स्टेडियम में कोड़ेः लौट आया है तालिबान का क्रूर दौर?
२४ नवम्बर २०२२स्टेडियम में उत्साह से चीखती-चिल्लाती भीड़, सजा का खौफ खाए कुछ लोग और डरावने से दिखते हाथों में हथियार या चाबुक लिए खड़े तालिबान. यह ऐसा मंजर है जिसने 1990 के दशक में पूरी दुनिया को परेशान किया था. अफगानिस्तान से आतीं ऐसी तस्वीरें और वीडियो तब सबका ध्यान खींचती थीं. ये तस्वीरें तालिबान की क्रूरता का प्रतीक बन गई थीं. 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर फिर से कब्जा किया तो एक डर यह भी था कि ऐसे मंजर फिर से लौट आएंगे. शायद वह डर हकीकत में बदल गया है.
बुधवार को एक स्टेडियम में तीन महिलाओं समेत कुल 12 लोगों को कोड़े मारने की सजा दी गई. सजा देने के इस पूरे आयोजन को क्रूरतम रूप में लोगों तक पहुंचाने के सारे इंतजाम किए गए. राजधानी काबुल से दक्षिण में स्थित लोगर प्रांत के गवर्नर ने माननीय विद्वान, मुजाहिदीन, बुजुर्ग, कबीलों के नेताओं और स्थानीय लोगों को पुल अलाम कस्बे के स्टेडियम में आने का न्योता भेजा. सुबह 9 बजे के आयोजन का यह न्योता सोशल मीडिया के जरिए प्रसारित किया गया.
लौट आया वही दौर?
जिन्हें सजा मिली, उनमें से हरेक को 21 से 39 कोड़े लगाए गए. गवर्नर के दफ्तर में एक स्थानीय अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि अदालत ने उन्हें चोरी और अवैध संबंध बनाने के मामलों में दोषी पाया था. इस अधिकारी ने कहा कि उसे ज्यादा जानकारियां मीडिया के साथ साझा करने का अधिकार नहीं है.
इस अधिकारी ने बताया कि सैकड़ों लोग सजा देने के इस आयोजन को देखने पहुंचे थे. हालांकि लोगों के फोटो लेने या वीडियो बनाने पर प्रतिबंध था.
फैक्ट चेक: अपने वादों पर कितना खरा उतरा तालिबान?
तालिबान के लौटने के बाद यह पहली बार नहीं है जब इस तरह से लोगों को सार्वजनिक रूप से सजा दी गई है. इससे पहले 11 नवंबर को भी 19 पुरुषों और महिलाओं को कोड़े मारे गए थे. चोरी, घर से भागने और अवैध संबंध रखने के आरोप में इन लोगों को 39-39 कोड़ों की सजा दी गई थी.
इस पर तीखी प्रतिक्रिया भी हो रही है. ब्रिटेन में अफगान रीसेटलमेंट और शरणार्थी मंत्री की पूर्व विशेष सलाहकार शबनम नसीमी ने 20 नवंबर को एक वीडियो ट्विटर पर साझा किया था जिसमें एक व्यक्ति को एक महिला को कोड़ों से पीटते देखा जा सकता है. उस वीडियो को साझा करते हुए उन्होंने लिखा था, "यह अफगानिस्तान का नूरिस्तान प्रांत है जहां एक महिला को संगीत सुनने के लिए कोड़े मारे जा रहे हैं. तालिबान के अतिवादी शासन ने लोगों पर अपना खौफनाक आतंक शुरू कर दिया है. यह कब खत्म होगा?”
नहीं बदला तालिबान?
स्टेडियम में भीड़ जमा करके अपराधियों को सजा देने की यह प्रथा तालिबान के 90 के दशक के शासन की एक ऐसी डरावनी याद है जिसने तालिबान को एक क्रूर और खौफनाक शासन के रूप में लोगों के जहन में दर्ज किया था. 2021 में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया तो उसने बार-बार कहा कि वे पुराने तालिबान नहीं है और बदल गए हैं. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से महिलाओं को आजादी और मानवाधिकारों का ख्याल रखने जैसे वादे किए.
लोगर में यह मंजर दोहराया जाना बताता है कि तालिबान शरिया कानून को उसी रूप में लागू करने की मंशा रखता है. वहां के अधिकारी ऐसा कहने से झिझक भी नहीं रहे हैं. लोगर के डिप्टी गवर्नर इनायातुल्लाह शुजा ने एक बयान जारी कर कहा, "शरिया कानून ही अफगानिस्तान की सारी समस्याओं का हल है और उसे तो लागू किया ही जान चाहिए.”
तालिबान के लड़ाकों ने उठाईं किताबें, लौटे स्कूल
इसका अर्थ यह भी होता है कि 1996 से 2001 के दौरान तालिबान ने जिस तरह से राज किया, वही सब दोहराया जा सकता है. तब सजायाफ्ता अपराधियों को ना सिर्फ सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने की सजा दी जाती थी बल्कि पत्थरों से भी मारा जाता था और स्टेडियम में जमा करके सरेआम कत्ल कर दिया जाता था.
तालिबान ने दोबारा में सत्ता में आने के बाद अपने कई वायदे नहीं निभाए हैं. मसलन, महिलाओं पर पाबंदियां लगा दी गई हैं. उनके शिक्षा के अधिकार को सीमित कर दिया गया है. इसी हफ्ते तालिबान ने महिलाओं के मोबाइल सिम कार्ड खरीदने पर बैन लगा दिया है.
रिपोर्टः विवेक कुमार (एपी)