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क्या है डेट ब्रेक, जिसके कारण गिर सकती है जर्मनी की सरकार

सबीने किंकार्त्स
८ नवम्बर २०२४

जर्मनी में 'डेट ब्रेक' पर मतभेद के कारण सत्तारूढ़ गठबंधन टूट गया. वित्तमंत्री लिंडनर बर्खास्त कर दिए गए. उन्होंने बजट घाटे को पूरा करने के लिए कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाने से इनकार कर दिया था. आखिर क्या है डेट ब्रेक?

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यूरोपीय संघ के सम्मेलन में हिस्सा लेने हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट पहुंचे जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स
'बेसिक लॉ' में संशोधन के लिए संसद के दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन चाहिए. इतना बड़ा बहुमत अभी मौजूद नहीं हैतस्वीर: Denes Erdos/AP Photo/picture alliance

जर्मनी में केंद्र सरकार और देश के सभी 16 राज्यों की सरकारों को अपने खाते बैलेंस रखने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य किया जाता है. साथ ही, उन्हें व्यावहारिक तौर पर अतिरिक्त कर्ज लेने की मनाही होती है.

जी7 समूह में शामिल किसी अन्य देश में कर्ज लेने से जुड़ी इतनी सख्त सीमाएं नहीं हैं. ये नियम जर्मन संविधान 'बेसिक लॉ' में दर्ज हैं और केंद्र के साथ-साथ सभी 16 राज्यों पर लागू होते हैं. हालांकि, केंद्र सरकार को थोड़ी छूट दी जाती है.

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'बेसिक लॉ' के अनुच्छेद 109, पैराग्राफ 3 में कहा गया है, "केंद्र और 16 राज्यों के बजट, सैद्धांतिक रूप में, बिना कर्ज के बैलेंस होने चाहिए. इसका मतलब यह है कि राज्य सिर्फ उतना ही खर्च कर सकता है, जितनी रकम टैक्स और अन्य तरीकों से कमाता है. इस नियम को 'डेट ब्रेक' (कर्ज लेने की सीमा) कहा जाता है."

अक्टूबर 2021 की इस तस्वीर में एफडीपी पार्टी के नेता क्रिस्टियान लिंडनर और उस समय चांसलर पद के दावेदार रहे शॉल्त्स मीडिया को बयान दे रहे हैं
ओलाफ शॉल्त्स सरकार अल्पमत में आ गई है. विपक्ष उनसे जनवरी की जगह जल्द-से-जल्द विश्वास प्रस्ताव का सामना करने की मांग कर रहा हैतस्वीर: CHRISTOF STACHE/AFP

भावी पीढ़ियों को राहत

यह नियम पूर्व चांसलर और क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) की नेता अंगेला मैर्केल और उनकी वित्तमंत्री एवं सोशल डेमोक्रेट (एसपीडी) नेता पेयर श्टाइनब्रुक के कार्यकाल के दौरान साल 2009 में पेश किया गया था. इसे वैश्विक वित्तीय और आर्थिक संकट के बीच लाया गया और उस समय राष्ट्रीय कर्ज को लेकर काफी चर्चा हुई थी. 

प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को संबोधित भाषण में श्टाइनब्रुक ने इसे ऐतिहासिक महत्व का फैसला बताते हुए कहा था कि इससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए देश की वित्तीय स्थिति मजबूत रहेगी. हालांकि, इस प्रस्ताव पर एक विवादास्पद राजनीतिक बहस भी छिड़ी.

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तब विपक्ष में रही ग्रीन पार्टी और समाजवादी वामपंथी पार्टी इसके सख्त खिलाफ थीं. उनका तर्क था कि इससे देश और राज्य की काम करने की क्षमता सीमित हो जाएगी. वहीं, दूसरी ओर 'डेट ब्रेक' के समर्थकों की दलील थी कि जैसे-जैसे कर्ज का पहाड़ बढ़ता जाएगा, देश और राज्यों को ब्याज पर ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ेगा. समर्थकों का कहना था कि यह स्थिति और ज्यादा पाबंदियों की नौबत लाएगी और आने वाली पीढ़ियों पर बोझ पड़ेगा.

