चीन से अपने नागरिकों को निकालना भी खतरे से खाली नहीं
३ फ़रवरी २०२०फिलीपींस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि वहां 44 साल के एक चीनी व्यक्ति की मौत कोरोना वायरस के चलते हुई है. कोरोना वायरस की वजह से चीन के बाहर होने वाली यह पहली मौत है. मृत व्यक्ति चीन के वुहान प्रांत का रहने वाला था. वह 21 जनवरी को ही फिलीपींस आया था. वुहान इस वायरस का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है.
फिलीपींस में हुई यह मौत दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में इस वायरस से निपटने में आ रही परेशानियों को भी दिखाती है. कोरोना के मामले चीन के अलावा भारत, हांगकांग, जापान, मकाऊ, नेपाल, सिंगापुर, श्रीलंका, दक्षिण कोरिया, ताइवान और थाइलैंड में भी सामने आ चुके हैं. इस वायरस के चलते अब तक 361 लोगों की मौत हो गई है. चीन में इस वायरस के करीब 15 हजार मामले सामने आ चुके हैं.
एशियाई देशों की सरकारें इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए कई उपाय कर रही हैं लेकिन कई मुश्किलें भी सामने आ रही हैं. एशियाई देशों में पश्चिमी देशों जैसी व्यवस्था नहीं है, जहां संदिग्ध मरीजों को हवाई अड्डों से ही देश में नहीं घुसने दिया जा रहा है. संभावित मरीजों को मेडिकल सहायता उपलब्ध करवाई जा रही है. एशियाई देशों में इस वायरस का प्रसार महामारी का रूप ले सकता है.
चीन से निकालना भी खतरनाक
कई एशियाई देशों ने कोरोना वायरस से प्रभावित चीनी इलाकों की यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया है. इन इलाकों से आ रहे लोगों की भी कड़ी स्क्रीनिंग की जा रही है. कई देश कोरोना वायरस से प्रभावित चीनी इलाकों से अपने देश के नागरिकों को निकाल रहे हैं. भारत समेत कई देशों ने वुहान से अपने नागरिकों को निकाला है. बाकी देश भी ऐसे कदम उठाने पर विचार कर रहे हैं.
अपने नागरिकों को वुहान से निकालना एक चुनौती के साथ-साथ एक नैतिक दुविधा भी है. अगर इन लोगों को वुहान में छोड़ा जाता है तो इनकी जान को खतरा होगा लेकिन इन्हें वापस लाया जाता है तो इस वायरस के ज्यादा लोगों में फैलने का खतरा भी है. बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान जैसे देशों में इस वायरस से लड़ने के लिए पर्याप्त मेडिकल सुविधाएं नहीं हैं.
भारत ने 1 फरवरी को अपने नागरिकों को वुहान से निकालना शुरू किया. इनमें अधिकतर भारतीय विद्यार्थी हैं. इन नागरिकों को भारत में निगरानी में रखा गया है. चीन से लौटे एक व्यापारी आरिफ कहते हैं कि वुहान में स्थिति चिंताजनक हो चुकी है. वह कहते हैं, "लोग डरे हुए हैं. वो सर्दी-खांसी के लिए अस्पताल जाकर इलाज नहीं करवाना चाहते. वो घर पर ही इलाज ले रहे हैं. वहीं चीनी अधिकारी जबरदस्ती लोगों को अस्पताल में भर्ती करवा रहे हैं."
नाम ना छापने की शर्त पर भारत लौटे एक अन्य नागरिक ने कहा कि वुहान में हालात गंभीर हैं लेकिन चीन के दूसरे हिस्से इससे प्रभावित नहीं हैं. मीडिया स्थिति को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहा है. उन्हें लगता है कि कुछ दिनों में स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी.
पाकिस्तान ने अपने नागरिकों को वुहान से ना निकालने का फैसला लिया है. पाकिस्तान का मानना है कि वहां से नागरिकों को पाकिस्तान लेकर आना देशहित में नहीं होगा. इमरान खान के स्वास्थ्य सलाहकार जफर मिर्जा का कहना है, "चीन ने पहले ही ऐलान किया है कि कोई भी चीनी नागरिक बीमारी ठीक होने के 14 दिन बाद तक चीन से बाहर नहीं जाएगा. मैंने पाकिस्तान में चीनी राजदूत से भी मुलाकात की. इसके बाद हमने भी चीन के समान नीति पाकिस्तानी नागरिकों पर लागू की है."
वुहान में मौजूद एक पाकिस्तानी छात्र रिजवान शौकत ने मिर्जा के बयान पर निराशा जताई है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "मिर्जा का कहना है कि यहां हम सब सुरक्षित हैं जबकि यह सच नहीं है. हम यहां डरे हुए हैं. सभी देश वुहान से अपने नागरिकों को निकालने में लगे हैं सिवाय पाकिस्तान के."
एक और पाकिस्तानी छात्र अमजद हुसैन का कहना है कि इन नागरिकों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों के अनुसार ही निकालना चाहिए.
कमजोर स्वास्थ्य तंत्र
मेडिकल जनरल 'द लांसेट' के मुताबिक अधिकतर दक्षिण एशियाई देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति अच्छी नहीं है. 2016 की स्वास्थ्य सेवा रैंकिंग में बांग्लादेश 133, भारत 145 और पाकिस्तान 154वें स्थान पर था. इसलिए इन देशों में कोरोना वायरस के फैलने और इसके चलते मौतों की आशंका बहुत ज्यादा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेडरोस अदानोम गेब्रेयुस कहते हैं, "हमारी सबसे बड़ी चिंता कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं वाले इन देशों में इस वायरस फैलने को लेकर है. यह देश कोरोना वायरस से लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं." एक पाकिस्तानी अधिकारी ने बताया कि देश में कोरोना वायरस की जांच के लिए फिलहाल एक भी लैब नहीं है. यही वजह है कि पाकिस्तान सरकार वुहान से अपने नागरिकों को वापस नहीं लेकर आना चाहती.
पत्रिका फॉरेन पॉलिसी के मुताबिक कई वजहें हैं जिनसे दक्षिण एशियाई देश कोरोना वायरस के लिए आसान शिकार हो सकते हैं. पहली वजह है कि ये देश बड़ी जनसंख्या वाले हैं. यहां शिक्षा दर भी कम है, साफ-सफाई को लेकर जागरूकता भी कम है. साथ ही साफ पानी, दस्ताने और मास्क भी ज्यादा संख्या में उपलब्ध नहीं हैं. निजी अस्पताल छोटे और महंगे हैं जबकि सरकारी अस्पतालों में उस स्तर की सुविधाएं नहीं हैं कि इस वायरस से लड़ सकें. पत्रिका ने बताया कि कैसे मेडिकल निगरानी से बाहर आने के बाद नेपाल में एक व्यक्ति कोरोना वायरस से पीड़ित निकला.
हालांकि इस वायरस का फैलना अभी भी चीन द्वारा वुहान प्रांत में इसे रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर निर्भर है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर दक्षिण एशियाई देशों की सरकारों ने सही तरीके से कदम नहीं उठाए तो मुश्किल हो सकती है. कई देशों की कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी को लेकर मेडिकल इमरजेंसी घोषित की है.
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