डेढ़ डिग्री गर्मी न संभली, तो आएगी तबाही!
2023 अब तक का सबसे गर्म साल रहा. वैज्ञानिक आंकड़े बताते हैं कि इन 365 दिनों में ग्लोबल वॉर्मिंग 1.48 डिग्री सेल्सियस के स्केल तक पहुंच गई. लेकिन क्या हालात इतने पर ही सिमट जाएंगे? और ऐसी चरम गर्मी का हम पर क्या असर होगा?
कितना गर्म था 2023
साबित हो चुका है कि 2023 हमारी जानकारी में अब तक का सबसे गर्म साल था. वैज्ञानिकों ने बताया कि बीते साल दुनिया का औसत तापमान, गर्मी के मौजूदा कीर्तिमानों से करीब 0.25 डिग्री ज्यादा रहा. ये बात खुद ही बेहद डरावनी है, लेकिन वैज्ञानिकों की एक और बड़ी चिंता है. तस्वीर में: लहरों के साथ बहकर आई एक जेलीफिश. जुलाई 2023 में भूमध्यसागर में रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया.
जलवायु परिवर्तन की रफ्तार बढ़ने का डर
कई वैज्ञानिकों ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि उन्हें जलवायु परिवर्तन की रफ्तार और बढ़ने का डर है. हम अभी ही डेढ़ डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के मुहाने पर हैं. पेरिस जलवायु समझौते में शामिल देशों को उम्मीद थी कि अगर हम इतनी वृद्धि तक सीमित रहें, तो बड़ी कामयाबी होगी. तस्वीर: फरवरी 2023 में गर्म लहर से चिली का बुरा हाल था. बेतहाशा गर्मी के बीच सैकड़ों जगहों पर जंगल में आग लग गई.
जलवायु परिवर्तन और अल नीनो का असर?
वैज्ञानिकों का कहना है कि बीते साल जलवायु का बर्ताव बहुत अजीब था. वो पसोपेश में हैं कि क्या इसकी वजह इंसानी गतिविधियों के कारण हो रहा क्लाइमेट चेंज और अल नीनो का मिला-जुला असर है. या फिर इसके पीछे कोई ज्यादा सुव्यवस्थित प्रक्रिया है, जो या तो शुरू हो चुकी है या होने वाली है. मसलन, यह थिअरी कि ग्लोबल वॉर्मिंग हमारी समझ से भी ज्यादा तेजी से हो रही है. तस्वीर: इटली में मिलान के पास नदी का सूखा किनारा
क्या है अल नीनो?
इसका संकेत हमें इस साल बसंत या गर्मी की शुरुआत तक मिल जाएगा, चूंकि इसी दौरान अल नीनो का असर कमजोर होने की उम्मीद है. अल नीनो, जलवायु का एक चक्र है. इस दौरान प्रशांत महासागर का पानी असामान्य रूप से गर्म हो जाता है. यह दो से सात साल की अवधि में लौटता है. इसका असर समुद्र के तापमान, लहरों की रफ्तार और ताकत, तटीय इलाकों में मछलियों की मौजूदगी और मौसम पर पड़ता है. तस्वीर: ब्राजील की पिरान्हा झील
बस अल नीनो नहीं है जिम्मेदार
तो अगर 2023 की तरह इस साल भी समुद्र का तापमान ज्यादा रहा और इस बार भी रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ी, तो यह अच्छा संकेत नहीं होगा. हालांकि 2023 के इतना भीषण गर्म होने की वजह बस अल नीनो नहीं है. जीवाश्म ईंधनों से निकली ग्रीनहाउस गैसें सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. तस्वीर: रोम के चिड़ियाघर में चिलचिलाती गर्मी से राहत पाने के लिए ठंडा खरबूज खाते मीरकैट्स
मौसम के स्वभाव में फर्क दिखा
लेकिन गर्मी की इस तस्वीर में एक पेचीदगी है. आमतौर पर औसत तापमान का अंतर सर्दी और बसंत में ज्यादा प्रत्यक्ष दिखता है. वहीं 2023 में सबसे ज्यादा गर्मी जून के आसपास शुरू हुई और कई महीनों तक रिकॉर्ड स्तर पर रही. तस्वीर: गर्मी से झुलसाए पौधे
औद्योगिकीकरण से पहले के मुकाबले क्या स्थिति
अमेरिका के नेशनल ओशेनिक एंड एटमॉस्फैरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने बताया कि 2023 में पृथ्वी का औसत तापमान 15.8 डिग्री सेल्सियस रहा. यह 2016 में बने रिकॉर्ड से 0.15 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. औद्योगिकीकरण से पहले के मुकाबले देखें, तो यह करीब 1.35 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि है. तस्वीर: विएना में हीट वेव के बीच पानी की बौछार में खेलते दो बच्चे
पृथ्वी के गर्म होने की रफ्तार बढ़ी है!
एनओएए में वैश्विक निरीक्षण के प्रमुख रस वोसे ने एपी से बातचीत में कहा कि वह पृथ्वी के गर्म होने की रफ्तार में इजाफा देख रहे हैं. पिछले साल की स्थितियों पर वोसे कहते हैं कि यह ऐसा था मानो हम अचानक ही सामान्य ग्लोबल वॉर्मिंग की सीढ़ी से थोड़े ज्यादा गर्म हिस्से में कूद गए हों. तस्वीर: ऑस्ट्रेलिया में गर्म लहर के बीच नदी की सतह पर बहती मरी मछलियां.
कई दहलीजें पार हुईं
2023 में गर्मी की कई दहलीजें पार हुईं. वैज्ञानिकों के पूर्वानुमान से ज्यादा गर्मी बढ़ी. 17 नवंबर को पहली बार पृथ्वी का तापमान अस्थायी तौर पर दुनिया के औसत तापमान के मुकाबले दो डिग्री सेल्सियस की वॉर्मिंग लिमिट के पार गया. जून से दिसंबर के बीच हर महीना रिकॉर्ड स्तर पर गर्म रहा. तस्वीर: लद्दाख में सिकुड़ते ग्लेशियर.
इतनी तेजी से बन रहे हैं नए रिकॉर्ड
नासा और एनओएए, दोनों के मुताबिक 2014 से 2023 के दरमियान 10 साल सबसे गर्म रहे हैं. पिछले आठ साल में तीसरी बार वैश्विक गर्मी का नया रिकॉर्ड सेट हुआ. वैज्ञानिक कहते हैं कि कीर्तिमानों का इतनी जल्दी-जल्दी टूटना ज्यादा बड़ी चिंता है. जलवायु में लगातार हो रहा बदलाव और इसकी तीव्रता सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात है. तस्वीर: फ्रांस में सूखे की गंभीर स्थिति थी. फोटो में नदी का सूखा बहाव दिख रहा है.
डेढ़ डिग्री के लक्ष्य का क्या होगा
कई जलवायु वैज्ञानिकों को अब ग्लोबल वॉर्मिंग के डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य में ज्यादा उम्मीद नहीं दिखती. वो चेताते हैं कि अब ये लक्ष्य सच्चाई के करीब नहीं लगता. हालांकि वो यह भी कहते हैं कि तकनीकी तौर पर इसे हासिल करना भले मुमकिन हो, लेकिन राजनैतिक तौर पर यह नामुमकिन है.