बढ़ती खाद्य कीमतों के बीच यूरोप की चिंताएं
२३ अप्रैल २०२२यूक्रेम में जारी लड़ाई के बीच दुनिया भर में गेहूं, सब्जी, तेल और चीनी की बढ़ती कीमतें लोगों का बजट बिगाड़ रही हैं. काला सागर क्षेत्र दुनिया की ब्रेडबास्केट माना जाता है. वैश्विक गेहूं निर्यात का 29 फीसदी, मकई निर्यात का 19 फीसदी हिस्सा और सूरजमुखी तेल का 78 फीसदी हिस्सा, रूस और यूक्रेन से जाता है. लेकिन युद्ध ने खाद्य उत्पादन में बाधा खड़ी कर दी है और इसके चलते कीमतें बढ़ गई हैं. रूस ने अनाज के निर्यात पर रोक लगा दी है और यूक्रेन में फसल अभी अनिश्चित है.
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने रेखांकित किया है कि इस साल मार्च में वैश्विक खाद्य मूल्य सूचकांक अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था. 1990 में एफएओ की स्थापना के समय से लेकर अब तक की ये सबसे ऊंची दर थी. यूरोपीय संघ के भीतर फरवरी में भोजन, शराब और तंबाकू की कीमतों में 4.1 फीसदी की वृद्धि हो गई थी. जबकि जनवरी में ये बढ़ोत्तरी साढ़े तीन फीसदी थी.
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प्रकृति के संरक्षण के लिए काम करते एक संगठन, बर्डलाइफ यूरोप एंड सेंट्रल एशिया से जुड़े खेती विशेषज्ञ एरियल ब्रुनर बताते हैं, "ये याद रखना महत्त्वपूर्ण है कि खाद्य सुरक्षा का असली खतरा गरीब देशों में है, खासकर उन देशों में जो अपने आयात के लिए यूक्रेन पर बहुत निर्भर हैं. जैसे मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका."
उनके मुताबिक, "यूरोप में, ये महंगाई का मामला ज्यादा है." वो कहते हैं, "अनाज, सूरजमुखी का तेल और दूसरी छिटपुट चीजों पर आपूर्ति का झटका लग सकता है लेकिन ये समझना जरूरी है कि बात आज की नहीं आने वाले कल की है."
रूस और यूक्रेन के साथ ईयू का खाद्य व्यापार
यूरोपीय संघ अलग अलग किस्म के कृषि-खाद्य उत्पादों में रूस और यूक्रेन दोनों का एक अहम व्यापारिक साझीदार है. यूरोपीय संसद की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लड़ाई से पहले यूरोपीय संघ, एग्री-फूड में अपने कुल निर्यात का 3.7 फीसदी हिस्सा रूसी संघ को भेजता था और रूस से वो 1.5 फीसदी माल का आयात करता था. ईयू से सोयाबीन, ककाओ बीन, तिलहन और शहद का निर्यात होता है जबकि रूस से तिलहन, गेहूं, और उर्वरकों का आयात होता है. इस बीच यूक्रेन ने यूरोपीय संघ को 36 फीसदी अनाज और 16 फीसदी तिलहन का निर्यात किया था. बदले में उसे यूरोपीय संघ से 2021 में तीन अरब यूरो के एग्री-फूड उत्पाद मिले थे.
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यूरोपीय आयोग के मुताबिक यूरोपीय संघ, यूक्रेन में जारी लड़ाई से पैदा अस्थिरता का मुकाबला आसानी से कर सकता है. आयोग ने एक बयान में कहा, "विशाल एग्री-फूड सरप्लस की बदौलत यूरोपीय संघ खाद्य पदार्थ के मामले में आत्मनिर्भर है. उसका एकल बाजार ऐसे धक्कों को जज्ब कर लेने की अपनी क्षमता को एक बार फिर साबित कर सकता है. शुरुआती अप्रैल में जारी संघ की एक रिपोर्ट में किसानों की मदद के लिए गेहूं, मक्का और तिलहन का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के उपाय भी शामिल हैं.
फिनलैंड में मौजूद युवा किसान और जलवायु एक्टिविस्ट सॉमर आकरमन ने भी डीडब्ल्यू को बताया कि यूरोपीय संघ को लड़ाई की वजह से खाने की किल्लत के बारे में डरने की जरूरत नहीं हैं. वो कहती हैं, "ईयू एग्री-फूड उत्पादों का एक नेट निर्यातक है. लेकिन यूक्रेन पर पुतिन के हमले से खाद्य उत्पादन की कीमतों में उछाल आ गया है. इसमें ऊर्जा की कीमतें भी शामिल है जिसका असर उस ईंधन पर भी पड़ा है जो खाद्य और कृषि उत्पादों को बनाने और निर्यात करने में खर्च होता है."
आयोग पहले ही चेतावनी दे चुका है कि ऊंची लागत से खाद्य कीमतों में उछाल आता रहेगा और यूरोपीय संघ के सबसे गरीब समुदायों पर उसकी मार पड़ेगी.
आकरमन जोर देकर कहती हैं कि ईयू के बाहर, खाद्य सुरक्षा पर अधिक असर पड़ा है. वो कहती हैं, "उत्तरी अफ्रीका में कुछ देश अपनी खाद्य सुरक्षा के लिए रूस और यूक्रेन पर बुरी तरह निर्भर रहे हैं. ईयू को उन इलाकों में भी खाद्य आपूर्ति रवाना करनी चाहिए."
किसानों के लिए जागने का वक्त?
