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करीब 70 साल से हर दिन एक पेड़ लगाते आ रहे हैं यह बुजुर्ग

प्रभाकर मणि तिवारी
५ जून २०२४

पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के सारेंगा में रहने वाले श्यामापद बनर्जी आठ साल की उम्र से ही इलाके में पेड़ लगा रहे हैं. अब उनकी उम्र करीब 81 साल हो चुकी है.

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श्यामापद बनर्जी का इलाके में प्रचलित संबोधन है, पेड़ वाले दादा जी.
श्यामापद बनर्जी बताते हैं कि जब वह आठ साल के थे, तो पिता की सीख पर उन्होंने पहला पौधा लगाया था. उनके शब्दों में, तब से ही उन्हें पौधे लगाने का 'नशा' हो गया. चाहे जो भी मौसम हो, वह हर दिन इसी तरह पौधे लगाने निकल पड़ते हैं. तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

श्यामापद बनर्जी इस उम्र में भी कड़ी धूप, सर्दी और बारिश की परवाह किए बिना रोजाना कम-से-कम एक पेड़ लगाते हैं. उनके इस हरित अभियान ने इलाके की तस्वीर बदल दी है. इस इलाके में गर्मी में तापमान 50 डिग्री से ऊपर पहुंच जाता है. अब स्थानीय लोग श्यामापद को 'पेड़ दादा जी' कहते हैं.

दिनचर्या का हिस्सा है पौधे लगाना

सुबह के कोई आठ बजे हैं, लेकिन सूरज सिर पर चमक रहा है और तापमान 38 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है. इसकी परवाह किए बिना कमर में धोती और सिर पर गमछा लपेटे करीब 81 साल के श्यामापद बनर्जी एक हाथ में फावड़ा और दूसरे में प्लास्टिक की बाल्टी में रखे पौधे के साथ नंगे पांव खेतों की ओर निकल पड़ते हैं.

पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले में रहने वाले श्यामापद बनर्जी सात दशक से भी ज्यादा वक्त से वृक्षारोपण कर रहे हैं.
श्यामापद बनर्जी अब तक आम, कटहल और ताड़ समेत कई किस्मों के 20 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं. तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

करीब दो किलोमीटर चलने के बाद उन्हें पौधे लगाने के लिए एक खाली जगह मिल जाती है. वहां मिट्टी खोदने के बाद वह पौधे लगाते हैं और बगल में बहने वाली एक नहर से पानी लेकर उस पर छिड़काव करते हैं. रास्ते में वह पौधों पर उग आए झाड़-झंखाड़ की भी सफाई करते हैं.

दुनियाभर में जंगलों का हो रहा सफाया

पश्चिम बंगाल में झारखंड से सटे बांकुड़ा जिले में सारेंगा नाम की जगह है. यहां के श्यामापद बीते सात दशक से भी लंबे अरसे से बिना नागा यह काम करते हैं, किसी पुरस्कार या लालच के बिना. अब तक आम, कटहल और ताड़ समेत वह विभिन्न किस्मों के 20 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं. वह गांव के लोगों, खासकर बच्चों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं.

श्यामापद बनर्जी पौधे लगाने के लिए हर दिन औसतन चार किलोमीटर का चक्कर लगाते हैं.
श्यामापद बनर्जी हर रोज इसी तरह कड़ी धूप, सर्दी और बारिश की परवाह किए बिना हाथ में कुदाल थामे पौधे लगाने के लिए निकल जाते हैं. तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

"पहला पेड़ लगाने के बाद इसका नशा हो गया"

श्यामापद डीडब्ल्यू से कहते हैं, "पिता ने आठ साल की उम्र में ही पेड़ लगाने का महत्व समझाया था. उस उम्र में पहला पेड़ लगाने के बाद मुझे इसका नशा हो गया. ये पेड़ हर मौसम में सिर उठा कर धूप, बारिश और तूफान से लोगों और फसलों की रक्षा करते हैं. ये इंसान के असली साथी हैं."

श्यामापद की चुस्ती-फुर्ती देखते ही बनती है. पेड़ लगाने के लिए रोजाना औसतन चार किलोमीटर का चक्कर लगाने के बाद घर लौटते ही वह अपने पालतू पशुओं की देख-रेख और चारा खिलाने में जुट जाते हैं.

