चिट्ठी अंग्रेजी में, तो जवाब हिंदी में क्यों
२० अगस्त २०२१मद्रास हाई कोर्ट की मदुरई पीठ का यह फैसला तमिल नाडु के एक सांसद द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर आया. सांसद एस वेंकटेश ने अपनी याचिका में बताया कि उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय को अंग्रेजी में एक पत्र लिख कर निवेदन किया था कि सरकार के ग्रुप बी और ग्रुप सी श्रेणियों में 780 खाली पड़े पदों को भरने के लिए पुदुचेरी में कम से कम एक परीक्षा केंद्र बनाया जाए.
वेंकटेश ने अदालत को बताया कि एक महीने बाद जब मंत्रालय ने उनके पत्र का जवाब भेजा तो वो हिंदी में था. सांसद का कहना है कि वो इस वजह से समझ ही नहीं पाए कि मंत्रालय क्या कहना चाह रहा है. याचिका पर सुनवाई करने के बाद अदालत ने केंद्र के आचरण को गलत ठहराया और कहा कि जब चिट्ठी अंग्रेजी में लिखी गई थी तो केंद्र को चिट्ठी का जवाब भी अंग्रेजी में ही देना चाहिए था.
राज्यों के अधिकार
जस्टिस एन किरूबाकरण और जस्टिस एम दुरईस्वामी की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 350 के तहत किसी को भी उन सभी भाषाओं में सरकार को ज्ञापन देने का अधिकार है जिन्हें केंद्र और राज्य सरकारें मानती हों. पीठ ने आगे कहा कि कोई भी राज्य सरकार किसी भी भाषा में केंद्र को लिखे, केंद्र को उसी भाषा में जवाब देना चाहिए.
पीठ ने कहा कि यह आधिकारिक भाषाएं अधिनियम के अनुकूल भी है. अदालत ने सरकार को याद दिलाया कि अधिनियम के भाग तीन के तहत आधिकारिक कामों के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों का इस्तेमाल करना चाहिए. भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है. संविधान की धारा 343 देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा का दर्जा जरूर देती है.
भाषाओं को सम्मान
हालांकि संविधान राज्यों को अपनी अपनी आधिकारिक भाषा चुनने का अधिकार देता है. इसके अलावा आधिकारिक भाषाएं अधिनियम का भाग तीन स्पष्ट रूप से कहता है कि अगर किसी राज्य ने हिंदी को अपनी आधिकारिक भाषा नहीं बनाया है तो उसके और केंद्र सरकार के बीच पत्राचार अंग्रेजी में होना चाहिए.
भारत में कुल मिलाकर 22 भाषाओं को आधिकारिक मान्यता प्राप्त है. इनमें हिंदी के अलावा असमिया, बांगला, बोडो, डोगरी, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, मैथिलि, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू शामिल हैं. इनके अलावा और कई भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल कर आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की मांगें कई सालों से चल रही हैं.