तालिबान और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव
२३ अप्रैल २०२२अफगान अधिकारियों का कहना है कि पूर्वी अफगानिस्तान के कुनार और खोस्त सूबों में पाकिस्तानी सेना के हमलों में मरने वालों की संख्या बढ़कर 47 हो गई है. इनमे ज्यादातर औरतें और बच्चे थे. काबुल और इस्लामाबाद में तैनात तालिबानी अधिकारी, सीमा पार हमलों पर काबू पाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. उन्होंने पाकिस्तान को नागरिकों की मौत पर आगाह भी किया है.
पिछले साल, पाकिस्तानी सरकार ने टीटीपी के साथ शांति समझौते पर बात करने के लिए तालिबान को शामिल किया था लेकिन एक महीना भी नहीं हुआ था कि समझौता टूट गया. इस बीच तालिबान ने टीटीपी के साथ समझौते के लिए आगे बढ़कर कोई उल्लेखनीय कोशिश भी नहीं की है.
एक ऑडियो संदेश में सरकारी प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने पत्रकारों को बताया कि "अफगानिस्तान इस्लामी अमीरात अपनी जमीन पर पाकिस्तान की ओर से हुई बमबारी और हमले की तीखी भर्त्सना करता है.”
'और बढ़ेगी अदावत'
मुजाहिद के मुताबिक, "ये क्रूरता है और अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच इससे अदावत और बढ़ेगी. हम लोग ऐसे हमले दोबारा न हो, इसके लिए तमाम विकल्पों का इस्तेमाल कर रहे हैं और ये भी याद दिला रहे हैं कि हमारी संप्रभुता का सम्मान किया जाए."
फ्रांस और कनाडा के पूर्व अफगानी राजदूत और अटलांटिक परिषद् में सीनियर फैलो उमर समद ने डीडब्ल्यू को बताया कि "पिछले हफ्ते जैसा कोई जवाबी हवाई हमला आगे कभी होता है, तो उसका निशाना बेगुनाह नागरिक नहीं होने चाहिए चाहे वे स्थानीय हों या शरणार्थी हों. ऐसी घटनाएं न सिर्फ आपसी विश्वास को खत्म करेंगी बल्कि उनसे और चरमपंथ फैलेगा."
घटना के बाद खोस्त में सैकड़ों नागरिक पाकिस्तान विरोधी नारे लगाते हुए सड़कों पर उतर आए.
अफगानिस्तान में पाकिस्तान के हमले में 45 लोगों की मौत
अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत और हडसन संस्थान में दक्षिण और मध्य एशिया के निदेशक हुसैन हक्कानी ने डीडब्ल्यू को बताया, "पाकिस्तान को कड़वा घूंट पीने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि तालिबान को उसकी कट्टर विचारधारा से ज्यादा मतलब है ना कि उसके वर्षों के अहसान और मदद से."
तालिबान ने शनिवार को काबुल स्थित पाकिस्तानी राजदूत को तलब किया और अफगानिस्तान में सैन्य हमलों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया. अफगानी अधिकारियों ने दावा किया है कि बहुत सारे नागरिकों की मौत तब हुई जब पाकिस्तानी जेट विमान अफगान सीमा के अंदर दाखिल हुआ. पाकिस्तान ने ऐसे किसी हवाई हमले करने से साफ इनकार किया है.
अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र सहयोग मिशन (यूएनएएमए- उनामा) ने भी नागरिकों की मौत पर चिंता जताई है. मिशन ने ट्विटर बयान में कहा, "खोस्त और कुनार सूबो में हुए हवाई हमलों में नागरिक मौतों की रिपोर्टों पर उनामा बहुत चिंतित है, मरने वालों में औरतें और बच्चे भी थे." मिशन ने ये भी कहा कि अधिकारी तथ्यों की छानबीन कर रहे हैं और नुकसान का जायजा ले रहे हैं.
क्रॉस-बॉर्डर हमले
पाकिस्तानी सेना पर टीटीपी के बढ़ते हमले सीमा पार से किए जा रहे हैं. बृहस्पतिवार को अफगान सीमा के पास एक चरमपंथी गुट ने घात लगाकर हमला कर दिया था जिसमें सात पाकिस्तानी सैनिक मारे गए. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने रविवार को जारी एक बयान में कहाः "पिछले कुछ दिनों मे पाक-अफगान सीमा पर हिंसक घटनाओं में महत्त्वपूर्ण बढ़ोत्तरी हुई है और पाकिस्तानी सुरक्षा बलों को सीमा पार से निशाना बनाया जा रहा है." बयान में ये भी कहा गया कि "नतीजों की परवाह किए बगैर" हमलों को अंजाम दिया गया था और ऐसे हमलों पर रोक लगाने के लिए अफगानी अधिकारियों को बार बार दी जा रही पाकिस्तानी ताकीद भी काम नहीं आई.
पाकिस्तानी सेना की बमबारी जिस खोस्त सूबे मे हुई थी, उसी की सीमा से लगे उत्तरी वजीरिस्तान इलाके में सैनिक मार गए थे. बृहस्पतिवार को पाकिस्तानी सेना ने बताया कि जनवरी से अफगानी सीमा के पास के इलाके में 128 हथियारबंद चरमपंथी मारे जा चुके हैं. इसी दरमियान चरमपंथियों के हाथों 100 सैनिकों की मौत भी हुई है.
संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और ब्रिटेन में पाकिस्तान की पूर्व राजदूत रह चुकीं मलीहा लोढ़ी ने डीडब्ल्यू को बताया, "हालांकि पाकिस्तान अफगानिस्तान के साथ सहयोगी ताल्लुकात चाहता था, लेकिन इस रिश्ते में भविष्य में खटास आ सकती है. क्योंकि तालिबान के अफगान सत्ता पर काबिज होने के बाद से सीमा पार आतंकी हमलों में आए उभार को लेकर पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. उसे उम्मीद थी कि तालिबान सरकार उसकी पश्चिमी सीमा को महफूज कर देगी लेकिन वो भी न हो सका. अफगानिस्तान में अपना बेस बनाकर वहां से टीटीपी के हमले जारी हैं."
उमर समद कहते हैं, "अफगानिस्तान आठ महीनों में एक तकलीफदेह सत्ता-पतन और नाटकीय बदलावों से गुजरा है. जबकि पाकिस्तान में कुछ ही दिन पहले सत्ता-राजनीति ने पलटी खाई है. क्षेत्रीय और वर्चस्व के झगड़ों से तय होने वाले दोतरफा रिश्तों पर असर डालने वाली नीतियों को दुरुस्त करने और फिर से पटरी पर लाने के लिए दोनों पक्षों को थोड़ा वक्त लगेगा. अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों के पास तनाव को खत्म करने या घटाने के विकल्प मौजूद हैं. अंदरूनी और बाहरी कारकों का मिलाजुला प्रभाव नया रास्ता निर्धारित करेगा."
हुसैन कहते हैं, "तालिबान को पाकिस्तान की जरूरत है और टीटीपी के साथ अपने वैचारिक जुड़ाव के साथ साथ वो पाकिस्तान के साथ अपने अच्छे रिश्तों का संतुलन बनाए रखने की कोशिश करेगा. अगर तालिबान, पाकिस्तानी सरकार के साथ कोई समझौता नहीं बना पाता है तो पाकिस्तान, टीटीपी के खिलाफ अफगानिस्तान में घुसकर कार्रवाई करने पर आमादा लगता है."
रिश्तों में खिंचाव की वजह क्या है?
विश्लेषक मानते हैं कि बहुत सारी ऐतिहासिक वजहें और विवाद हैं जिनके चलते दोनो देशों के बीच रिश्तों में खटास आने लगी है और सीमा पर हिंसक टकराव होने लगा है. समद ने डीडब्लू को बताया, "पूर्वाग्रह वाले अनुमानों के विपरीत, सीमा पार हमले नहीं रुके या ना ही उन पर काबू पा जा सका है. गलियारे को रोकने की सीमा प्रबंधन नीतियों के विरोध में जनजातीय प्रतिक्रिया भी आग में घी का काम कर रही है. टीटीपी जैसे गुटों या अफगानिस्तान में घुसते समूहों के रूप में सुरक्षा के जोखिम और चरमपंथ की चुनौतियां भी अपनी जगह हैं. तीसरा कारण स्मगलिंग और गैरकानूनी गतिविधियों को रोकाने से जुड़ा है. जिसका फायदा कई पक्षों को हो रहा है."
पाकिस्तान में फैल रहे हैं आईएस के लड़ाके
लोढ़ी कहती हैः सीमा पर तारबाड़ का मुद्दा भी अनसुलझे झगड़े का दूसरा स्रोत है. दोनों देशों के अधिकारियों के बीच तीखी नोकझोंक हो चुकी है. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अफगान सरकार को पाकिस्तान के भीतर गड़बड़ी फैलाने के लिए अफगानी जमीन के खुलेआम इस्तेमाल पर आगाह किया कि इस तरह वो आतंकवादियों को पोस रहा है. हक्कानी का कहना है, "अफगानिस्तान में चरमपंथियों को समर्थन की अपनी नीति का खामियाजा पाकिस्तान को भुगतते रहना होगा."
पाकिस्तान: सत्ता का संकट झेलते इमरान, क्यों लगा रहे हैं पश्चिमी देशों पर इल्जाम
हक्कानी के मुताबिक, "पाकिस्तान और अफगानिस्तान को ये समझना होगा कि पड़ोसियों की तरह कैसे रहते हैं, दोनों में से कोई भी पक्ष एक दूसरे की जमीन का इस्तेमाल हथियारबंद समूहों को समर्थन के लिए न करे. वैसे तालिबान के तहत ऐसा हो पाना आसान नहीं होगा."
समद कहते हैं, "दोनों पक्ष एक-दूसरे के मामलों में टांग न अड़ाएं और साथ आने की और कोशिशें करें. ये सही है कि तालिबान ने सर्वसम्मत्ति और एक समावेशी सरकार बनाने के कई मौके गंवा डाले हैं और ये भी हो सकता है कि हकीकत से बाहर की उम्मीदें लगाकर पाकिस्तान अपने हाथ जला बैठा हो, फिर भी इसका मतलब ये है कि चीजों को वापस पटरी पर लाने और एक रचनात्मक रास्ते की तलाश में नये सिरे से मुब्तिला होने की जरूरत है."