वैक्सीनेशन में ब्राजील और मैक्सिको से भी पीछे क्यों भारत
२ जून २०२१भारत 26 मई को 20 करोड़ से ज्यादा कोरोना वैक्सीन लगाने वाला दुनिया का तीसरा देश बन गया. लेकिन इस आंकड़े को लेकर देश में उत्साह नहीं दिखा क्योंकि अब भी देश में कोरोना वैक्सीन की जबरदस्त कमी बनी हुई है. यह बात वैक्सीन के लिए स्लॉट न मिलने, दूसरी डोज की समयसीमा बढ़ाए जाने और वैक्सीनेशन में आई कमी से उजागर होती है. जबकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक देश है, फिर भी वह अपनी जनसंख्या को वैक्सीनेट करने में ब्राजील और मैक्सिको से पीछे है.
देश में 1 अप्रैल से बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन की शुरुआत की गई थी. तब भारत में भी अपनी श्रेणी के अन्य देशों के बराबर ही वैक्सीनेशन हुआ था. 1 अप्रैल तक भारत में हर 100 में से 5 लोगों को कोरोना वैक्सीन लग चुकी थी, जबकि ब्राजील, चीन, रूस और मैक्सिको का यह आंकड़ा 6.7 से 9.7 के बीच था. लेकिन 26 मई तक भारत जहां अपने 100 में से 14 लोगों को ही वैक्सीन लगा सका है, वहीं चीन हर 100 में से 38 और ब्राजील 30 लोगों को वैक्सीनेट कर चुका था.
वैक्सीनेशन में पिछड़े देशों के पास भी पर्याप्त वैक्सीन, भारत में नहीं
इनके अलावा अमेरिका जो 1 अप्रैल तक अपने 100 में से 46 लोगों को वैक्सीनेट कर सका था, 26 मई तक हर 100 में से 86 लोगों को वैक्सीनेट कर चुका है. हालांकि जापान और फिलीपींस जैसे कुछ देश भी हैं, जो वैक्सीनेशन के मामले में भारत से पीछे है. लेकिन इन्होंने भी इतनी वैक्सीन जुटा ली है कि ये एक बार अपनी पूरी जनसंख्या का वैक्सीनेशन कर सकते हैं. इस मामले में भारत अभी बहुत पीछे है.
भारतीय वैज्ञानिकों के मुताबिक देश को हर्ड इम्युनिटी के करीब पहुंचने के लिए कम से कम अपनी 64% जनसंख्या को कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज देना जरूरी है. जिसके लिए अभी 140 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज की जरूरत है. इतनी डोज का प्रबंध करने में अभी महीनों का समय लगेगा.
कोरोना से सबसे प्रभावित भारत, फिर भी घट रहा वैक्सीनेशन
फिलहाल भारत दुनिया में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित है, फिर भी यहां वैक्सीनेशन में गिरावट आ रही है. दुनिया के 10 सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देशों पर ध्यान दें तो इनमें से 3 ऐसे हैं जहां वैक्सीनेशन की दर में भारी गिरावट आई है. इनमें भारत भी शामिल है. अन्य दो देश अमेरिका और बांग्लादेश हैं. अमेरिका अपनी ज्यादातर जनसंख्या को वैक्सीनेट कर चुका है, ऐसे में वैक्सीनेशन की दर में कमी आना सामान्य बात है. वहीं भारत में वैक्सीनेशन में गिरावट की बड़ी वजह वैक्सीन की उपलब्धता न होना है. ऐसे में जब बांग्लादेश वैक्सीन की आपूर्ति के सबसे बड़े हिस्से के लिए भारत पर ही निर्भर था, वहां भी वैक्सीनेशन में कमी चौंकाने वाली बात नहीं है.
हाउ इंडिया लिव्स डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर 1 अप्रैल को हुए वैक्सीनेशन से तुलना करें तो भारत के 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 22 में अब कम वैक्सीनेशन हो रहा है. केरल में रोजाना 66% और तेलंगाना में 64% कम लोगों को वैक्सीन लग रही है. जिन 14 राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों में वैक्सीनेशन तेज हुआ है, वे भी अपनी जनसंख्या के बहुत छोटे हिस्से का ही टीकाकरण कर सके हैं. जैसे उत्तर प्रदेश हर 1000 लोगों में से 72 को, बिहार 81 को, तमिलनाडु 102 को, झारखंड 105 को और असम 111 लोगों को ही वैक्सीन लगा सके हैं. ये राज्य वैक्सीनेट हो चुकी जनसंख्या के मामले में हिमाचल प्रदेश (32%), दिल्ली (27.9%), उत्तराखंड (25.2%), गुजरात (25.2%) और केरल (24.6%) से पीछे हैं. ऐसे में कई राज्यों ने अपने यहां वैक्सीन की कमी की शिकायत केंद्र सरकार से की है.
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वैक्सीन लगवाने वालों की लाइन लंबी होती गई, नहीं बढ़ी वैक्सीन
मई के महीने में बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच जब वैक्सीनेशन तेज किए जाने की जरूरत थी, तब वह वैक्सीन की कमी के चलते धीमा पड़ गया. जानकार सरकार की खराब प्लानिंग को इसकी वजह बताते हैं. दरअसल एक ओर पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध नहीं थी, वहीं दूसरी ओर सरकार ने वैक्सीन लगवाने वालों की संख्या भी बढ़ा दी.
