कोरोना मरीजों के लिए पटना हाईकोर्ट ने क्यों किया हस्तक्षेप
३० अप्रैल २०२१यही वजह है कि अदालत ने राज्य सरकार के इंतजामों पर अंसतोष जताते हुए कहा कि ऑक्सीजन, दवा या बेड की कमी के कारण किसी की मौत होती है, तो इसे मानवाधिकार का उल्लंघन माना जाएगा. यह मौलिक अधिकारों की रक्षा करने वाले अनुच्छेद 21 का उल्लंघन भी है.
जनहित याचिकाओं को गंभीरता से लेते हुए न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह तथा न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह की खंडपीठ ने लगातार की जा रही सुनवाइयों के दौरान साफ कहा कि कोरोना संक्रमण से निपटने के सरकारी प्रयासों से अदालत संतुष्ट नहीं है.
अदालत का मानना था कि आम लोगों के लिए सरकारी अस्पतालों का दरवाजा बंद जैसा है. कहीं ऑक्सीजन नहीं होने तो कहीं बेड नहीं होने की बात कह कोविड मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है. भ्रम की स्थिति में लोग भटक रहे हैं, यह गलत है. कोर्ट ने मीडिया की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि राज्य में जिस तरह कोरोना फैल रहा, वह चिंताजनक है.
अस्पतालों में ऑक्सीजन है तो लोगों में घबराहट क्यों?
सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने अदालत को कोरोना पीडि़तों के लिए किए जा रहे सरकारी उपायों की जानकारी दी, किंतु इससे असहमत होते हुए कोर्ट ने कहा, "सब कुछ अच्छा है तो ऐसी तस्वीरें देखने को क्यों मिल रहीं. अस्पतालों में ऑक्सीजन है तो लोगों में घबराहट की स्थिति क्यों है."
अदालत ने यह भी जानना चाहा कि सभी अस्पतालों में सीटी स्कैन व एक्स-रे मशीन की क्या स्थिति है. कोर्ट ने कहा कि कोरोना निगेटिव या पॉजिटिव बताने के बजाए स्वास्थ्य विभाग को इंफेक्शन का लेवल बताना चाहिए. अस्पताल आए लोगों को भर्ती करने तथा उन्हें बेहतर इलाज की सुविधा दी जानी चाहिए न कि उन्हें भ्रम की स्थिति में भटकने के लिए छोड़ देना चाहिए.
अदालत ने कहा कि अगर कोई अस्पताल ऑक्सीजन के अभाव के कारण कोविड मरीज का इलाज नहीं कर पा रहा है तो वह इसकी सूचना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को दे. वे इसकी जानकारी जिला प्रशासन को देंगे. साथ ही अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि हरेक दिन आमलोगों को बताया जाए कि किस अस्पताल में कितने बेड खाली हैं और वहां ऑक्सीजन की उपलब्धता की क्या स्थिति है, ताकि आमजन में भ्रम की स्थिति न रहे.
तीन सदस्यीय कमेटी को दी मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी
राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि सभी अस्पतालों को जरूरतभर ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है, ऑक्सीजन की कमी नहीं है. सरकार के जवाब से अंसतुष्ट हो अदालत ने निर्देश दिया कि किस अस्पताल को कितनी ऑक्सीजन की सप्लाई की जा रही, किस अस्पताल में कितने बेड हैं तथा दवाओं की उपलब्धता की स्थिति रोजाना अदालत को बताई जाए.
इसके साथ ही खंडपीठ ने कोविड अस्पतालों में ऑक्सीजन, बेड व दवाओं तथा कोविड जांच की मॉनीटरिंग के लिए पटना एम्स के चिकित्सक की अगुवाई में तीन सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी गठित करते हुए स्वास्थ्य विभाग को इस कमेटी के मांगने पर सही आंकड़ा सौंपने का निर्देश दिया. पटना एम्स के प्रोफेसर डॉ. उमेश भदानी कमेटी के अध्यक्ष तथा पटना एम्स के प्रोफेसर डॉ. रवि कीर्ति व सीजीएचएस पटना के क्षेत्रीय पदाधिकारी डॉ. रवि शंकर सिंह सदस्य बनाए गए. सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारियों को राज्य के कोविड अस्पतालों के लगातार निरीक्षण का भी निर्देश दिया.
साथ ही यह भी पूछा कि बिहार को जितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता है उतनी आपूर्ति की जा रही है या नहीं. कहीं इसमें कटौती तो नहीं की जा रही. राज्य सरकार को भी 194 एमटी ऑक्सीजन की आपूर्ति केंद्रीय कोटे से हुई या नहीं, यह सुनिश्चित करने को कहा गया.
इधर मारामारी, उधर हजार बेड खाली
प्रतिदिन होने वाली सुनवाई के दौरान बीते बुधवार को तीन सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी ने गठन के पहले दिन कोर्ट को बताया कि राजधानी पटना में ऑक्सीजन की कमी व अनिश्चित आपूर्ति के कारण पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच), इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आइजीआइएमएस) तथा मेदांता अस्पताल में हजार से ज्यादा बेड खाली पड़े हैं. वहां कोविड मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है.
कमेटी ने बताया कि पीएमसीएच में 1750 बेड में 770 तथा आइजीआइएमएस में 1070 में 250 बेड कोविड मरीजों के लिए हैं, जबकि मेदांता के 500 बेड पर अभी तक भर्ती शुरू नहीं हुई है. इस पर नाराजगी जताते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार की रिपोर्ट व दावों पर पहले ही अदालत को संदेह था इसलिए एक्सपर्ट कमेटी से जांच करवाई गई.
