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रिपोर्ट: शहरों में नहीं घट रहा प्रदूषण

आमिर अंसारी
७ सितम्बर २०२२

विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) ने उत्तर भारत के शहरों में प्रदूषण पर एक ताजा रिपोर्ट जारी की है. सीएसई ने अपने शोध के लिए उत्तर भारत के 56 शहरों में पीएम 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) के 2021 के डेटा का विश्लेषण किया.

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तस्वीर: Hindustan Times/imago images

सीएसई के इस शोध के नतीजे काफी चौंकाने वाले हैं. सीएसई की माने तो राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत आने वाले और इसके दायरे से बाहर रहने वाले शहरों के बीच पीएम 2.5 की प्रवृत्तियों में नाममात्र का अंतर है. एनसीएपी ने साल 2024 तक देश में पीएम 2.5 और पीएम 10 सांद्रता में 20 से 30 फीसदी तक की कटौती का लक्ष्य तय किया है.

सीएसई ने उन शहरों में पीएम 2.5 के स्तर का विश्लेषण किया जिसके लिए एनसीएपी के दायरे में आने वाले और दायरे में नहीं आने वाले शहरों में प्रवृत्ति को समझाने के लिए आंकड़े मौजूद हैं. सीएसई ने कहा कि एनसीएपी वाले केवल 43 शहरों में 2019-2021 के लिए पीएम 2.5 के पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध हैं जो प्रगति पर नजर रखने के लिए यथोचित प्रवृत्ति के लिहाज से काफी हैं.

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सीएसई के शोध में उत्तर भारत के लगभग 56 शहरों को शामिल किया गया, जिनके लिए 2021 में पीएम 2.5 के स्तर के आंकड़ों पर विचार किया गया था. इस शोध में गाजियाबाद को सबसे अधिक प्रदूषित पाया गया, इसके बाद दिल्ली, फरीदाबाद और नोएडा शहर हैं.

गाजियाबाद में 2021 में वार्षिक औसत पीएम 2.5 स्तर 116 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पाया गया, जबकि दिल्ली में यह 109 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर, फरीदाबाद में 106 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और नोएडा में 101 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था.

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हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों (पार्टिकुलेट मैटर) को प्रदूषण का एक बड़ा पैमाना माना जाता है. पीएम 2.5 बेहद छोटे कण होते हैं और ये इंसान के शरीर में जाकर बेहद खराब नुकसान पहुंचाते हैं.

अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कहा गया था कि अति सूक्ष्म कणों का प्रदूषण पूरी दुनिया में लोगों की आयु-संभाविता उम्र कम कर रहा है. पीएम 2.5 के स्तर को विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्तर के अनुरूप रखा जाए तो दक्षिण एशिया में औसत व्यक्ति पांच साल और ज्यादा जिंदा रहेगा.

हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों (पार्टिकुलेट मैटर) को प्रदूषण का एक बड़ा पैमाना माना जाता है
हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों (पार्टिकुलेट मैटर) को प्रदूषण का एक बड़ा पैमाना माना जाता हैतस्वीर: Imtiyaz Khan/AA/picture alliance

दिल्ली, गाजियाबाद और नोएडा "गैर-प्राप्ति वाले शहरों" की सूची में हैं जो एनसीएपी के तहत धन हासिल करते हैं. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के केवल सात शहर केंद्र सरकार के दो कार्यक्रमों के अंतर्गत आते हैं जो वायु प्रदूषण को कम करने के लिए धन उपलब्ध कराते हैं. दिल्ली के अलावा, गाजियाबाद और नोएडा, खुर्जा और अलवर भी गैर-प्राप्ति वाले शहरों की सूची में हैं, जिन्हें एनसीएपी के तहत 2024 तक वायु प्रदूषण को 20 से 30 प्रतिशत तक कम करने की आवश्यकता है.

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रिपोर्ट जारी करते हुए सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा, "हालांकि यह उत्साहजनक है कि स्वच्छ वायु कार्रवाई का वित्त पोषण प्रदर्शन और शहरों की वायु गुणवत्ता में सुधार प्रदर्शित करने की क्षमता से जुड़ा हुआ है. पीएम 10 की केवल मैन्युअल निगरानी पर निर्भरता स्पष्ट रूप से खर्च में पूर्वाग्रह पैदा करती है क्योंकि यह धूल नियंत्रण की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करती है और समग्र कार्रवाई से ध्यान हटाती है."

उन्होंने कहा, "पीएम 2.5 और प्रमुख गैसों के विस्तृत निगरानी नेटवर्क को लेवेरज करने की आवश्यकता है ताकि सभी क्षेत्रों में जोखिम को अधिक प्रभावी ढंग से कम करने के लिए बहु-प्रदूषक कार्रवाई को प्राथमिकता दी जा सके."

विश्लेषण के लिए देश में 2021 में सक्रिय 332 रियल टाइम निगरानी स्टेशनों को शामिल किया गया है, जो 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 172 शहरों में फैले हुए हैं.

सीएसई का कहना है कि देश में कोविड लॉकडाउन के बाद मुंबई में प्रदूषण के स्तर में सबसे तेज वृद्धि हुई है. वहीं चेन्नई एक शहर है जहां पर कोविड के बाद प्रदूषण के स्तर में कमी हुई है. दिल्ली में कोविड लॉकडाउन के बाद 13 फीसदी तक प्रदूषण बढ़ा है.

सीएसई ने अपनी रिपोर्ट इंटरनेशनल क्लीन एयर डे फॉर ब्लू स्काई के मौके पर जारी किया है. 2019 में इस दिन की शुरूआत साफ और नीले आसमान के लिए की गई थी.

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