अफगानिस्तान में तालिबान के दो साल
१५ अगस्त २०२३इस मौके को अपनी जीत के जश्न के तौर पर मनाते हुए तालिबान ने अफगानिस्तान की आजादी पर, किसी भी खतरे से निपटने की बात दोहराई. तालिबान ने एक आधिकारिक बयान में कहा, काबुल पर विजय ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि कोई भी अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं कर सकता और यहां नहीं टिक सकता. किसी को भी अफगानिस्तान की स्वतंत्रता को खतरे में डालने की इजाजत नहीं दी जा सकती. अमेरिकी और नाटो सेनाओं की वापसी के बाद सत्ता में लौटने वाले तालिबान ने अपनी जड़ें अच्छे से जमा ली हैं.
अमेरिका के नेतृत्व में अफगानिस्तान में तैनात सेनाओं की 20 साल बाद 2021 में हुई वापसी की प्रक्रिया ने तालिबान को फिर सिर उठाने का मौका दिया था. 15 अगस्त के दिन तालिबान ने राजधानी काबुल में प्रवेश किया और राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया था. पश्चिमी देशों के सहयोग से बनी सेना खत्म हो जाने के बाद तालिबान को रोक सकने की कोई सूरत बाकी नहीं रही था. पिछले दो सालों में तालिबान ने तमाम ऐसे आदेश जारी किए हैं जिनसे मानवाधिकारों, खासकर महिला अधिकारों का उल्लंघन हुआ है.
अर्थव्यवस्था और सुरक्षा
देश में उनकी ताकत को चुनौती देने वाला कोई नजर नहीं आता. यहां तक कि तालिबान के भीतर किसी तरह की टूट भी फिलहाल नहीं दिखती क्योंकि पूरा तालिबान कट्टर विचारों वाले अपने नेताओं के पीछे खड़ा है. अर्थव्यवस्था के बुरे हाल में होने के बावजूद, तालिबान ने देश को किसी तरह थाम रखा है. अमीर देशों से निवेश की बातचीत भी चल रही है. यह तब है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान को औपचारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है. जहां तक आंतरिक सुरक्षा का सवाल है, इस्लामिक स्टेट जैसे हथियारबंद गुट पर लगाम लगाने की कोशिशों के साथ ही तालिबान ने भ्रष्टाचार और अफीम उत्पादन से जूझने का दावा भी किया है.
महिलाओं के लिए बिगड़े हालात
इन दावों के बावजूद अफगानिस्तान में लड़कियों और महिलाओं की आजादी खत्म करने से जुड़े तालिबानी फरमान इन दो सालों पर हावी रहे हैं. औरतों के पार्क, जिम, यूनिवर्सिटी जैसी सार्वजनिक जगहों पर जाने पर बैन लगाया गया. उन्हें संयुक्त राष्ट्र समेत दूसरी गैर-सरकारी संस्थाओं में काम करने से रोका गया. ये सब कुछ चंद महीनों के भीतर ही हुआ. इसकी वजह बताई गई कि औरतें इस्लामिक परंपरा के मुताबिक हिजाब नहीं पहन रही हैं जिससे लैंगिक भेद की सीमाओं का उल्लंघन हो रहा है. तालिबान के शासन के पहले साल में ही लड़कियों को छठी क्लास के बाद स्कूल जाने से मना कर दिया गया था.
एसबी/एडी