देश में सामान्य लोगों के लिए मार्च से वैक्सीनेशन शुरू हुआ था और 60 साल से अधिक के लोगों और 45 साल से अधिक के गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को वैक्सीन लगाई जाने लगी थी. 1 अप्रैल से 45 साल से ऊपर के सभी लोगों को वैक्सीन लगाई जाने लगी. अभी इस आयु वर्ग में सभी को वैक्सीन लगी भी नहीं थी कि 1 मई से वैक्सीनेशन प्रोग्राम में 18 साल से अधिक के सभी लोगों को शामिल करने की घोषणा कर दी गई. इससे भारत में वैक्सीन लगवाने वालों की संख्या करीब 110 करोड़ हो गई. उन्हें दोनों डोज लगवाने के लिए 220 करोड़ वैक्सीन डोज की जरूरत थी.
ऐसे में वैक्सीन खरीद का बोझ बढ़ा, जिसके लिए केंद्र ने 18-44 साल के लोगों के टीकाकरण के लिए राज्यों को वैक्सीन खरीदने का आदेश दिया. फिर भी सभी वयस्कों को वैक्सीनेशन में शामिल करने से वरिष्ठ नागरिकों के लिए पर्याप्त वैक्सीन की क्षमता भी प्रभावित हुई. कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच सुपर स्प्रेडर माने जा रहे युवा लोगों को वैक्सीनेशन को प्राथमिकता में न रखने के लिए भी जानकारों ने सरकार पर सवाल उठाए. लेकिन वैक्सीन की पर्याप्त उपलब्धता न होने के चलते इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ और अब भी 18-44 आयु वर्ग के लोगों के लिए वैक्सीन पाना आसान नहीं है.
सोशल मीडिया पर बन रहा मजाक, बड़ी आबादी के छूटने का खतरा
18-44 आयु वर्ग के वैक्सीनेशन के लिए CO-WIN ऐप के जरिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है. ऐप पर भी वैक्सीनेशन के लिए स्लॉट मिल पाना आसान नहीं है. हफ्तों के प्रयास के बावजूद लोग स्लॉट ढूंढ पाने में असमर्थ हैं. यही वजह है कि भारत में सोशल मीडिया कोरोना वायरस वैक्सीन के लंबे इंतजार से जुड़े व्यंग्य से भरा हुआ है. दिल्ली जैसे राज्यों की ओर से वैक्सीन की कमी इसकी वजह बताई जा रही है. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर खट्टर ने अपने बयान में वैक्सीन कमी के चलते वैक्सीनेशन धीमा करने का इशारा भी किया है.
वहीं देश की सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वैक्सीनेशन के लिए इंटरनेट की अनिवार्यता के मामले पर गंभीर चिंता जताई और एक बड़े वर्ग के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट न होने की बात कही और ऐसे लोगों के वैक्सीनेशन से छूट जाने का डर जताया.
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जून में बदलाव की उम्मीद नहीं, दूसरी डोज का समय बढ़ने से भी समस्या
वैक्सीन की कमी से जुड़ी खबरों के बीच अब सरकार ने जून महीने में देश के पास 12 करोड़ वैक्सीन डोज होने की बात कही है. इनमें से कई डोज उन्हें भी दी जाएंगी, जिन्हें पहले एक डोज लग चुकी है. ऐसे में जून में भी भारत में कुल वैक्सीनेटेड लोगों का आंकड़ा 30 करोड़ के पार जाने की उम्मीद नहीं है. यानी जून तक भी भारत अपने हर 100 में से 20-22 लोगों को ही वैक्सीनेट कर सका होगा.
अब भी जहां वरिष्ठ नागरिकों को सीधे वैक्सीनेशन सेंटर पर वैक्सीन मिल जा रही है, कोवीशील्ड (95% लोगों को दी जा रही वैक्सीन) की दूसरी डोज का समय सरकार ने करीब 45 दिन से बढ़ाकर 84 दिन कर दिया है. ऐसे में वरिष्ठ नागरिकों को वैक्सीन सेंटर से लौटा दिया जा रहा है. सरकार की ओर से आदेश भी जारी किया गया है कि अगर कोई वरिष्ठ नागरिक दूसरी डोज के लिए पूर्वनिर्धारित समय पर आए तो उसे दूसरी डोज दी जाए लेकिन इसका पालन नहीं किया जा रहा है. इसके अलावा दूसरी डोज का समय बढ़ाने के पीछे ब्रिटिश वैक्सीनेशन मॉडल को वजह बताया गया था लेकिन ब्रिटेन ने अब यह तीन महीने की समयसीमा घटा दी है. ऐसे में एक बार फिर पर्याप्त वैक्सीन न होने की बातें उठ रही है.
अमेरिकी निर्यात प्रतिबंध भी उत्पादन क्षमता बढ़ाने में बन रहे हैं रोड़ा
बड़े प्लास्टिक कंटेनर और फिल्टर जैसी चीजें भी वैक्सीन के निर्माण के लिए जरूरी होती हैं. इनकी कमी से भी वैक्सीन निर्माण की प्रक्रिया धीमी हो रही है. इन चीजों के निर्यात पर अमेरिका ने बैन लगा रखा है ताकि फाइजर अमेरिका के लिए वैक्सीन निर्माण कर, वहां की जरूरतों को पूरा कर सके. अदार पूनावाला पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि ऐसे प्रतिबंधों से सप्लाई चेन में जबरदस्त गिरावट आ सकती है.
इस बीच भारत में पिछले दो महीने के मुकाबले कम हो रहे कोरोना संक्रमण के मामले थोड़ी राहत की उम्मीद जगाते हैं लेकिन अब भी 6 राज्यों में रोजाना संक्रमण के आंकड़े 10 हजार से ज्यादा हैं.