डार्विन के गालापागोस द्वीप में फटा ज्वालामुखी
८ जनवरी २०२२इक्वाडोर के जियोफिजियल इंस्टीट्यूट के मुताबिक गालापागोस द्वीप समूह के सबसे बड़े द्वीप इसाबेल आइलैंड का ज्वालामुखी फट रहा है. ज्वालामुखी ने स्थानीय समय के मुताबिक बुधवार शाम को लावा उगलना शुरू किया. वोल्फ नाम के इस ज्वालामुखी की राख आकाश में 3,793 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच चुकी है.
ज्वालामुखी विस्फोट से कितना खतरा
इक्वाडोर के अधिकारियों को कहना है कि फिलहाल दूसरे द्वीपों में रहने वाले लोगों को कोई खतरा नहीं है. ज्वालामुखी के आस पास नेशनल पार्क है. स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक पार्क में काम कर रहे आठ गार्डों और वैज्ञानिकों सुरक्षित निकाल लिया गया है. वैज्ञानिक दल वहां ज्वालामुखी की ढलान पर मिलने वाले दुर्लभ गुलाबी गिरगिट पर रिसर्च कर रहा था.
गुलाबी गिरगिट सिर्फ गालापागोस में ही पाए जाते हैं. इसाबेला आइलैंड में इनकी संख्या करीब 211 है. इनके अलावा ज्वालामुखी के करीब गालापागोस के विशाल कछुए और पीले गिरगिट भी पाए जाते हैं. ज्वालामुखी विस्फोट के बाद इन दुर्लभ प्रजातियों की पुख्ता जानकारी नहीं मिली है.
कहां हैं गालापागोस द्वीप?
गालापागोस द्वीप समूह दक्षिण अमेरिकी देश इक्वाडोर के तट से करीब 1000 किलोमीटर दूर प्रशांत महासागर में है. विषुवत रेखा के करीब और कम इंसानी दखल के कारण इन द्वीप समूहों में आज भी अनोखे जीव और पौधे पाए जाते हैं. वन्य जीवों और पौधों की कई ऐसी प्रजातियां हैं जो सिर्फ गालापागोस द्वीप समूहों में पाई जाती है. ये द्वीप समूह यूनेस्को विश्व धरोहर भी हैं.
गालापागोस में कई ज्वालामुखी सक्रिय हैं. 1,701 मीटर ऊंचा वोल्फ ज्वालामुखी भी इनमें से एक है. 33 साल तक शांत रहने के बाद 2015 में वोल्फ ज्वालामुखी सक्रिय हुआ. इसाबेला द्वीप पर चार और सक्रिय ज्वालामुखी हैं.
गालापागोस का विज्ञान से रिश्ता
1831 में इंग्लैंड के चार्ल्स डार्विन एक बड़े जहाज पर सवार होकर पांच साल की लंबी यात्रा पर निकले थे. दक्षिण अमेरिका के तटों का सर्वेक्षण करने के बाद 1835 में उनका जहाज गालापागोस में रुका. इस दौरान 22 साल के चार्ल्स डार्विन ने देखा कि इन सभी द्वीपों में जीवों की एक जैसी प्रजातियां रहती हैं, लेकिन सभी प्रजातियां अपने परिवेश के मुताबिक अलग अलग व्यवहार कर रही हैं. इस यात्रा ने एक नाकाम मेडिकल स्कॉलर माने जाने वाले चार्ल्स डार्विन को गालापागोस ने बदल दिया.
1836 में यात्रा खत्म होने तक डार्विन ने हजारों पन्नों के दस्तावेज तैयार कर दिए. इनमें जीवों, वनस्पतियों का डाटा भी था और कई विचार भी. 1859 में कई साल की मेहनत के बाद चार्ल्स डार्विन ने प्रकृति में क्रमिक विकास और अनुकूलन के सिद्धांत का दावा किया. मौजूदा जीव और वनस्पति विज्ञान आज भी इसी सिद्धांत पर चलता है.
ओएसजे/एडी (एएफपी, एपी, डीपीए)