यूक्रेन युद्ध में उभरी यूरोप और अफ्रीका की दरार
२८ अक्टूबर २०२२इसी हफ्ते डाकर में हुई इंटरनेशनल फोरम ऑन पीस एंड सिक्यॉरिटी में यूक्रेन युद्ध एक बड़ा मुद्दा बना रहा. फ्रांस की विदेश मंत्री क्रिसोला जाखारोपोलो ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि रूस का आक्रमण महाद्वीप की स्थिरता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा है. उन्होंने कहा, "इसलिए हम अफ्रीका से एकजुटता की उम्मीद करते हैं.”
जाखारोपोलो ने रूस पर इल्जाम लगाते हुए कहा कि ऊर्जा और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल मचा दी है लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित अफ्रीकी देश हुए हैं. उन्होंने कहा, "इस आर्थिक, ऊर्जा और खाद्य संकट के लिए सिर्फ रूस जिम्मेदार है.”
यूरोप की तरफ से इस अपील का अफ्रीकी देशों ने नपा-तुला जवाब दिया. अफ्रीकन यूनियन के मौजूदा अध्यक्ष सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी साल ने कहा कि अफ्रीका यूक्रेन के खिलाफ नहीं है और "अफ्रीकी लोग स्थिति को लेकर संवेदनहीन नहीं हैं.” लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि बहुत से अफ्रीकी महसूस करते हैं कि उनकी आर्थिक, सुरक्षा और स्वास्थ्य स्थितियों को नजरअंदाज किया जा रहा है.
साल ने कहा, "अफ्रीकी कहते हैं कि जबकि यूक्रेन में युद्ध हो रहा है, हमले हो रहे हैं, आक्रमण हो रहे हैं, तब अफ्रीका स्थायी तौर पर आतंकवाद का सामना कर रहा है. यह 2022 है, कोई साम्राज्यवादी दौर नहीं. इसलिए सभी देश, भले ही वे गरीब हों, बराबर का सम्मान रखते हैं. उनकी समस्याओं से भी इज्जत से निपटा जाना चाहिए.”
यूक्रेन पर इतना ध्यान क्यों?
नाईजीरिया के पूर्व राष्ट्रपति महमदू इसोफू ने कहा कि यूक्रेनी सेना को इतना समर्थन मिलता देखना आहत करता है जबकि साहेल क्षेत्र को जिहादियों से लड़ने के लिए धन जुटाने के वास्ते संघर्ष करना पड़ रहा है. इसोफू ने कहा, "अफ्रीकियों के लिए यह खौफनाक है कि यूक्रेन पर अरबों की बारिश हो रही है जबकि साहेल की ओर से ध्यान पूरी तरह हट गया है.”
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पूर्व नाईजीरियाई राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि जी5 की जिहादियों के खिलाफ बनी सेना को बुरकीना फासो, मॉरितियाना, नाइजर और माली से सैनिक जुटाने थे लेकिन इसके लिए 40 करोड़ डॉलर जुटाना भी मुश्किल हो गया.
माली के विदेश मंत्री अब्दुलाए दाएप ने कहा कि उनका जुंटा-शासित जो देश इस साल ‘फ्रांस के बहुत ज्यादा दबाव' के चलते जी5 से बाहर हो गया, गैर बराबरी का शिकार रहा है. उन्होंने कहा, "यूक्रेन के लिए उन्होंने अफ्रीका को एक रुख अपनाने के लिए कहा है. कुछ ही दिनों में उन्होंने आठ अरब (डॉलर) जुटा लिए. यह दोहरे मानदंड वाली नीति है. काले, सफेद, लाल और पीले, सारे इंसानों की जिंदगियां बराबर हैं.”
अफ्रीकी देशों ने यूक्रेन मामले पर कई बार रूस का साथ दिया है. इस सम्मेलन के मेजबान सेनेगल के पश्चिमी देशों के साथ काफी करीबी संबंध रहे हैं. लेकिन 2 मार्च को जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस के खिलाफ एक प्रस्ताव आया तो कई अफ्रीकी देशों के साथ वह भी मतदान से गैरहाजिर रहा, जिसका फायदा रूस को ही मिला.
सेनेगल की विदेश मंत्री एसाटा टाल साल ने इसी हफ्ते फ्रांसीसी टेलीविजन टीवी5 मॉन्ड से बातचीत में बताया था कि उन्होंने रूस के खिलाफ प्रस्ताव पर मतदान क्यों नहीं किया. उनके मुताबिक मार्च में जब यह मतदान हुआ, तब उनके देश ने अफ्रीकी यूनियन की अध्यक्षता संभाली ही थी और यूएन में सेनेगल का कदम तब "साझा अफ्रीकी रूख” की जरूरत के मुताबिक था.
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हालांकि यह स्थिति अब भी वैसी ही है. 13 अक्टूबर को जब यूक्रेन के कुछ हिस्सों को अलग करने के लिए रूस की आलोचना का प्रस्ताव आया तब लगभग आधे अफ्रीकी देश मतदान से गैरहाजिर रहे.
अफ्रीका विविधता की ओर
अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मामलों पर काम क अमेरिकी थिंक टैंक स्टिमसन सेंटर के नॉन-रेजिडेंट फेलो ऑडे डार्नल कहते हैं कि अफ्रीका का यह रुख अचानक नहीं बना है और हाल के सालों में अफ्रीकी देश लगातार नए साझीदार खोजते रहे हैं.
डार्नल बताते हैं, "अफ्रीकी देश अपनी साझेदारियों में विविधता लाने के लिए भारत और तुर्की जैसी अन्य उभरती ताकतों व चीन और रूस जैसी स्थापित शक्तियों के साथ बराबरी के संबंध मजबूत बना रहे हैं. पिछले कुछ समय से वहां पश्चिम के कृपापूर्ण रवैये के प्रति एक उदासीनता तैयार हो रही है. अफ्रीकी देश हर दिशा से अपने हितों और साझेदारियों की रक्षा करना चाहते हैं.”
उधर अफ्रीकी सिक्यॉरिटी सेक्टर नेटवर्क (एएसएसएन) की अध्यक्ष नियाजेल बागायोको इस तर्क को नहीं मानतीं कि दुनिया ने अफ्रीका को अपने ही भरोसे पर छोड़ दिया है. वह कहती हैं, "अफ्रीका अंतरराष्ट्रीय एजेंडा के केंद्र में है. अगर हम शांति अभियानों और बाहरी दखलंदाजी का बजट देखें तो मध्यपूर्व एशिया के बाद अफ्रीका ही है जहां बीते दस साल में सबसे ज्यादा बाहरी दखलंदाजी हुई है. इसमें अमेरिकियों का छिटपुट दखल भी शामिल है
बागायोको कहती हैं कि उन्हें डर है कि अफ्रीकी नेताओं की प्रतिक्रिया ऐसे संकेत दे सकती है कि "अफ्रीकी सिर्फ उसी युद्ध को लेकर चिंतित हैं, जो उनकी अपनी सुरक्षा के लिए खतरनाक है.” वह कहती हैं, "यह मुझे उन यूरोपीय लोगों की याद दिलाता है जो सोचते हैं कि साहेल जैसे विवादों में दखल देने का मतलब सिर्फ इतना है कि वहां से आप्रवासी ना आएं. इसका खतरा यह है कि पश्चिमी देश भी जवाब में इसी तरह की प्रतिक्रिया दे सकते हैं. यानी अगली बार जब अफ्रीका में मदद के लिए निवेश की अपील होगी तब वे भी सिर्फ अपने बारे में सोच सकते हैं.”
वीके/सीके (एएफपी, एपी)