आखिर क्या है धारा 377
भारत में समलैंगिकों के अधिकारों पर होने वाली बहस में अकसर धारा 377 का जिक्र आता है. क्या है ये धारा और क्यों बार-बार इसके खिलाफ आवाज उठती है, चलिए जानते हैं...
ब्रिटिश राज का कानून
साल 1861 से धारा 377 भारतीय दंड संहिता का हिस्सा है जिसमें समलैंगिक सेक्स को अपराध माना गया है. समलैंगिकों और उनके लिए आवाज उठाने वालों की मांग है कि इसे खत्म किया जाए.
42 देशों में 377
सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य के 42 पूर्व उपनिवेशों में धारा 377 मौजूद है, लेकिन सबसे पहले इसे भारत में लागू किया गया था.
अपराध
इस धारा के तहत प्राकृतिक यौन संबंधों यानी महिला और पुरूष के बीच सेक्स के अलावा अन्य यौन गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है.
उम्रकैद का प्रावधान
धारा 377 में उम्र कैद की सजा तक का प्रावधान है. हालांकि ऐसे कम ही मामले सामने आते हैं जब इस धारा के तहत किसी के खिलाफ मुकदमा चलता हो.
अहम फैसला
जुलाई 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए कहा कि दो समलैंगिकों के बीच अगर सहमति से सेक्स होता है तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा.
समलैंगिकों की जीत
समलैंगिकों ने दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले को अपने संघर्ष की जीत बताया. लेकिन कई संस्थाओं ने नैतिकता का हवाला देते हुए इस फैसले पर सवाल उठाया.
फैसला पलटा
दिसंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और कहा कि 377 को रखने या हटाने का फैसला, संसद कर सकती है, न्यायपालिका नहीं.
समलैंगिकों को झटका
अदालत के इस फैसले से समलैंगिकों और उनके अधिकारों के लिए काम करने वालों को झटका लगा. उन्होंने फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया.
समीक्षा याचिकाएं
6 फरवरी 2016 को चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि इस बारे में दाखिल की गईं 8 समीक्षा याचिकाओं पर पांच सदस्यों वाली संवैधानिक बेंच नए सिरे विचार करेगी.
मूल अधिकार
अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समानता का अधिकार मूल अधिकारों में शामिल है और इसीलिए समलैंगिकों के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.
गुपचुप गुपचुप
पुरुष समलैंगिकों के बीच यौन संबंध जैसे विषयों पर भारत में कभी खुल कर बात नहीं होती, खास कर गांवों में जहां भारत की 70 फीसदी आबादी रहती है.
'पश्चिमी संस्कृति का असर'
बहुत से लोग अब भी समलैंगिकता को एक मानसिक बीमारी समझते हैं. कई कट्टरपंथी संगठन इसे पश्चिमी संस्कृति का असर बताकर खारिज करते हैं.
मुकदमे
2016 में धारा 377 के तहत कुल 2,187 मामले दर्ज किए गए. इनमें से सात लोगों को दोषी करार दिया गया जबकि 16 को बरी कर दिया गया.
कहां कहां अपराध
अंतरराष्ट्रीय लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांस और इंटरसेक्स एसोसिएशन का कहना है कि कुल 72 देशों में समलैंगिकों के यौन संबंधों को अपराध माना जाता है.