राज्यसभा चुनाव: कांग्रेस ने उतारी सिर्फ एक महिला उम्मीदवार
१ जून २०२२कांग्रेस के राज्यसभा चुनाव उम्मीदवारों के नामों के ऐलान के साथ ही पार्टी में घमासान जारी है. राजस्थान, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों से बाहरी लोगों को उतारने पर पार्टी के ही नेता सवाल उठा रहे हैं. आरोप लग रहे हैं कि टिकट बंटवारे में गांधी परिवार के सदस्यों के करीबी नेताओं को वरीयता दी गई है. इसी साल हुए उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस ने 40 फीसदी टिकट महिलाओं को दिया था और कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी ने नारा दिया था "लड़की हूं, लड़ सकती हूं" लेकिन राज्यसभा चुनाव के लिए जो टिकट बांटे गए हैं उन 10 नामों में केवल एक महिला है. पार्टी ने बिहार की पूर्व लोकसभा सांसद रंजीत रंजन को छत्तीसगढ़ से उतारा है. उनके अलावा कोई भी उम्मीदवार महिला नहीं है.
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नेताओं का छलका दर्द
कई नेता टिकट बंटवारे को लेकर सोशल मीडिया पर अपना दर्द शब्दों में बयान कर रहे हैं. सबसे पहले पार्टी के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने ट्विटर पर लिखा, "शायद मेरी तपस्या में कुछ कमी रह गई." इसके बाद मुंबई कांग्रेस की उपाध्यक्ष नगमा ने भी ट्वीट कर अपना दर्द बयान किया. उन्होंने लिखा, "हमारी भी 18 साल की तपस्या कम पड़ गई इमरान भाई के आगे." इसके अगले दिन उन्होंने एक और ट्वीट किया और कहा, "सोनिया गांधी ने 2003-04 में मुझे राज्यसभा में भेजने के लिए व्यक्तिगत रूप से वादा किया था, जब मैं उनके कहने पर पार्टी में शामिल हुईं. उस वक्त पार्टी सत्ता में नहीं थी. तब से 18 साल हो गए हैं, उन्हें कोई मौका नहीं मिला. इमरान को राज्यसभा भेजा गया है. मैं पूछती हूं कि क्या मैं कम योग्य हूं."
कांग्रेस ने इमरान प्रतापगढ़ी को महाराष्ट्र से उम्मीदवार बनाया है और राज्य के कई नेता इससे खफा हैं. शायर से नेता बने प्रतापगढ़ी साल 2019 का लोकसभा चुनाव भारी मतों से हार गए थे. प्रतापगढ़ी को उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के महासचिव डॉ. आशीष देशमुख ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. वहीं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भी अपनी नाराजगी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सामने दर्ज कराई है.
कांग्रेस के टिकट बंटवारे पर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट कर बीजेपी और कांग्रेस की कार्यशैली के अंतर के बारे में लिखा, "बीजेपी और कांग्रेस की कार्यशैली में अंतर जानने के लिए उनकी राज्यसभा सूचियों को देखें. बीजेपी कई लोगों को उनके गृह राज्य में मजबूत स्थानीय संपर्क के साथ इनाम देती है, कांग्रेस कई लोगों को समायोजित करती है जो एक राज्य से जुड़े भी नहीं हैं. एक है तेज 'राजनीतिक' सूची, दूसरी है 'वफादार' समायोजन."
जानकारों का कहना है कि जहां एक ओर बीजेपी राजनीतिक तौर पर कड़े और नए फैसले लेती हैं वहीं कांग्रेस में न केवल नए विचारों की कमी है बल्कि लीक से हटकर सोचने का साहस भी नहीं है.