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बजट पर गहरे मतभेदों के कारण जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने वित्तमंत्री क्रिस्टियान लिंडनर को बर्खास्त कर दियातस्वीर: ODD ANDERSEN/AFP

2014 से 2019 तक संतुलित रहा बजट

केंद्र सरकार के लिए कर्ज लेने की सीमा का यह प्रावधान साल 2016 में कानूनी तौर पर बाध्यकारी बन गया. राज्य सरकारों पर 2020 से यह बाध्यता लागू हुई. हालांकि, यह कानूनी बाध्यता लागू होने से पहले 2014 में ही तत्कालीन केंद्रीय वित्तमंत्री वोल्फगांग शॉएब्ले (सीडीयू) ने 45 वर्षों में पहली बार संतुलित बजट पेश किया था.

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'ब्लैक जीरो' (श्वार्त्से नुल, जर्मन भाषा में) शॉएब्ले की उपलब्धि बताने के लिए गढ़ा गया एक खास विशेषणनुमा शब्द था और यह राजनीतिक नारा बन गया था. देश में खर्च और आमदनी बराबर हो गई थी. 

हालांकि, 'डेट ब्रेक' नियम केंद्र सरकार के लिए पूरी तरह लागू नहीं होता है. जबकि, राज्यों के लिए यह पूरी तरह लागू होता है. केंद्र सरकार को सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के अधिकतम 0.35 फीसदी के बराबर कर्ज लेने की अनुमति होती है. उदाहरण के लिए, साल 2022 में जर्मनी की कुल जीडीपी लगभग 3.88 ट्रिलियन यूरो थी. इसका मतलब है कि केंद्र सरकार 13 अरब यूरो तक का अतिरिक्त कर्ज ले सकती थी.

कोरोना वायरस और यूक्रेन युद्ध का असर

सरकार ने 2022 में तीन अंकों के बिलियन यूरो रेंज में उधार लिया. ऐसा इसलिए हुआ कि बुंडेस्टाग, यानी जर्मन संसद के निचले सदन ने 'अपवाद' के रूप में कर्ज लेने की सीमा में छूट को मंजूरी दी. यहां अपवाद का मतलब आपातकालीन स्थिति बताया गया. इससे पहले 2020 और 2021 में भी जर्मन संसद ने ऐसा किया था. तब कोरोना महामारी के असर और यूक्रेन युद्ध के कारण आर्थिक आपातकाल की स्थिति का संदर्भ दिया गया था. संसद ने दावा किया कि "अभूतपूर्व आपातकालीन स्थिति" है.

जर्मनी का संविधान प्राकृतिक आपदाओं या सरकार के नियंत्रण से बाहर किसी भी बड़ी आपात स्थिति में 'डेट ब्रेक' को अस्थायी रूप से स्थगित कर कर्ज की सीमा को बढ़ाने की अनुमति देता है. 2024 के बजट को लेकर हो रही मौजूदा बहस में सत्तारूढ़ सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) और ग्रीन पार्टी यूक्रेन युद्ध एवं ऊर्जा संकट के कारण उत्पन्न वित्तीय समस्याओं को देखते हुए आपातकाल की घोषणा करने की मांग कर रही हैं.

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इस बीच यह बहस भी छिड़ गई है कि क्या 'डेट ब्रेक' में सुधार किया जाना चाहिए. कुछ अर्थशास्त्री कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाने के पक्ष में हैं. उनका तर्क है कि यह बाध्यता सरकार को बुनियादी ढांचे और भविष्य की तकनीकों में निवेश करने से रोकती है.

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हालांकि, जल्द ही कोई बदलाव होने की संभावना नहीं है. 'बेसिक लॉ' में संशोधन के लिए संसद के दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन चाहिए. इतना बड़ा बहुमत अभी मौजूद नहीं है. प्रमुख विपक्षी दल 'सीडीयू' और उसकी क्षेत्रीय सहयोगी पार्टी 'सीएसयू' इस संशोधन के खिलाफ हैं. सीडीयू/सीएसयू साथ मिलकर संसद में सबसे बड़ा विपक्षी धड़ा है.