सप्ताह में 55 घंटे से अधिक काम करना कितना खतरनाक?
सप्ताह में ज्यादा घंटे काम करना दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है. 55 घंटे से अधिक काम करने से दिल की बीमारी हो रही है और यह मौत का कारण बन रही है.
मौत का खतरा
विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक, सप्ताह में 55 घंटे से अधिक काम करने से हृदय रोग और आघात से मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है. यह रिपोर्ट ऐसे समय में जारी हुई है जब दुनिया कोरोना वायरस से लगातार दूसरे साल भी निपट रही है. लोग घरों से काम कर रहे हैं और काम करने का तरीका बदल गया है.
सेहत पर असर
साल 2020 से ही दुनियाभर में लोगों की जीवनशैली अचानक से बदल गई. इसका प्रमुख कारण है कोरोना वायरस. लॉकडाउन और पाबंदियों की वजह से लोग अपने-अपने घरों से काम कर रहे हैं, इस वजह से कई बार उन्हें ज्यादा घंटे काम के लिए निकालने पड़ रहे हैं.
काम के घंटे और मौत का संबंध
यह शोध एनवायरमेंटल इंटरनैशनल जर्नल में छपा है, यह लंबे समय तक काम करने से जुड़े जीवन और स्वास्थ्य के लिए जोखिमों का पहला वैश्विक विश्लेषण है. शोध में महामारी के पहले की अवधि पर ध्यान केंद्रित किया गया और शोध के लेखकों ने लाखों लोगों को लेकर हुए दर्जनों अध्ययनों के डाटा का इस्तेमाल किया.
"गंभीर स्वास्थ्य जोखिम"
विश्व स्वास्थ्य संगठन की पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेशक मारिया नीरा के मुताबिक, "सप्ताह में 55 घंटे या उससे अधिक काम करना एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा है. यह समय है कि हम सभी- सरकार, नियोक्ता और कर्मचारी- इस तथ्य को जानें कि लंबे समय तक काम करने से अकाल मृत्यु हो सकती है."
35% बढ़ जाता है स्ट्रोक का खतरा
इस शोध में पाया गया कि सप्ताह में 35 से 40 घंटे काम करने वालों के मुकाबले 55 घंटे या उससे अधिक काम करने से आघात का खतरा 35 प्रतिशत और दिल संबंधी बीमारियों का खतरा 17 प्रतिशत अधिक हो जाता है.
जानलेवा चलन
विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अनुमान लगाया कि साल 2016 में सप्ताह में 55 घंटे से अधिक काम करने वाले 3,98,000 लोगों की मौत स्ट्रोक और 3,47,000 लोगों की मौत हृदय रोगों के कारण हुई.
सेहत पर भारी नौकरी?
साल 2000 और 2016 के बीच लंबे वक्त तक काम करने से दिल की बीमारी से होने वाली मौतों की संख्या में 42 प्रतिशत और आघात से होने वाली मौतों में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
सबसे ज्यादा मौत
दर्ज की गई मौतों में से अधिकांश 60 से 79 वर्ष की आयु के लोगों की हुई, जिन्होंने प्रति सप्ताह 55 घंटे या उससे अधिक काम किया था, जब वे 45 से 74 वर्ष के थे.
बढ़ रही है संख्या
डब्ल्यूएचओ इस प्रवृत्ति के बारे में चिंतित है क्योंकि लंबे समय तक काम करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है. वर्तमान में विश्व की आबादी का नौ प्रतिशत लंबे समय तक काम कर रहा है.
महामारी ने बदला काम का तरीका
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस के मुताबिक, "कोविड-19 ने कई लोगों के काम करने के तरीके को काफी बदल दिया है." वे कहते हैं, "कई उद्योगों में टेलीवर्किंग एक आदर्श बन गया है, जो अक्सर घर और काम के बीच की सीमाओं को धुंधला कर देता है. इसके अलावा, कई व्यवसायों को पैसे बचाने के लिए संचालन को कम करने या बंद करने के लिए मजबूर किया. जो लोग अभी भी वेतन पर हैं वे लंबे समय तक काम कर रहे हैं.