सर्दियों में जानलेवा बनता प्रदूषण
सर्दियों के शुरू होने से ठीक पहले दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई इलाकों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है और स्मॉग की चादर बिछ जाती है. आखिर साल के इसी समय ऐसा क्यों होता है.
स्मॉग की चादर
उत्तर भारत के पूरे इंडो-गैंगेटिक इलाके में सर्दियों की दस्तक के साथ ही वायु की गुणवत्ता और गिरने लगती है. नवंबर में तो दिल्ली समेत कई शहरों को स्मॉग यानी स्मोक (धुआं) और फॉग (धुंध) की एक चादर ढक लेती है.
क्या प्रदूषण सिर्फ सर्दियों में होता है?
यह एक मिथक है. दरअसल भारत में प्रदूषण तो साल भर रहता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 21 शहर भारत में ही हैं. कई शहरों में तो वायु की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिए गए मानकों से 10 गुना ज्यादा खराब है.
क्या कारण हैं प्रदूषण के
प्रदूषण के इस जानलेवा स्तर के पीछे कई कारण हैं. इनमें औद्योगिक प्रदूषण और गाड़ियों का प्रदूषण ऐसे कारण हैं जो पूरे साल हवा की गुणवत्ता पर असर डालते रहते हैं. इनके अलावा कुछ और कारण भी हैं.
लकड़ी जलाना
भारत में अब भी कई परिवारों में जलती हुई लकड़ी पर खाना पकाया जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में हर साल 85,000 टन लकड़ी का इस्तेमाल ईंधन के रूप में होता है. यह भी प्रदूषण को बढ़ाने में अपना योगदान देती है.
पराली जलाना
इसके अलावा कई राज्यों में किसान फसलों की कटाई के बाद अगली फसल के लिए खेतों को तैयार करने के लिए उनमें बची हुई पराली को जलाते हैं. इसका धुआं भी हवा की गुणवत्ता पर असर डालता है.
मौसमी कारण
उत्तर भारत में सर्दियों में कई जगह गर्मी के लिए लकड़ियां और तरह तरह के जैव ईंधनों को जलाया जाता है. इस आग से निकला धुआं हवा की गुणवत्ता को और खराब करता है और प्रदूषण को बढ़ाता है.
जहरीला शहर
दिल्ली को अब दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में जाना जाता है. सर्दियों में तो राष्ट्रीय राजधानी में हालात इतने खराब हो जाते हैं कि बड़ी संख्या में लोगों को आंखों में जलन, गले में खराश और सांस लेने में परेशानी जैसी शिकायतें हो जाती हैं.
भौगोलिक स्थिति
थार रेगिस्तान के करीब होने की वजह से हवाएं दिल्ली में रेत और धूल भी ले आती हैं. उत्तर में तो कई बार अफगानिस्तान और मध्य पूर्व से आने वाली हवाएं भी धुल ले आती हैं.
हवा की गति
दिल्ली में सर्दियों में बाकी महीनों के मुकाबले हवा की गति बहुत कम हो जाती है. इस वजह से प्रदूषक बह कर आगे नहीं जाते और शहर के ऊपर ही फंस जाते हैं.
दिवाली
दिवाली में उत्तर भारत में पटाखे फोड़ने का चलन भी शहरों का दम घोंटने का काम कर रहा है. कई अध्ययनों में साबित हो चुका है कि दिवाली के एक दिन पहले हवा की गुणवत्ता का जो स्तर दिखता है वो दिवाली के दिन कई गुना नीचे गिर जाता है और फिर उसमें सुधार आने में कई दिन लग जाते हैं.
"खतरनाक" से "खराब" तक
जैसे जैसे हवा की गति बढ़ती है इस स्थिति में धीरे धीरे सुधार आता जाता है. लेकिन सुधार के बाद भी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता "खतरनाक" स्तर से "खराब" तक ही पहुंच पाती है. सिर्फ बारिश के मौसम में गुणवत्ता "अच्छे" स्तर पर पहुंच पाती है.