क्या सच में इंसानियत को निगल जाएगी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस?
२८ जून २०२३एआई को लेकर हाल के दिनों में जिस तरह की चेतावनियां सुनाई दी हैं, वे कोई नई बात नहीं हैं. यह बात दशकों पहले से कही जाती रही है और विज्ञान-कथाओं से लेकर फिल्मों तक में ऐसा दिखाया जाता रहा है कि एक दिन एआई पूरी तरह दुनिया पर कब्जा कर सकती है. लेकिन क्या वाकई ऐसा हो सकता है? विशेषज्ञ इस सवाल के अलग-अलग तरह के जवाब देते हैं.
इस सवाल का मूल इस बात में है कि ऐसा क्या हो सकता है, जिससे इंसानियत पूरी तरह खत्म हो जाए. जिन हालात में ऐसा होने की आशंका जताई जाती है, वे दरअसल मशीनों द्वारा पूरी तरह इंसानी क्षमता हासिल कर लेने और इंसान के नियंत्रण से मुक्त हो जाने से जुड़े हैं. अभी स्थिति ऐसी है कि मशीनें पूरी तरह इंसान के नियंत्रण में हैं और जब चाहे उन्हें बंद किया जा सकता है. लेकिन आशंका है कि एआई यानी खुद ब खुद सोच-समझकर काम करने की क्षमता रखने वाली मशीनें बंद होने से इनकार कर देंगी.
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एआई विशेषज्ञ योशुआ बेंजियो ने इसी महीने एक सम्मेलन में कहा, "जब मशीनें खुद को बचाने को अपना लक्ष्य बना लेंगी तो हम मुश्किल में फंस जाएंगे.”
दार्शनिक जवाब
लेकिन ऐसी मशीनें चूंकि अभी मौजूद नहीं हैं, इसलिए वे कैसे इंसानियत का खात्मा कर सकती हैं यह बात अभी कल्पना और विज्ञान कथाओं में ही सुनाई देती है और अक्सर इसका जवाब दार्शनिक अंदाज में ही दिया जा सकता है. दार्शनिक निक बोस्ट्रोम ने ‘इंटेलिजेंस एक्सप्लोजन' के बारे में लिखा है. वह कहते हैं कि ऐसा तब होगा जब सुपरइंटेलिजेंट मशीनें खुद मशीनें बनाने लगेंगी.
बोस्ट्रोम ने एक ऐसा ही काल्पनिक परिदृश्य सुझाया है जिसमें एक पेपरक्लिप फैक्ट्री में काम कर रही सुपरइंटेलिजेंट मशीनों के बारे में बताया गया है. इस फैक्ट्री में एआई को पेपरक्लिप के उत्पादन को अधिकतम स्तर तक ले जाने का लक्ष्य दिया जाता है. एआई पहले धरती पर और फिर अंतरिक्ष में अन्य जगहों को भी पेपरक्लिप बनाने के काम में जुट जाती है.
बोस्ट्रोम का विचार बहुत से लोगों ने कोरी कल्पना कहते हुए खारिज कर दिया. हालांकि इसका आधार उनके इस मूल सिद्धांत को बनाया गया कि मनुष्य खुद भी एक कंप्यूटर सिमुलेशन है. लेकिन एआई पर बोस्ट्रोम के विचार ने उद्योगपति इलॉन मस्क और पिछली सदी के महानतम वैज्ञानिकों में से एक स्टीफन हॉकिंग को खासा प्रभावित किया है.
मशीनें मार सकती हैं इंसान को?
एक अन्य पहलू यह भी है कि अगर सुपरइंटेलिजेंट मशीनें वाकई इंसान को खत्म करने पर तुल जाती हैं तो इसके लिए उन्हें भौतिक रूप में होना होगा. आर्नोल्ड श्वाजनेगर की मशहूर फिल्म ‘द टर्मिनेटर' में कुछ ऐसा ही दिखाया गया था जब भविष्य से एक साईबोर्ग को मौजूदा दुनिया में भेजा जाता है ताकि इंसान अपने आपको एआई से बचा सके.
भले ही इस विचार को मीडिया में खूब जगह मिली लेकिन विज्ञान इस विचार को खारिज कर चुका है. 2021 में ‘स्टॉप किलर रोबोट्स' अभियान ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कहा गया, "यह वैज्ञानिक कल्पना अगर कभी सच हुई भी तो आने वाले दशकों में तो इसका हकीकत में बदल पाना संभव नहीं है.”
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हालांकि इस रिपोर्ट में चेताया गया कि मशीनों को जीवन-मरण के बारे में फैसले लेने की शक्ति देना अस्तित्व का खतरा पैदा कर सकता है. कनाडा की वॉटरलू यूनिवर्सिटी में रोबोटिक्स विशेषज्ञ कर्स्टिन डॉटेनहान इन आशंकों को निर्मूल मानती हैं. वह कहती हैं कि एआई से मशीनों को ऐसी तर्क क्षमता मिलने की संभावना नहीं है जिससे वे इंसानों को खत्म करने के बारे में सोचने लगें.
डॉटेनहान कहती हैं, "रोबोट्स दुष्ट नहीं होते.” हालांकि साथ ही वह यह भी कहती हैं कि कंप्यूटर प्रोग्राम रोबोट्स को बुरे काम करने के लिए तैयार कर सकते हैं.
इंसान भी है खतरा
एआई द्वारा इंसानियत खत्म करने का एक संभावित परिदृश्य वो हो सकता है जिसमें कुछ बुरे लोग जहरीले रसायन या वायरस बनाकर दुनिया को नष्ट कर दें. ऐसा देखा गया है कि भाषाई कंप्यूटर मॉडल जैसे कि जीपीटी-3 भयानक रसायन बनाने की क्षमता रखते हैं.
एआई की मदद से एक नयी दवा की खोज में लगे वैज्ञानिकों के एक दल ने एक प्रयोग किया. उन्होंने अपने एआई मॉडल में ऐसे बदलाव किये कि खतरनाक मॉलीक्यूल खोजे जाएं. नेचर मशीन इंटेलिजेंस नामक पत्रिका में छपे शोध के मुताबिक इन वैज्ञानिकों को छह घंटे के भीतर 40 हजार संभावित जहरीले रसायन बनाने के फॉर्मुले मिल गये.
बर्लिन के हेर्टी स्कूल में एआई एक्सपर्ट जोएना ब्राईसन कहती हैं कि एआई की मदद से कोई चाहे तो एंथ्रेक्स जैसे जहर को फैलाने के तरीके खोज सकता है. उन्होंने कहा, "लेकिन इससे मनुष्य के अस्तित्व पर खतरा नहीं होगा. यह सिर्फ एक बेहद भयानक और बुरा हथियार है.”
वीके/एए (एएफपी)