बीजेपी को झारखंड में चंपाई सोरेन से कितना फायदा
२८ अगस्त २०२४भारत की राजनीति में अपने समर्थकों के बीच 'कोल्हान टाइगर' कहे जाने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने बीजेपी में जाने की घोषणा की है. कभी जेएमएम संस्थापक शिबू सोरेन के परिवार के भरोसेमंद लोगों में शामिल रहे रहे चंपाई सोरेन ने 27 अगस्त को एक सोशल मीडिया पोस्ट में यह जानकारी दी.
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद जेएमएम के बड़े आदिवासी नेता चंपाई सोरेन को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया था. वह इस साल 31 जनवरी से तीन जुलाई तक, करीब पांच महीने इस पद पर रहे. चंपाई सोरेन फिलहाल सरायकेला सीट से विधायक हैं और जेएमएम के उपाध्यक्ष हैं.
हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद चंपाई सोरेन से इस्तीफा ले लिया गया. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा लिए जाने के तरीके को आत्मसम्मान पर चोट करार देते हुए 18 अगस्त को उन्होंने एक पत्र जारी किया. इसमें उन्होंने विधायक दल की बैठक के दौरान इस्तीफा मांगे जाने पर नाराजगी जाहिर करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि वह पार्टी छोड़ रहे हैं.
अपने विकल्प गिनाते हुए उन्होंने लिखा, "आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है. इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे. पहला, राजनीति से संन्यास लेना. दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना. और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना." राजनीतिक घटनाक्रम के अनुसार कयास लगने लगे कि वह बीजेपी में जाने का संकेत दे रहे हैं.
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बीजेपी में जाने की क्या वजह बताई?
अपने सोशल मीडिया पोस्ट में चंपाई सोरेन ने बीजेपी में जाने की वजह बांग्लादेशी घुसपैठ को बताया है. उन्होंने दावा किया, "आज बाबा तिलका मांझी और सिदो-कान्हू की पावन भूमि संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ बहुत बड़ी समस्या बन चुका है. इस से दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है कि जिन वीरों ने जल, जंगल व जमीन की लड़ाई में कभी विदेशी अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार नहीं की, आज उनके वंशजों की जमीनों पर ये घुसपैठिए कब्जा कर रहे हैं. इनकी वजह से फूलो-झानो जैसी वीरांगनाओं को अपना आदर्श मानने वाली हमारी माताओं, बहनों व बेटियों की अस्मत खतरे में है."
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इस घटनाक्रम पर राजनीतिक समीक्षक अरुण कुमार चौधरी कहते हैं, "साफ है, चंपाई ने आदिवासी अस्मिता और अस्तित्व का दांव चल दिया है. जेएमएम और कांग्रेस, घुसपैठ की बात को बीजेपी का प्रोपेगेंडा कहती रही है. अब कहीं-न-कहीं चंपाई का यह दांव जेएमएम को बैकफुट पर आने को मजबूर अवश्य करेगा. चंपाई को गद्दार ठहराना भी सोरेन राजपरिवार के लिए मुश्किल ही होगा."
जेएमएम इस पूरे प्रकरण में चंपाई सोरेन पर सीधे वार करने से अब तक बचती रही है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इतना ही कहा है, "मेरे पास जो भी था, वह सब कुछ उन्हें दिया. वह बीजेपी में क्यों चले गए, यह उनसे ही पूछना चाहिए."
बीजेपी को चंपाई से किस फायदे की उम्मीद
झारखंड में इस साल विधानसभा चुनाव होना है. जानकारों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव के परिणाम से सीख लेते हुए बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही है. अरुण कुमार चौधरी कहते हैं, "बीजेपी, जेएमएम के आधार वोट को अपने पाले में करने के लिए हाथ-पांव मार रही है. इसी कड़ी में शिबू सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को पार्टी में शामिल कराया गया. हालांकि, यह अलग बात है कि लोकसभा चुनाव 2024 में इससे बीजेपी को कोई फायदा नहीं हुआ. दोनों ही चुनाव हार गईं."
कोल्हान क्षेत्र के तीन जिले- पश्चिम सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम तथा सरायकेला-खरसावां की 14 विधानसभा सीटों पर चंपाई सोरेन का खासा प्रभाव बताया जाता है. वर्तमान में जेएमएम के पास ऐसा कोई नेता नहीं है, जो वहां चंपाई को टक्कर दे सके. उनके साथ आने पर बीजेपी को इन इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करने में खासी मदद मिल सकती है.
2020 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने कोल्हान की 14 सीट में से 11 पर जीत हासिल की थी, जबकि दो सीट उसके सहयोगी कांग्रेस तथा एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी. बीजेपी अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी. अरुण कुमार चौधरी कहते हैं, "इसी कोल्हान ने बीजेपी को सत्ता से दूर कर दिया था. वह भी तब, जब देश में राम मंदिर की लहर थी और मोदी फैक्टर चरम पर था." राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, अगर आगामी विधानसभा चुनाव में कोल्हान की हर सीट पर चंपाई सोरेन चार-पांच हजार वोटों को भी प्रभावित करने में सफल रहे, तब बीजेपी की जीत का रास्ता बन सकता है.
जेएमएम में बड़ी सेंध नहीं लगा सकेगी बीजेपी
चंपाई सोरेन की बगावत के बाद कुछ नामों की चर्चा तेज हो गई. दावा था कि ये भी उनके साथ पार्टी छोड़ देंगे. इस बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ जेएमएम के मंत्रियों-विधायकों की एकजुटता भी सामने आई. जिन चार विधायकों के नाम चंपाई के साथ जाने वालों में उछाले गए थे, उन्होंने एक सुर में कहा कि वे हेमंत के साथ हैं और रहेंगे. इसके अलावा सहयोगी दल कांग्रेस और भाकपा-माले के विधायक भी उनसे मिलने पहुंचे. फिलहाल, चंपाई सोरेन अकेले ही दिख रहे हैं.
जेएमएम के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय कहते हैं, "चंपाई एक मजबूत नेता हैं, इसमें कोई संशय नहीं है. लेकिन मेरे विचार से जनता उनके इस कदम का समर्थन नहीं करेगी. यह उनका निजी फैसला है और कितना कारगर होगा, यह तो समय बताएगा. लेकिन इतिहास गवाह है कि जो लोग जेएमएम छोड़कर अन्य दलों में गए, उनका करियर खत्म हो गया. वे हंसी के पात्र बन गए."
कुछ ऐसे ही विचार पत्रकार अमिता पांडेय के भी हैं. वह कहते हैं, "सीता-गीता की हार भी बहुत कुछ कहती है. 2024 के आम चुनाव में इन दोनों की हार से साफ हो गया कि बीजेपी, जेएमएम के आदिवासी वोट बैंक में सेंध नहीं लगा सकी. तात्पर्य यह कि गीता कोड़ा को पटखनी देने वाली जोबा मांझी और सीता सोरेन को पराजित करने वाले नलिन सोरेन जैसे नेता बीजेपी के अभियान को फुस्स कर सकते हैं."
चंपाई सोरेन और बीजेपी, दोनों को एक-दूसरे से क्या हासिल होगा या फिर जेएमएम को कितना नुकसान होगा, यह तो चुनाव में ही स्पष्ट होगा. हालांकि, कई जानकार मानते हैं कि चंपाई सोरेन का बीजेपी में शामिल होना केवल पार्टी बदलने की कहानी भर नहीं, झारखंड के राजनीतिक समीकरण को बदलने की एक अहम कवायद हो सकती है.