना वाले रॉकेटों के बचे खुचे पुर्ज़ों से, रॉकेट को पृथ्वी से भेजने के लिए इस्तेमाल किये गये ईंधन या बैट्री के हिस्सों से और पानी के ऐसे कणों से, जो अंतरिक्ष की भारी ठंड में बर्फ में बदल गए हैं. ऐसे हज़ारों बेकार टुकड़े पिछली अंतरिक्ष यात्राओं के गवाह हैं. धरती को तो हमने गंदा कर ही दिया है, अब अंतरिक्ष भी हमारे कूड़े से भर रहा है.
यह टुकड़े अब हम मनुष्यों के लिए ही ख़तरनाक साबित हो रहे हैं. कई बार तो यह टुकड़े इतने छोटे होते हैं कि टेलीस्कोप से दिखाई भी नहीं देते. अंतरिक्ष से कूड़ा हटाने पर शोध करने वाले नासा के मार्क मैटनी का मानना है कि जब कोई सैटेलाईट टूटता है, तो हमें ख़बर मिल जाती है कि उसके कितने टुकड़े बने हैं और किधर घूम रहे हैं. स्पेस सर्वेलंस नेटवर्क इन टुकड़ों को आसानी से माप सकता है. ये टुकड़े 10 सेंटिमीटर के करीब होते हैं. लेकिन परेशानी इसलिए है कि अंतरिक्ष में ऐसे कई टुकड़े या कण हैं, जो इससे भी छोटे हैं और जो हमारे स्पेस स्टेशन या शटलयान को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं. एक सेंटिमीटर जितना बड़ा टुकड़ा भी अगर अंतरिक्ष में घूम रहा है, तो वह हमारे सैटेलाईट के लिए घातक हो सकता है.
मैटनी को खास चिंता हो रही है क्योंकि मई में शटल एटलांटिस को हबल टेलिस्कोप की मरम्मत के लिए भेजा जायेगा. हबल आई एस एस से दुगुनी ऊंचाई पर है, मतलब, टुकड़ों से भिड़ने की संभावना और बढ़ जाती है. फरवरी में अमेरिकी सैटेलाईट इरीडियम रूस के कॉस्मॉस सैटेलाईट से टकरा गया था. यानी कूड़े की मात्रा समय के साथ कम नहीं, ज़्यादा हो गई है. मैटनी कहते हैं, "हम इस टक्कर से निकले टुकड़ों और कणों के बादल का आकार मापने की कोशिश कर रहे हैं. अप्रैल में हम सब जानकारी हासिल करके सोचेंगे कि किस तरह हम अटलांटिस को किसी भी ख़तरे के लिए तैयार कर सकते हैं."
जर्मनी की ब्राउनश्वाइग यूनिवर्सिटी के कार्स्टेन वीडेमान के तथ्य मैटनी की आशंकाओं की पुष्टि करते हैं. लेकिन, साथ ही इनका मानना है कि इससे बचने का एक ही तरीका है, कूड़े को जमा होने ही न देना:"जब टुकड़े पृथ्वी के पास भ्रमण कर रहे हों, तो टकराने की संभावना बढ़ जाती है. इस समस्या को तभी सुलझाया जा सकता है, जब हम कूड़े को बनने ही न दें. मतलब जहां धमाके हो सकते हैं, वैसी परिस्थितियों को ही पनपने न दें. यानी बैटरी जैसी चीज़ों से चार्ज निकालने होंगे और सैटेलाईट को चलाने वाले ईंधन को भी किसी तरह ख़त्म करना होगा ताकि पुराने सैटेलाईटों में धमाके न हों."
अगर इसके बावजूद ध्वस्त उपग्रहों और रॉकेटों के टुकड़े अंतरिक्ष में बचे रहे, तो स्मार्ट ओलेव इन्हे हटाने में मदद करेगा. स्मार्ट ओलेव यानी ऑर्बिटल लाईफ एक्स्टेंशन वेहिकल एक ऐसी मशीन है, जिसे पृथ्वी से अंतरिक्ष में इन सारे टुकड़ों को जमा करने के लिए भेजा जा सकेगा. जर्मन अंतरिक्ष कंपनी कायज़र थ्रेडे , स्पेन की सेनर और स्वीडेन की स्पेस कॉरपोरेशन ने इसे विकसित किया है. तकनीकी रूप से ओलेव एक रोबोट है, जो यूरोपीय टेलिकम्यूनिकेशन के सैटेलाईट यूटेलसैट को वापस अपनी कक्षा में लाने जा रहा है, ताकि भविष्य में वह अन्य सैटेलाईटों की तरह नए स्पेस मिशन के लिए परेशानी न खड़ी करे.
रिपोर्ट- डॉयचे वेले, मानसी गोपालकृष्णन
संपादन- एस जोशी