पश्चिम बंगाल की जेलों में दर्जनों महिलाएं कैसे हुईं गर्भवती
१३ फ़रवरी २०२४भारत में केंद्र और तमाम राज्य सरकारें महिला सुरक्षा के लंबे-चौड़े दावे करती रही हैं. उनकी सुरक्षा के लिए हाल के वर्षों में कई कानून भी बनाए गए हैं, लेकिन जमीनी स्थिति इसके उलट है. हालत यह है कि अब जेलों में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं.
पश्चिम बंगाल की विभिन्न जेलों में गर्भवती कैदियों की बढ़ती तादाद से संबंधित एक रिपोर्ट चौंकाती है. यह रिपोर्ट बीते सप्ताह कलकत्ता हाईकोर्ट में पेश की गई थी. राज्य की 60 जेलों में बंद करीब 26 हजार कैदियों में से 10 फीसदी महिलाएं हैं. बंगाल में जेलों को सुधार गृह कहा जाता है.
क्या है मामला
राज्य की विभिन्न जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों की मौजूदगी, उनके रहन-सहन, खान-पान और चिकित्सा सुविधाओं पर निगाह रखने और समय-समय पर इस बारे में अदालत को रिपोर्ट देने के लिए साल 2018 में हाईकोर्ट ने न्याय मित्र की नियुक्ति की थी.
अदालत की ओर से नियुक्त न्याय मित्र तापस भंज ने बीते सप्ताह कलकत्ता हाईकोर्ट में दायर एक रिपोर्ट में बताया कि राज्य की जेलों में गर्भवती महिला कैदियों की तादाद लगातार बढ़ रही है. 2023 तक के आंकड़े बताते हैं कि महिला कैदियों ने 196 बच्चों को जन्म दिया. फिलहाल ऐसे बच्चे भी जेलों में रह रहे हैं. इस समय भी अलीपुर सेंट्रल जेल में एक महिला कैदी गर्भवती है.
हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश होने के बाद सुप्रीम कोर्टने भी इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच करवाने का फैसला किया है. न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति ए. अमानुल्लाह की खंडपीठ ने वरिष्ठ वकील गौरव अग्रवाल से इस मामले पर रिपोर्ट देने को कहा है.
क्या सिफारिशें की गईं
रिपोर्ट के मुताबिक, अलीपुर जेल में एक महिला कैदी तो गर्भवती है ही, वहां दूसरी महिला कैदियों के 15 बच्चे भी रह रहे हैं. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टी. एस. शिवज्ञानम और न्यायमूर्ति सुप्रतिम भट्टाचार्य ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताते हुए कहा है कि अदालत ने इस रिपोर्ट को गंभीरता से लिया है. हाईकोर्ट ने इस मामले को आपराधिक मामलों की सुनवाई करने वाली खंडपीठ के समक्ष रखने का निर्देश दिया है.
न्याय मित्र ने अपनी रिपोर्ट में इस स्थिति पर अंकुश लगाने और जेलों में महिलाओं का यौन शोषण रोकने की दिशा में कई सिफारिशें की हैं. सुझाव दिया गया है कि तमाम जिला जज अपने अधिकार क्षेत्र में स्थित जेलों का दौरा कर इस बात का पता लगाएं कि कितनी महिला कैदी वहां रहने के दौरान गर्भवती हुई हैं.
यह प्रस्ताव भी दिया गया है कि सभी जिलों में मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट महिला कैदियों को जेल भेजने से पहले उनकी प्रेगनेंसी जांच कराने का भी निर्देश दें. राज्य के तमाम थानों में प्रेगनेंसी जांच की व्यवस्था किए जाने का भी सुझाव दिया गया है. साथ ही, यह अपील भी की गई है कि महिला सेल में पुरुषों के प्रवेश पर पूरी तरह पाबंदी लगाई जाए.
अन्य राज्यों में क्या स्थिति है
इस रिपोर्ट के बाद तमाम हलकों में मौजूदा स्थिति पर गहरी चिंता जताई जा रही है और महिला कैदियों का यौन शोषण और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए मौजूदा कानूनों में जरूरी सुधार की मांग उठ रही है. आईजी (जेल) रह चुके पूर्व आईपीएस अधिकारी सी. के. घोष बताते हैं, "हाल के वर्षो में जेल के भीतर हालात बिगड़े हैं. यह रिपोर्ट सामने नहीं आती, तो हकीकत का पता ही नहीं चलता. इस स्थिति को गंभीरता से लेते हुए सरकार को गंभीर प्रयास करने होंगे, ताकि जेलों में महिला कैदियों का यौन शोषण रोका जा सके." घोष सवाल करते हैं कि जब महिलाएं सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली जेलों में भी महफूज नहीं हैं, तो कहां सुरक्षित रहेंगी?
समाजशास्त्रियों का कहना है कि बंगाल की जेलों में महिला कैदियों की यह स्थिति चौंकाती जरूर है, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में भी तस्वीर लगभग एक जैसी ही है. नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) ने साल 2022 की जेल सांख्यिकी रिपोर्ट में बताया था कि 31 दिसंबर, 2022 तक देश की विभिन्न जेलों में 1,537 महिला कैदी 1,764 बच्चों के साथ रह रही थीं. इस मामले में उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर थे.