डब्ल्यूएचओ से अलग हुआ अमेरिका
८ जुलाई २०२०अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने मंगलवार को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र को विश्व स्वास्थ्य संगठन से अलग होने की प्रक्रिया का नोटिस जारी कर दिया. यूएन के इस संगठन को सबसे अधिक सालाना आर्थिक मदद अमेरिका देता आया है. कोरोना वायरस को लेकर ट्रंप कई बार डब्ल्यूएचओ की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं और चीन की तरफ झुकाव का आरोप तक लगा चुके हैं.
हालांकि अमेरिका का डब्ल्यूएचओ से हटना अगले साल तक प्रभाव में नहीं आएगा. इसका मतलब है कि नए प्रशासन द्वारा इसे रद्द किया जा सकता है या फिर परिस्थितियां बदल सकती हैं. पूर्व उप राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि अगर वे चुनाव में जीत जाते हैं तो अपने कार्यकाल के पहले दिन ही इस फैसले को पलट देंगे.
ट्रंप ने मई में डब्ल्यूएचओ से अमेरिका के अलग होने की घोषणा कर दी थी. वो पहले ही कठोरता के साथ डब्ल्यूएचओ को "चीन की कठपुतली" बताते हुए उसकी भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं. ट्रंप प्रशासन के इस कदम की आलोचना भी शुरू हो गई है. स्वास्थ्य अधिकारियों और आलोचकों का कहना है कि विश्व स्तर पर अमेरिकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा.
बाइडेन ने कहा है कि नवंबर में चुनाव में अगर उन्हें जीत हासिल होती है तो वो दोबारा डब्ल्यूएचओ में शामिल हो जाएंगे. उन्होंने कहा, ''अमेरिकी तब सुरक्षित होते हैं जब अमेरिका वैश्विक स्वास्थ्य को मजबूत करने में लगा रहता है. राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले दिन, मैं डब्ल्यूएचओ में देश को फिर से शामिल करूंगा और विश्व मंच पर हमारे नेतृत्व को बहाल करूंगा.''
नवंबर में होने वाले चुनाव के मद्देनजर ट्रंप लगातार कोरोना वायरस महामारी पर चीन और डब्ल्यूएचओ की आलोचना करते आ रहे हैं. वक्त बीतने के साथ-साथ ट्रंप चीन और डब्ल्यूएचओ के प्रति और आक्रामक होते जा रहे हैं.
अमेरिका के विदेश विभाग का कहना है कि वह चाहता है कि डब्ल्यूएचओ में सुधार जारी रहे. पिछले दिनों ट्रंप ने कहा था कि डब्ल्यूएचओ उनके अनुराध करने के बाद भी जरूरी सुधार करने में विफल रहा है. इसलिए वे अपने संबंधों को खत्म कर देंगे. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश के प्रवक्ता ने कहा है कि वे डब्ल्यूएचओ से जानकारी को सत्यापित करने की प्रक्रिया में है कि अमेरिका अलग होने की अपनी सभी शर्तों को पूरी कर रहा है या नहीं.
अलग होने के नियम के मुताबिक अमेरिका को डब्ल्यूएचओ के प्रति वित्तीय दायित्वों को पूरा करना होगा. अमेरिका डब्ल्यूएचओ को सबसे ज्यादा वित्तीय सहायता देता आया है. हर साल वह डब्ल्यूएचओ को 45 करोड़ डॉलर से अधिक की फंडिंग करता है. मौजूदा समय में अमेरिका की देनदारी करीब 20 करोड़ डॉलर की है, जिसमें वर्तमान और पिछला बकाया शामिल है. डब्ल्यूएचओ को चेतावनी देने के दो हफ्ते बाद ही 29 मई को ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ से कहा कि वो सुधार कर ले या फिर अमेरिका का समर्थन खो दे. ट्रंप कहते आए हैं कि अगर कोरोना वायरस की शुरूआत में ही डब्ल्यूएचओ ने सही कदम उठाया होता तो दुनिया भर में इतनी तबाही नहीं मच रही होती.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
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