यूक्रेन युद्ध से उर्वरकों की कीमतें भी बढ़ी हैं, उससे खाद्य आपूर्ति की कीमतें और महंगी हुई हैं और कई यूरोपीय देशों में किसान गुस्से में हैं. ग्रीस और फ्रांस में किसानों ने प्रदर्शन किए हैं. वे उर्वरक की ऊंची कीमतों पर यूरोपीय संघ से मदद की मांग कर रहे हैं. उन्हें डर है कि ये कीमतें खाद्य उत्पादन पर असर डालेंगी.
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यूरोपीय आयोग ने एलान किया है कि किसानों को ईंधन और उर्वरक की बढ़ती कीमतों से निपटने के लिए और सब्सिडी दी जाएगी. लेकिन यूरोपीय फार्म लॉबी समूह कोपा-कोगेका के महासचिव पेकका पेसोनन ने डीडब्ल्यू को बताया, "युद्ध से पहले भी हम ये देख चुके हैं. उर्वरक, ऊर्जा की कीमतों और मजदूरी में बड़ी भारी वृद्धि हुई थी." वो कहते हैं, "वैल्यू चेन यानी मूल्य ऋंखला के दूसरे हिस्सों यानी प्रोसेसिंग इंडस्ट्री और खुदरा व्यापारियों तक अतिरिक्त ऊंची कीमतों की सफाई देना बड़ा मुश्किल हो जाता है."
बर्डलाइफ संगठन से जुड़े एरियल ब्रुनर कहते हैं कि ये साफ है कि किसान जूझ रहे हैं और ऐसे में युद्ध ने यूरोपीय संघ में मौजूदा खेती प्रणाली की समस्याओं को भी फाश कर दिया है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "जीवाश्म ईंधनों पर अति निर्भरता एक जाहिर समस्या बनती जा रही है, कुछ किसान अब ये महसूस करने लगे हैं कि उन्हें कृत्रिम नाइट्रोजन उर्वरकों पर कम से कम निर्भर रहना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा इकोलॉजी आधारित तरीके इस्तेमाल करने चाहिए. हाइपर विशेषज्ञता की कमजोरियां भी इससे पता चलती हैं, जहां इतने सारे किसान, मिश्रित खेती छोड़कर एक ही किस्म की फसल उगाने लगे हैं."
"भले ही ये तमाम चीजें युद्ध जैसी किसी किस्म की भूराजनीतिक उथलपुथल से हो रही हों या वा खाद्य उत्पादन के सामने एक बड़े खतरे की तरह मौजूद जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसा हो रहा हो, लेकिन ये बिल्कुल स्पष्ट है कि हमारी खेती के बहुत सारे तरीके हाशिए पर डाल दिए गए हैं और किसान बहुत ज्यादा कमजोर और असहाय बनाए जा चुके हैं."
संकट के लिए तैयार
यूरोपीय संघ खाद्य सुरक्षा को लेकर भले ही खतरे में न हो लेकिन वो अपनी सीमाओं से बाहर, वैश्विक खाद्य किल्लत से निपटने में गंभीरता दिखा रहा है. संकट प्रबंधन के यूरोपीय कमिश्नर यानेस लेनारचिक कहते हैं कि, "बढ़ती खाद्य कीमतें दुनिया भर में सबसे उपेक्षित, वंचित लोगों को और बुरे हाल में धकेल रही हैं. यूक्रेन पर रूसी हमला भोजन प्रणालियों पर दबाव को बढ़ा रहा है और दुनिया भर में करोड़ों लोगों पर भुखमरी का खतरा मंडरा रहा है. हम लोग इस समय निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं और तत्काल कदम उठाने की जरूरत है."
वो कहते हैं कि यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र मिलकर वैश्विक खाद्य असुरक्षा से निपटेंगे और वंचित उपेक्षित असहाय इलाकों में मानवीय मदद मुहैया कराएंगे. पिछले सप्ताह, यूरोपीय संसद के सदस्यों ने यूरोपीय संघ से अपना घरेलू उत्पादन बढ़ाने और युद्ध से खाद्य संकट झेल रहे गरीब देशों की मदद का आह्वान भी किया था.
कोपा-कोगेसा से जुड़े पेक्का पेसोनन चाहते हैं कि यूरोपीय संघ को अतीत से सबक सीखकर अपने रुख को और लचीला बनाना चाहिए. फिनलैंड मे अपने घर से बात करते हुए उन्होंने समझाया कि कैसे यूरोप ने अतीत में खाद्य संकटों का सामना किया है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "करीब सौ साल पहले, फिनलैंड साम्राज्यवादी रूस का हिस्सा था. और फिर रूस में राजनीतिक पेचीदगियों और क्रांतिकारी लड़ाइयों की वजह से हमारी सीमाएं बंद कर दी गईं. उसका मतलब था, खासकर देश के दक्षिणी हिस्से में, हम लोग भोजन से वाकई महरूम हो गए थे."
"वो अनुभव आज राजनीतिक इच्छाशक्ति को जगाने के काम आया है. यूरोपीय संघ के सदस्य देश वास्तव में एक तैयारी के साथ योजना पर काम करना सुनिश्चित करें. जहां किसी भी संकट की स्थिति में, चाहे वो राजनीतिक हो या सैन्य या प्राकृतिक ही क्यों न हो, हम ये सुनिश्चित कर पाएं कि आबादी को भरपूर भोजन मिलेगा और हमारी खाद्य आपूर्ति स्थिर रहेगी."
रिपोर्टः प्रियंका शंकर