भारतीय फिल्मों को इतना क्यों पसंद करते हैं पाकिस्तानी?
२९ दिसम्बर २०२३पाकिस्तान में जब भी कोई भारतीय फिल्म रिलीज होती है तो उसे वहां के सेंसर बोर्ड के सख्त मानकों पर आंका जाता है. सेंसर बोर्ड इस बात पर सख्त निगाह रखता है कि कोई ऐसी फिल्म पाकिस्तान में रिलीज ना हो, जो वहां के सांस्कृतिक या राजनीतिक मानकों पर उचित ना हो.
2019 के बाद से बॉलीवुड की कोई फिल्म पाकिस्तान में रिलीज नहीं हुई है. इस साल जनवरी में जब शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान‘ को कराची के धनी इलाके डीएचए में सार्वजनिक रूप से दिखाया गया तो सेंसर बोर्ड ने उसकी स्क्रीनिंग रोक दी थी.
भारत और पाकिस्तान के रिश्ते कभी दोस्ताना नहीं रहे हैं. रिश्तों में इस तनाव का असर फिल्मों पर सबसे पहले होता है. फिर भी पाकिस्तान के फिल्म दर्शक बॉलीवुड और उसके सितारों के बड़े फैन हैं. शाहरूख खान वहां भी उतने ही बड़े स्टार हैं, जितने भारत में हैं. उनके अलावा आमिर खान, दीपिका पादुकोण और रणवीर कपूर को भी पाकिस्तान में खूब पसंद किया जाता है.
पिछले कुछ सालों में दक्षिण भारतीय फिल्मों को भी पाकिस्तान में खूब पसंद किया गया है. लेकिन उर्दू से समानता के कारण हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता का अब भी कोई जवाब नहीं है.
क्यों लोकप्रिय है बॉलीवुड?
इन दो दक्षिण एशियाई पड़ोसियों भारत और पाकिस्तान के लोग अक्सर एक-दूसरे से कहते मिल जाएंगे कि दोनों तरफ के लोग एक जैसे हैं. दोनों की भाषा, संस्कृति और रहन-सहन में बहुत अधिक समानताएं हैं. खासकर सिनेमा और संगीत तो करीब-करीब एक ही जैसा है.
पाकिस्तान एक्टर मोहिब मिर्जा कहते हैं, "पिछले दिनों एक टीवी होस्ट इसी विषय पर बात कर रहा था. उसका कहना था 1947 में बंटवारे से पहले दोनों इलाकों में एक ही जैसी फिल्में बन रही थीं. हमारे हीरो भी पहाड़ों में गीत गाते थे और पेड़ों के इर्द-गिर्द नाचते थे. लेकिन इसका असर क्या होता है, यह एक अलग सवाल है. बॉलीवुड असल में मौलिक नहीं है. उस पर दूसरे देशों का बहुत प्रभाव है.”
डॉयचे वेले से बातचीत में मिर्जा कहते हैं कि पाकिस्तान में लोगों को बॉलीवुड फिल्में इसलिए इतनी पसंद हैं क्योंकि उनकी मार्किटिंग बहुत जबरदस्त होती है. वह कहते हैं, "कुछ भी हो जाए, भारत में क्या हो रहा है ये खबर हमें मिल ही जाती है.”
लेकिन पत्रकार गाजी सलाहुद्दीन मिर्जा इससे इत्तिफाक नहीं रखते. वह कहते हैं, "पाकिस्तान में बॉलीवुड का इतना असर उसकी क्वॉलिटी के कारण है. उनकी फिल्में हम क्वॉलिटी और कंटेंट के कारण देखते हैं, जो हमारे यहां उतना अच्छा नहीं है. उन्होंने तकनीक में बहुत सुधार किया है. उनके पास बहुत बड़ा इंटरनेशनल मार्किट है इसलिए वे एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं और पैसा खर्च कर सकते हैं. भारत की आर्थिक सफलता की भी इसमें बड़ी भूमिका है.”
सब तो एक जैसा है
इसी महीने अपनी पहली फिल्म ‘गुंजल' रिलीज करने वाले फिल्मकार शोएब सुल्तान कहते हैं कि दोनों फिल्मों में बहुत समानताएं हैं. बॉलीवुड के बारे में वह कहते हैं, "यह एक विशाल उद्योग है. हमारे दर्शक उन फिल्मों को देखते हैं क्योंकि वे मनोरंजक होती हैं और सपने दिखाए जाते हैं.”
पाकिस्तान की अपनी एक बड़ी फिल्म इंडस्ट्री नहीं है. पैसा कमाने के लिए वहां के डिस्ट्रीब्यूटर और सिनेमा मालिक हॉलीवुड फिल्मों पर निर्भर रहते हैं. इसकी एक वजह यह भी है कि पाकिस्तानी फिल्में बहुत कम बनती हैं.
फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर नदीम मांडवीवाला कहते हैं, "जब तक हम फिल्में बनाना शुरू नहीं करते, लोग बॉलीवुड फिल्में देखते रहेंगे. दुनिया में यही दोनों देश ऐसे हैं जहां एक जैसी फिल्में बनती हैं. गाने, संगीत, कहानियां, पहनावा, भाषा सब कुछ एक जैसा है. वे इसे हिंदी कहते हैं, हम उर्दू कहते हैं. उनकी हिंदी में 80 फीसदी उर्दू अल्फाज होते हैं.”
पर बात सिर्फ मनोरंजन की नहीं है. मांडवीवाला इस बात की ओर ध्यान दिलाते हैं कि पाकिस्तान में हिंदी फिल्मों की अहमियत उससे कहीं ज्यादा है. वह कहते हैं, "हमारे लोग इंडिया के बारे में उनकी फिल्मों की वजह से ही इतना जानते हैं. पिछले 40 साल से पाकिस्तानी पब्लिक इंडियन कंटेंट देख रही है.”
2019 में जब पाकिस्तान ने भारतीय फिल्मों पर प्रतिबंध लगा दिया तो वहां के फिल्म उद्योग को खासी परेशानी हुई है. मांडवीवाला इसे अच्छा नहीं मानते. वह कहते हैं, "हम सरकार से कहते हैं कि दो ही विकल्प हैं. या भारतीय फिल्मों को इजाजत दें या फिर हर साल 100-150 फिल्में बनाएं, ताकि पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री जिंदा रहे.”
रिपोर्टः मोहम्मद सलमान, कराची