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बुर्के पर बैन लगाकर घिरा नीदरलैंड्स

१२ अक्टूबर २०१९

बुर्के पर बैन लगाने वाले अपने कानून की वजह से नीदरलैंड्स को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों का कहना है कि सहिष्णु समाज में इस तरह के कानून की "कोई जगह नहीं" हो सकती.

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Frauen beim Einkauf in Riad
तस्वीर: picture alliance/JOKER/K. Eglau

नस्लवाद पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष अधिकारी टेंडाई अच्यूम ने कहा कि यह बैन "नीदरलैंड्स में बढ़ रहे इस्लामोफोबिया" को दिखाता है. नीदरलैंड्स की संसद ने 2018 में बुर्के पर प्रतिबंध के कानून को पास किया जिस पर इस साल अगस्त से अमल शुरू हो गया है. इस कानून के तहत सरकारी इमारतों और सार्वजनिक परिवहन में चेहरे को ढंकने वाले कपड़े पहनने पर रोक है. 

नीदरलैंड्स का एक हफ्ते का दौरा करने के बाद अच्यूम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, "इस कानून का उस समाज में कोई स्थान नहीं है जो लैंगिक समानता को बड़े गर्व के साथ बढ़ावा देता है. इस कानून को लागू करने के इर्दगिर्द जो राजनीतिक बहस छिड़ी है उसका मकसद मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाना है. अगर निशाना बनाना मकसद नहीं था तो निश्चित तौर पर उसका असर यही हो रहा है."

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प्रतिबंध के तहत सार्वजनिक जगह पर लोगों की पहचान करना संभव होना चाहिए. यानी उनका चेहरा ढंका हुआ ना हो. ऐसे में यह प्रतिबंध चेहरे को ढंकने वाले हेल्मेट और टोपियों पर भी लागू होता है. इसका उल्लंघन करने पर 150 यूरो या करीब 11 हजार रुपये का जुर्माना देना होगा. धुर दक्षिणपंथी और इस्लाम विरोधी डच राजनेता खियर्ट विल्डर्स ने पहली बार 2005 में नकाब पर प्रतिबंध का प्रस्ताव रखा था.

अच्यूम ने अपनी रिपोर्ट में डच औपनिवेशिक इतिहास के मुश्किल मुद्दे को भी छुआ है. उन्होंने लिखा है कि सरकार को चाहिए कि वह लोगों को "व्यवस्थित नस्ली गुलामी के इतिहास के तौर पर दासता और उपनिवेशवाद के इतिहास" के बारे में बताने के लिए ज्यादा कदम उठाए.

पिछले महीने एम्सटरडम के एक संग्रहालय ने 17वीं सदी को "स्वर्ण युग" कहना बंद कर दिया है. यह वह दौर था जब नीदरलैंड्स उद्योग, सेना और कला के क्षेत्रों में एक महाशक्ति था. संग्रहालय का कहना है कि "स्वर्ण युग" कहकर हम 17वीं सदी के उन नकारात्मक पहलुओं पर पर्दा डालते हैं जिनमें गरीबी, युद्ध, बंधुआ मजदूरी और इंसानों की तस्करी शामिल हैं.

संग्रहालय के इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई. कॉलेज में डच इतिहास पढ़ने वाले प्रधानमंत्री मार्क रुटे ने इसे "बकवास" बताया.

अच्युम ने अपने नीदरलैंड्स दौरे में सरकारी अधिकारियों के अलावा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और समूहों से बात की. उन्होंने लैंगिक समानता और समलैंगिक अधिकारों को बढ़ावा देने वाले डच सरकार के कदमों की तारीफ की. उन्होंने कहा कि नस्ली और जातीय समानता को बेहतर बनाने के लिए भी ऐसे ही कदम उठाए जाने चाहिए. इस बारे में पूरी रिपोर्ट अगले साल प्रकाशित होगी.

नीदरलैंड्स की 1.7 करोड़ की आबादी में लगभग एक चौथाई लोग ऐसे हैं जिनके माता पिता में से किसी एक का जन्म नीदरलैंड्स से बाहर हुआ है. यह देश लंबे  समय तक बहुलतावाद की एक कामयाब मिसाल रहा है. लेकिन हाल के सालों में वहां इस्लाम विरोध और प्रवासी विरोध की आवाजें लगातार तेज हो रही हैं.

एके/एमजे (एएफपी, एपी)

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