सही नहीं था ऑक्सीजन आपूर्ति का सरकारी प्लान
खंडपीठ ने कहा, रिपोर्ट से जाहिर है कि राज्य सरकार ने ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए जो एक्शन प्लान बनाया था, वह कतई सही नहीं था. अदालत ने सरकार को इन सभी अस्पतालों में 24 घंटे निर्बाध ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए कार्ययोजना पेश करने का आदेश दिया. कहा, "सरकारी दावे के अनुसार ऑक्सीजन की कमी नहीं है तो कैसे कोरोना मरीजों की मौत हो रही है. यह दुखद है कि केंद्र की ओर से तय 194 एमटी में केवल 90 एमटी ऑक्सीजन का उठाव हुआ. फिर भी सरकार कह रही है कि अस्पतालों में ऑक्सीजन है."
कोर्ट ने यह भी कहा कि समस्या का यह समाधान नहीं है कि अस्पतालों में बेड की संख्या घटा दी जाए. अगर सुविधा नहीं है तो उसे बढ़ाने और संसाधन उपलब्ध कराने की व्यवस्था होनी चाहिए. अदालत ने साफ कहा कि ऑक्सीजन या दवा की कमी से किसी की मौत नहीं होनी चाहिए, सरकार के हर एक्शन पर कोर्ट की नजर है. रोजाना चल रही सुनवाई के बीच गुरुवार को राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि केंद्रीय कोटे से मिलने वाली लिक्विड ऑक्सीजन की निर्बाध आपूर्ति एक हफ्ते में शुरू हो जाएगी. इसके लिए पांच क्रायोजेनिक टैंकर का इंतजाम किया गया है. तथा आइजीआइएमएस सहित प्रदेश के नौ मेडिकल कालेज अस्पताल, जो डेडिकेटेड कोविड अस्पताल बनाए गए हैं, वहां ऑक्सीजन प्लांट भी जल्द शुरू हो जाएगा. वहीं अदालत ने पूछा कि अगली सुनवाई में शुक्रवार को सरकार यह बताए कि एक हफ्ते में रोजाना केंद्रीय कोटे से कितनी ऑक्सीजन की आपूर्ति अस्पतालों को हो सकेगी.
जाहिर है, अदालत कोविड मरीज के उपचार को लेकर काफी सतर्क व सजग है. स्थिति पर कोर्ट की पैनी निगाह का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार द्वारा बताया गया था कि कोविड संक्रमित मरीजों को कोरोना किट दी जा रही है. अदालत ने सुनवाई के दौरान भी इसके संबंध में तहकीकात की तथा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को यह बताने को कहा कि हाईकोर्ट में जो कोरोना पॉजिटिव मिले थे, उन्हें यह किट दी गई या नहीं.
डॉक्टरों को हड़ताल पर न जाने दें
खंडपीठ ने जान हथेली पर रखकर कोविड के मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों तथा अन्य हेल्थ वर्करों के साथ दुव्र्यवहार या मारपीट की घटनाओं पर भी कड़ा एतराज जताया. कहा, "ऐसी खबरें मिल रहीं हैं कि कोरोना वॉरियर्स के खिलाफ मारपीट की घटनाएं हो रहीं हैं. उन पर हमला या उनसे किसी तरह का दुव्र्यवहार अदालत बर्दाश्त नहीं करेगी."
खंडपीठ ने चिकित्सकों व हेल्थवर्करों के साथ मारपीट करने वालों के खिलाफ फौरन कार्रवाई करने का निर्देश दिया. विदित हो कि इससे पहले एनएमसीएच में कोविड मरीज की मौत से आक्रोशित परिजनों ने डॉक्टरों व हेल्थवर्करों से मारपीट की थी जिसके बाद समुचित सुरक्षा की मांग करते हुए वहां के जूनियर (पीजी) डॉक्टर हड़ताल पर चले गए थे. हालांकि दूसरे दिन वे समुचित आश्वासन पर काम पर लौट आए किंतु बुधवार को एक और मरीज की मौत पर हंगामे व मारपीट के बाद एनएमसीएच के जूनियर डॉक्टर फिर हड़ताल पर चले गए. उनका कहना था कि जितने संसाधन उपलब्ध हैं, उसमें इलाज किया जा रहा है.
एनएमसीएच जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. रामचंद्र कुमार ने कहा, ‘‘जब तक स्वास्थ्य कर्मियों की कमी रहेगी, ऐसी घटनाएं होती रहेंगी. करीब 150 इंटर्न भी नहीं आ रहे, इससे चिकित्सकों की और कमी हो गई है.'' सुनवाई के दौरान ही सूचना मिलने पर अदालत ने राज्य सरकार के वकीलों से मौखिक तौर पर कहा, "हाथ जोड़ें या पांव पकड़े, डॉक्टरों को हड़ताल पर नहीं जाने दें." कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता अंजनी कुमार से अनुरोध किया कि वे खुद पहल कर हड़ताल खत्म करवाने की कोशिश करें. सप्ताह भर के अंदर दूसरी बार ऐसी नौबत आ गई थी.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप किया है. बिहार में इसका लंबा इतिहास रहा है. लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनी गईं सरकारें अपनी गति में चलती हैं क्योंकि अपनी लोकप्रियता का पैमाना तो वे खुद तय करतीं हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो कोरोना की इसी लहर के बीच सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ दिल्ली, मद्रास, जबलपुर व इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी कड़ा रूख अख्तियार नहीं करना पड़ता.