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मलेरिया की पहली वैक्सीन को मंजूरी मिली

७ अक्टूबर २०२१

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन को मंजूरी दे दी है. हालांकि यह वैक्सीन सिर्फ 30 प्रतिशत प्रभावशाली है और इसकी चार खुराक लेनी पड़ेंगी.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/File/K. Prinsloo

अफ्रीका में हुए परीक्षणों के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन को मंजूरी दे दी है. इस वैक्सीन से दसियों हजार जानें सालाना बचाए जाने की उम्मीद की जा रही है. इसे ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन नाम की कंपनी ने बनाया है.

कई साल से जारी परीक्षणों के बाद बुधवार को डब्ल्यूएचओ ने मलेरिया वैक्सीन को मंजूरी दी. इसके परीक्षण अफ्रीका के कई देशों में हुए हैं जहां हर साल हजारों बच्चे इस बीमारी की भेंट चढ़ जाते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने यूएन के दो विशेष सलाहकार समूहों द्वारा समर्थन मिलने के बाद इस वैक्सीन को स्वीकृति का ऐलान करते हुए इसे ऐतिहासिक पल बताया.

क्या है वैक्सीन?

वैक्सीन को मॉस्कीरिक्स नाम दिया गया है. इसे 1987 में ब्रिटिश दवा कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन ने बनाया था. इसके बारे में डबल्यूएचओ महानिदेशक ने कहा, "इस वैक्सीन को अफ्रीका में अफ्रीकी वैज्ञानिकों ने तैयार किया है और हमें उन पर गर्व है.”

उन्होंने बताया कि इस वैक्सीन का इस्तेमाल मलेरिया रोकने के लिए उपलब्ध मौजूदा उपायों के साथ किया जाएगा ताकि हजारों बच्चों की जानें बचाई जा सकें. मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो मादा एनाफेलीज मच्छर के काटने से होती है. अब तक इसके लिए मच्छर मारने वाला स्प्रे या मच्छरदानी लगाने जैसे उपाय किए जाते रहे हैं.

मॉस्कीरिक्स में गंभीर मलेरिया को रोकने की क्षमता सिर्फ 30 प्रतिशत ही है. इसके लिए वैक्सीन की चार खुराकें लेनी होंगी और दवा से मिलने वाली सुरक्षा कुछ ही महीनों में खत्म हो जाती है. हालांकि इसके साइड इफेक्ट बहुत कम हैं जिनमें बुखार और ऐंठन शामिल हैं.

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खतरनाक है मलेरिया

सिर्फ अफ्रीका में हर साल 20 करोड़ लोगों को मलेरिया होता है जिनमें से चार लाख से ज्यादा लोगों की जान चली जाती है. इनमें से अधिकतर पांच साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं. 2019 में जितने लोग अफ्रीका में कोविड से मरे हैं, उससे ज्यादा लोग मलेरिया से मरे हैं.

दवा कंपनी जीएसके टीकाकरण अभियान के लिए अतिरिक्त धन जुटाने की कोशिश कर रही है. कंपनी का मकसद हर साल डेढ़ करोड़ खुराक बनाना है.

वैज्ञानिकों में उत्साह

डब्ल्यूएचओ के अफ्रीका निदेशक डॉ. मात्शिदो मोएती ने इस टीके को उम्मीद की किरण बताया है. उन्होंने कहा, "आज की यह सिफारिश महाद्वीप के लिए उम्मीद की किरण है, जिस पर इस बीमारी का सबसे ज्यादा बोझ है. हम उम्मीद कर रहे हैं कि और ज्यादा तादाद में बच्चे मलेरिया से बचाए जा सकेंगे और वे स्वस्थ वयस्क बनेंगे.”

कैंब्रिज इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल रिसर्च के निदेशक जूलियन रायनर ने कहा है कि यह बड़ा कदम है. उन्होंने कहा, "भविष्य की ओर यह एक बड़ा कदम है. यह टीका पूरी तरह दोषरहित नहीं है लेकिन यह लाखों बच्चों को मरने से बचाएगा.”

वैक्सीन का परीक्षण करने वाले डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञ समूह के प्रमुख रहे डॉ. आलेहांद्रो क्राविओतो कहते हैं कि इस टीके को बनाना आसान नहीं था. उन्होंने कहा, "अब तक भी हम बहुत ज्यादा प्रभावशाली होने की पहुंच में नहीं हैं लेकिन अब हमारे पास एक टीका है जो सुरक्षित है और जिसका इस्तेमाल किया जा सकता है.”

घर में घुस ही न पाएं मच्छर

इंपीरीयल कॉलेज लंदन में संक्रामक रोग विभाग के अध्यक्ष अरजा गनी के मुताबिक यह वैक्सीन प्रभावशाली साबित होगी. उन्होंने कहा, "30 प्रतिशत मामले कम होने से बहुत सारी जानें बचेंगी और बहुत सारी मांओं को अपने बच्चों को अस्पताल नहीं ले जाना होगा जिससे स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव कम होगा.”

ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी भी मलेरिया की एक वैक्सीन बना रही है जिसे 77 प्रतिशत तक प्रभावशाली बताया गया है. इसका 450 बच्चों पर एक साल लंबा परीक्षण हो चुका है.

वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, डीपीए)

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