फिर लग रहे हैं बीजेपी पर इतिहास से छेड़छाड़ के आरोप
५ अप्रैल २०२३2022 में एनसीईआरटी ने स्कूलों की जिन किताबों में बदलाव किये थे वो किताबें अब बाजार में आ गई हैं. इनमें प्राचीन और मध्ययुगीन काल से लेकर आधुनिक काल तक के बारे में अभी तक पढ़ाए जाने वाले कई तथ्यों को हटा दिया गया है. मम्लूक, तुगलक, खिलजी, लोधी और मुगल साम्राज्य समेत सभी मुस्लिम साम्राज्यों के बारे में जानकारी देने वाले कई पन्नों को हटा दिया गया है.
जाति व्यवस्था से भी जुड़ी काफी जानकारी को हटा दिया गया है, जैसे वर्ण प्रथा वंशानुगत होती है, एक श्रेणी के लोगों को अछूत बताना, वर्ण प्रथा के खिलाफ विरोध आदि. 2002 के गुजरात दंगे, आपातकाल, नर्मदा बचाओ आंदोलन जैसे जान आंदोलनों आदि जैसी आधुनिक भारत की कई महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी को भी हटा दिया गया है.
गांधी की हत्या का सच
लेकिन मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि नई किताबों में कुछ ऐसे अतिरिक्त बदलाव भी नजर आ रहे हैं जिनके बारे में एनसीईआरटी ने 2022 में घोषणा नहीं की थी. इंडियन एक्सप्रेस अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी सामग्री में कई विषय शामिल हैं.
12वीं कक्षा की राजनीतिक विज्ञान की किताब में गांधी की हत्या से जुड़े कई तथ्यों को अब हटा दिया गया है. जैसे, "हिंदू-मुस्लिम एकता लाने की उनकी निरंतर कोशिशों ने हिंदू चरमपंथियों को इतना भड़का दिया कि उन्होंने गांधीजी की हत्या करने की कई बार कोशिश की."
अखबार के मुताबिक गांधी की हत्या के बाद आरएसएस जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाए जाने की जानकारी को भी हटा दिया गया है. गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे "पुणे का एक ब्राह्मण" था और "एक चरमपंथी हिंदू अखबार का संपादक था" जैसे तथ्यों को भी 12वीं कक्षा की इतिहास की किताब से हटा दिया है.
गुजरात दंगों की जानकारी गायब
इनके अलावा कक्षा 11वीं की समाजशास्त्र की किताब में से 2002 गुजरात दंगों के बारे में आखिरी बची जानकारी को भी हटा दिया गया. पहले इस किताब में लिखा था कि दंगों के बाद गुजरात में जो हुआ वह दिखाता है कि सांप्रदायिक हिंसा से घेटोकरण भी बढ़ता है, लेकिन अब ये लाइनें गायब हैं. अखबार का कहना है कि इसी के साथ अब कक्षा छठी से 12वीं तक की एनसीईआरटी की किसी भी किताब में अब गुजरात दंगों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलेगी.
एनसीईआरटी का कहना है कि कोविड-19 महामारी की वजह से बच्चों की पढ़ाई का काफी नुकसान हुआ और इसलिए बच्चों की मदद करने के लिए उनके पाठ्यक्रम को कम करने का फैसला लिया गया.
एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी का कहना है कि इसके लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाई गई थी और ये सारे बदलाव उसी समिति के सुझाए हुए हैं. स्कूली किताबों के साथ छेड़छाड़ के इसी तरह के आरोप बीजेपी पर तब भी लगे थे जब 1998 से 2004 तक वो पिछली बार केंद्र में सत्ता में थी.