होमोसेक्शुएलिटी पर अब भी सवाल क्यों?
५ नवम्बर २०२४सऊदी अरब में बॉलीवुड फिल्में 'सिंघम अगेन' और 'भूल भुलैया 3' को बैन कर दिया गया है. दोनों फिल्मों के लिए अलग-अलग तर्क दिए गए हैं. सिंघम अगेन को बैन करने के पीछे धार्मिक टकराव का कारण बताया गया है. वहीं माना जा रहा है कि भूल भुलैया-3 को होमोसेक्शुएलिटी यानी समलैंगिकता के कारण निशाना बनाया गया है. यह दोनों फिल्में एक नवंबर को रिलीज हुईं.
होमोसेक्शुएलिटी को अब भी दुनिया के कई देशों में स्वीकार नहीं किया जाता है. अधिकतर खाड़ी देशों में धार्मिक और राजनीतिक दृष्टिकोण के चलते समलैंगिकता को स्वीकार्यता नहीं मिली है. इसके अलावा समलैंगिकता के बारे में अज्ञानता और भ्रम भी होमोसेक्शुएलिटी को न मानने और समझने का एक बड़ा कारण है. कई जगहों पर आज भी लोग समलैंगिकता को या तो कोई बीमारी या किसी की पसंद समझते हैं. वहीं विशेषज्ञ साफ बताते आए हैं कि यह किसी व्यक्ति की खुद की पहचान से जुड़ा एक प्राकृतिक लैंगिक अभिविन्यास है.
आज भी जहां अपराध है समलैंगिक होना
दुनिया के 72 देशों में समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता है. समलैंगिकता को अपराध मानने वाले देशों में एलजीबीटीक्यूआई+ समुदाय को असुरक्षा, भेदभाव, और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. अरब देशों में समलैंगिक संबंधों के लिए बेहद कठोर सजा का प्रावधान है. इंडोनेशिया समेत कुछ देशों में समलैंगिक शारीरिक संबंधों के लिए कोड़े मारने की सजा दी जाती है. वहीं, 13 देश ऐसे हैं जहां गे-सेक्स को लेकर मौत की सजा तक देने का प्रावधान है.
जर्मनी में काफी बदल सकता है गोद लेने का कानून
उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा जिले में स्थित शारदा विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ. सौरभ श्रीवास्तव डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "किसी फिल्म को कहीं पर बैन करना या विरोध करना काफी संवेदनशील मुद्दा होता है क्योंकि इस के पीछे कई पेंचीदा मसले और कई बार राजनीतिक मामले भी जुड़े होते हैं. हालांकि अगर इस फिल्म में किसी का अपमान या सामाजिक ताने-बाने को ठेस पहुंचाने की बात नहीं कही गई हो, तो इस पर रोक लगाना उचित नहीं है."
कोई मानसिक बीमारी नहीं, बुनियादी पहचान का मुद्दा
समलैंगिक लोगों को बीमारी या मनोवैज्ञानिक विकृति का नाम देने की बात पर मनोवैज्ञानिक डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं, "इसे विकृति मानने की बात तो बिल्कुल भी सही नहीं हो सकती इसे लेकर कई वैज्ञानिक अध्ययन हुए जिनसे यह साबित हो चुका है कि समलैंगिकता एक प्राकृतिक विविधता है, यह किसी व्यक्ति की पसंद या चुनाव नहीं है." डॉ. श्रीवास्तव ने लखनऊ विश्वविद्यालय में होमोसेक्शुएलिटी पर पहली पीएचडी थीसिस लिखी थी.
डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं कि जिन देशों में अभी भी समलैंगिकता को लेकर सवाल खड़े होते हैं, वहां की सबसे बड़ी परेशानी इस मुद्दे पर उनकी हिचक है. डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं, "समलैंगिक समुदाय भी समाज का एक हिस्सा ही है उस समुदाय के लोगों को देखकर हंसने या आगे बढ़ जाने से भ्रांतियां दूर नहीं होंगी. इसके बजाय उनके साथ बैठकर बात करने से समुदाय के बारे में समझ बढ़ सकती है. संवाद करने से ही परेशानियां हल हो सकती हैं. समलैंगिक समुदाय को समाज में स्वीकृति मिलनी चाहिए, उनको समान अधिकार मिले तो उस समुदाय का डर भी खत्म होगा और आपकी हिचक भी खत्म होगी."
अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन (एपीएस) ने 1973 में समलैंगिकता को मानसिक बीमारियों की सूची से हटा दिया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 1992 में समलैंगिकता को मानसिक विकारों की सूची से हटा दिया. इसके अलावा 130 से अधिक देश समलैंगिकता को मंजूरी दे चुके हैं.
भारत में सेम-सेक्स शादियों के अधिकार को लेकर जारी है संघर्ष
समलैंगिकों को आम बोलचाल की भाषा में एलजीबीटीक्यू यानी लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वियर कहा जाता है.
दुनिया में यूरोपीय देश नीदरलैंड्स ने समलैंगिक विवाह को पहली बार सन 2000 में मान्यता दी थी. सेम-सेक्स मैरिज को स्वीकार्यता देने वाले देशों में अधिकतर यूरोपीय और दक्षिण अमेरिकी देश ही हैं. एशिया में ताइवान, नेपाल और थाईलैंड में समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जा चुकी है. ऐसे कुल 32 देशों में ही समलैंगिक विवाह कानूनी रूप से मान्य हैं.
भारत में 2018 में आईपीसी की धारा-377 के तहत समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंध को तो अपराध की श्रेणी से बाहर निकाल दिया गया, लेकिन समलैंगिक को कानूनी मंजूरी नहीं मिली है. एलजीबीटीक्यू+ समुदाय इसे स्पेशल मैरिज एक्ट-1954 में शामिल करने की मांग करते आ रहे हैं.