हिजाब पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ भी गया और नहीं भी आया
१३ अक्टूबर २०२२मामला कर्नाटक सरकार द्वारा राज्य के सरकारी कॉलेजों में हिजाब पर लगाए गए प्रतिबंध का था. मार्च में कर्नाटक हाई कोर्ट ने प्रतिबंध के फैसले को सही ठहराया था और फिर हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 26 अपीलें दायर की गई थीं. बंटा हुआ फैसला इन्हीं अपीलों पर आया.
पीठ का नेतृत्व कर रहे न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने बैन को सही ठहराया और अपील को खारिज कर दिया. लेकिन न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने अपील को स्वीकृति दी और कर्नाटक सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया. इसके बाद पीठ ने कहा कि चूंकि जजों के बीच मतभेद है, मामले को मुख्य न्यायाधीश के सामने उचित निर्देशों के लिए रखा जाए. अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की कम से कम तीन जजों की पीठ सुनवाई करेगी.
न्यायमूर्ति गुप्ता ने अपने फैसले में 11 सवाल उठाए और कहा कि हिजाब पहनने कीइस्लाम में अनिवार्यतानहीं है और राज्य सरकार का आदेश शिक्षा हासिल करने के उद्देश्य को पूरा करता है. लेकिन न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि इस्लाम के तहत अनिवार्यता परखने की आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि हिजाब पहनना या नहीं पहनना बस चयन का सवाल है.
उन्होंने बिजॉय इमैनुएल नाम के एक दूसरे मामले का हवाला देते हुए यह भी रेखांकित किया कि सबसे जरूरी बात यह है कि यह मामला लड़कियों की शिक्षा का है. उन्होंने कहा, "यह जानी हुई बात है कि विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण इलाकों में लड़कियों को शिक्षा हासिल करने में पहले से कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है...तो क्या हम उसकी जिंदगी और बेहतर बना पा रहे हैं?"
पीठ के फैसले पर मिली जुली प्रतिक्रिया आ रही है. कर्नाटक सरकार में मंत्री बीसी नागेश ने कहा कि सरकार को "बेहतर फैसले" की उम्मीद थी क्योंकि पूरी दुनिया में महिलाएं हिजाब-बुर्का नहीं पहनने की मांग कर रही हैं. दूसरे पक्ष की तरफ से प्रतिक्रिया अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है.
यह विवाद इसी साल जनवरी में कर्नाटक के उडुपी से शुरु हुआ था. पीयू कॉलेज की छह छात्राओं ने कक्षा में हिजाब पहनने से रोके जाने का विरोध किया था. हिजाब पर विवाद उडुपी के अलावा अन्य जिलों तक फैल गया. हिजाब के साथ कॉलेज जाने की मांग को लेकर कई हफ्ते प्रदर्शन चले और छात्राएं कर्नाटक हाईकोर्ट गईं. अपनी याचिका पर आए फैसले से निराश होने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.