वन्य जीव तस्करों को पकड़ने में चूहों का इस्तेमाल
१ नवम्बर २०२४वैज्ञानिकों ने अफ्रीकी जायंट पाउच रैट्स को तस्करों को पकड़ने में मदद के लिए ट्रेनिंग दी है. ‘फ्रंटियर्स इन कंजरवेशन साइंस‘ पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक ये चूहे दुर्लभ वन्य जीवों और पौधों की तस्करी रोकने में बड़े हथियार बन सकते हैं.
अध्ययन के अनुसार, इन चूहों को हाथी के दांत, गैंडे के सींग, पैंगोलिन की स्केल और अफ्रीकी ब्लैकवुड जैसी अवैध वन्यजीव वस्तुओं को सूंघकर पहचानने के लिए प्रशिक्षित किया गया है. वन्यजीवों की तस्करी का वैश्विक बाजार लगभग 23 अरब डॉलर का है और इसे रोकने के लिए तमाम तरह के उपाय किए जा रहे हैं. ये चूहे इसे रोकने में बड़ा योगदान दे सकते हैं.
11 चूहों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि ये चूहे अवैध सामग्री को दूसरे पदार्थों में छिपाए जाने के बाद भी पहचान सकते हैं. जर्मनी के ओकेनोस फाउंडेशन की वैज्ञानिक डॉ. इसाबेल सॉट ने बताया कि इन चूहों की गजब की याददाश्त होती है, जिससे वे आठ महीने बाद भी गंध पहचान सकते हैं.
तंजानिया में स्थित गैर-लाभकारी संस्था एपीओपीओ इन चूहों को पहले से ही बारूदी सुरंग और टीबी का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित कर रही है. अब इनकी मदद से वन्यजीव तस्करी पर नजर रखने की कोशिश की जा रही है.
सस्ता हथियार
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) अमेरिका के प्रकृति के खिलाफ अपराध और नीति विशेषज्ञ क्रॉफर्ड एलन के अनुसार, "तस्कर अपने माल को छुपाने के लिए अलग-अलग तरकीबें अपनाते हैं, जिससे उन्हें पकड़ना मुश्किल हो जाता है.” वह कहते हैं कि हाथी के दांतों को लकड़ी की तरह दिखाने के लिए दागा जाता है या अन्य सामग्रियों में छुपा दिया जाता है. चूहे की अद्भुत सूंघने की क्षमता ऐसी चालाकियों को पकड़ने में मददगार साबित हो रही है.
चूहों को कंटेनरों में छेद के माध्यम से गंध को पहचानने का प्रशिक्षण दिया गया है. डॉ. सॉट कहती हैं कि ये चूहे कुत्तों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं, जो वन्यजीव तस्करी का पता लगाने के लिए पहले से ही उपयोग में हैं. चूहे छोटे और फुर्तीले होने के कारण तंग जगहों में आसानी से पहुंच सकते हैं, जैसे कि शिपिंग कंटेनर. इसके अलावा, चूहों का प्रशिक्षण और रखरखाव कुत्तों की तुलना में सस्ता है, जो वन्यजीव तस्करी से प्रभावित गरीब क्षेत्रों के लिए खास महत्वपूर्ण है.
एलन का मानना है कि अफ्रीका में तस्करी रोकने के लिए किफायती समाधान तलाशने की जरूरत है. वह कहते हैं, "चूहों का उपयोग कम लागत पर बड़े प्रभाव डाल सकता है.” अध्ययन में शामिल ड्यूक यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर केट वेब ने बताया कि इन चूहों को कम समय में प्रशिक्षित किया जा सकता है, जिससे इनका उपयोग जल्दी संभव हो जाता है.
कई तरह से उपयोग
एपीओपीओ ने हाल ही में दार अस सलाम के बंदरगाह पर इन चूहों का परीक्षण किया, जहां चूहों ने 83 फीसदी छिपी हुईं अवैध वस्तुओं का पता लगाया. जैसे ही कोई चूहा तस्करी की वस्तु पहचानता है, वह अपने हैंडलर को एक गेंद खींचकर संकेत देता है.
अवैध वन्यजीव व्यापार न केवल वन्यजीवों की संख्या को प्रभावित करता है, बल्कि इससे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. यह व्यापार ईबोला और सार्स जैसी बीमारियों के प्रसार में भी योगदान कर सकता है. डॉ. सॉट कहती हैं, "वन्यजीवों की तस्करी पर रोक लगाने के लिए चूहों का उपयोग सस्ता, प्रभावशाली और कम संसाधनों वाला विकल्प है.”
एपीओपीओ की योजना है कि इन चूहों का उपयोग अन्य जगहों पर भी किया जाए. आने वाले दिनों में इन चूहों की प्रभावशीलता को हवाई अड्डों पर भी परखा जाएगा. डॉ. सॉट का कहना है, "अब तक, जो भी चुनौती हमने चूहों के सामने रखी है, उन्होंने उसे पूरा किया है. सही प्रशिक्षण देने पर ये चूहे हर काम में खरे उतर रहे हैं.”
वीके/सीके (डीपीए)