यह पूछे जाने पर उनका नाम पेड़ दादा कैसे पड़ गया, श्यामापद बताते हैं, "पेड़ लगाते-लगाते पहले इलाके के बच्चे मुझे इस नाम से पुकारने लगे. उनकी देखा-देखी दूसरे लोग भी इसी नाम से पुकारने लगे."

उनके इस काम के लिए स्थानीय प्रशासन और कुछ क्लब उन्हें सम्मानित भी कर चुके हैं. ग्लोबल ग्रीनफोर्स नामक पर्यावरण संगठन की सारेंगा शाखा भी उनको समय-समय पर बीज और चारा देकर सहायता करती रही है. इस संगठन के आशीष पाल डीडब्ल्यू को बताते हैं, "कोई व्यक्ति पेड़ों से इतना प्यार कर सकता है, यह श्यामापद को देखे बिना यकीन नहीं होता. उनका पूरा जीवन इलाके को हरा-भरा बनाने में ही बीता है."

सारेंगा एक गर्म इलाका है. श्यामापद बनर्जी की दशकों की मेहनत के कारण इलाका खूब हराभरा हो गया है और उनके लगाए पेड़ लोगों को छांव देते हैं.
यह तस्वीर सारेंगा इलाके ही है. यहां ऐसी कोई सड़क या तालाब नहीं, जिसके किनारे श्यामापद बनर्जी के लगाए पेड़ ना हों. तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

"जिंदगीभर पेड़ लगाता रहूंगा"

श्यामापद अपने दो बेटों और परिवार के साथ रहते हैं. उनकी दशकों की अथक मेहनत का नतीजा है कि सारेंगा इलाके में कोई भी ऐसी सड़क या तालाब नहीं है, जिसके किनारे उनके हाथों से लगाए पेड़ सिर उठाए ना खड़े हों.

यह पूछे जाने पर कि आजीवन पेड़ लगाने से उन्हें क्या फायदा हुआ, श्यामापद कहते हैं कि अगर फायदे की सोचता तो यह सब नहीं कर पाता. वह कहते हैं, "मैंने समाज के फायदे के बारे में सोचा है. इन पेड़ों से लोगों को छाया मिलेगी और साथ ही फल भी. मैं आजीवन पेड़ लगाता रहूंगा. मेरे इस संसार से जाने के बाद भी लोगों के मन में इन पेड़ों के तौर पर मेरी यादें रहेंगी."

श्यामापद मुखर्जी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं.
श्यामापद मुखर्जी ना केवल खुद पौधे लगाते हैं, बल्कि लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. ग्लोबल ग्रीनफोर्स नाम का एक पर्यावरण संगठन भी समय-समय पर उनकी सहायता करता है. तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

पेड़ को कटने से बचाने के लिए उससे लिपट गए

श्यामापद सिर्फ पेड़ ही नहीं लगाते. उनको अगर इलाके में कहीं पेड़ कटने की सूचना मिलती है, तो फौरन वहां पहुंच जाते हैं और किसी तरह उसे रोकने का प्रयास करते हैं. पेड़ों की कटाई रोकने के लिए वह शिकायत लेकर स्थानीय प्रखंड विकास अधिकारी के दफ्तर पहुंच जाते हैं.

एक बार तो वह पेड़ से ही लिपट गए थे. प्रशासन ने ही उस पेड़ को काटने की मंजूरी दी थी. मजबूरन पुलिस और प्रशासन को खाली हाथ लौटना पड़ा. कहीं बहुत जरूरत होने की स्थिति में अगर पेड़ काटना मजबूरी हो जाती है, तो श्यामापद इसका सिद्धांत देते हैं कि हर पेड़ के बदले पहले दो पेड़ लगाए जाएं.

आशीष पाल बताते हैं, "जिस तरह बड़े पैमाने पर जंगल और पेड़ों की कटाई हो रही है, उसका असर मौसम पर साफ नजर आ रहा है. ऐसे में श्यामापद बनर्जी अकेले अपने बूते सीमित संसाधनों के बावजूद जो काम कर रहे हैं, उसकी जितनी भी सराहना की जाए, कम ही है. हमसे जितना बन पड़ता है, इस काम में उनकी मदद करते हैं."

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