वैज्ञानिकों ने दिया इंसान के लिए मंगल को गर्म करने का सुझाव
१२ अगस्त २०२४वैज्ञानिकों ने अब मंगल ग्रह को गर्म करने के लिए एक नई योजना पेश की है. उनका सुझाव है कि गर्मी को सोखने वाले कणों को मंगल के वातावरण में छोड़ दिया जाए. ये कण आकार में ग्लिटर, यानी चमकीले कणों जैसे होंगे और लोहे या एल्युमिनियम से बने होंगे.
इन कणों का इस्तेमाल मंगल ग्रह के प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाने और उसकी सतह का तापमान लगभग 50 डिग्री फारेनहाइट (28 डिग्री सेल्सियस) तक बढ़ाने के लिए किया जाएगा. यह प्रक्रिया लगभग एक दशक तक चलेगी. हालांकि, सिर्फ इन कणों से मंगल को इंसानों के रहने योग्य नहीं बनाया सकेगा, लेकिन विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ इसे शुरुआती कदम के रूप में देखते हैं जिसे संभव किया जा सकता है.
कैसे गर्म हो सकता है मंगल?
शिकागो विश्वविद्यालय के ग्रह वैज्ञानिक एडविन काइट ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया है. वह कहते हैं, "टेराफॉर्मिंग का मतलब है किसी ग्रह के पर्यावरण को पृथ्वी जैसा बनाना. मंगल के लिए, इसे गर्म करना जरूरी है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. पहले के आइडिया ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ने पर केंद्रित थे, लेकिन इसके लिए बहुत अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है जो मंगल पर कम हैं."
काइट समझाते हैं, "हमारा शोध मंगल ग्रह के वातावरण को गर्म करने के लिए बनाए गए नैनोपार्टिकल्स का उपयोग करने के सुझाव पर केंद्रित है. इसमें जलवायु मॉडलिंग तकनीक भी शामिल है, जो इस तरीके को अब तक दिए गए सुझावों से अधिक प्रभावी बनाता है. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मंगल के जलवायु को बदलने के लिए शायद एक ज्यादा व्यवहारिक तरीका पेश करता है, जो भविष्य में मंगल पर शोध से जुड़ी रणनीतियों को ज्यादा प्रभावशाली बना सकता है."
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मंगल की सतह का अध्ययन करने के लिए रोबोटिक रोवर्स और ग्रह के आंतरिक भाग का अध्ययन करने के लिए इनसाइट लैंडर भेजा है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के आर्टेमिस कार्यक्रम के जरिए आने वाले सालों में चंद्रमा पर इंसान को भेजे जाने की योजना है. 1972 के बाद पहली बार चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्री भेजे जाएंगे, ताकि भविष्य में मंगल पर इंसानों के मिशन की तैयारी की जा सके.
क्यों है जरूरत?
मंगल पर मानव बस्तियां बसाने की कई चुनौतियां हैं, जैसे सांस लेने योग्य ऑक्सीजन की कमी, पतले वातावरण के कारण हानिकारक अल्ट्रावॉयलेट विकिरण, रेतीली मिट्टी में फसलों को उगाने में कठिनाई, धूल भरी आंधियां जो कभी-कभी ग्रह के अधिकांश हिस्से को ढक लेती हैं. इन सबके अलावा वहां का ठंडा तापमान भी एक बड़ी बाधा है.
अध्ययन की प्रमुख लेखक सामनेह अंसारी नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, इलिनोयी में इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग में डॉक्टरेट छात्रा हैं. वह कहती हैं, "हमारा मानना है कि मंगल को गर्म करने का विचार असंभव नहीं है. हम उम्मीद करते हैं कि हमारे निष्कर्ष व्यापक वैज्ञानिक समुदाय और जनता को इस रोमांचक विचार की आजमाइश के लिए प्रेरित करेंगे."
मंगल की सतह पर औसत तापमान लगभग माइनस 65 डिग्री सेल्सियस है. इसके पतले वातावरण के कारण मंगल- ग्रह की सतह पर सौर किरणें आसानी से अंतरिक्ष में लौट जाती हैं. काइट और उनकी टीम के सुझाव का लक्ष्य मंगल की सतह पर पानी तरल अवस्था में बनाए रखना है. इसके ध्रुवीय क्षेत्रों और सतह के नीचे बर्फ के रूप में पानी पाया जाता है.
क्या यह संभव है?
वैज्ञानिकों का प्रस्ताव है कि कई सालों तक हर सेकंड में लगभग आठ गैलन (30 लीटर) की दर से छोटे छड़ के आकार के कणों (नैनोरॉड्स) को लगातार वातावरण में छोड़ा जाए.
अंसारी कहती हैं, "विचार यह है कि या तो सामग्री को मंगल पर भेजा जाए या बेहतर यह होगा कि निर्माण उपकरण को भेजा जाए और मंगल पर ही नैनोरॉड्स बनाए जाएं क्योंकि लोहा और एल्युमिनियम मंगल की सतह पर प्रचुर मात्रा में हैं."
वैज्ञानिक अन्य ग्रहों को इंसानों के लाभ के लिए बदलने की संभावना पर काम कर रहे हैं. वे यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि मंगल पर कभी जीवन था या नहीं - या भूमिगत सूक्ष्म जीवों के रूप में शायद अब भी जीवन मौजूद हो.
काइट कहते हैं, "हालांकि नैनोपार्टिकल्स मंगल को गर्म कर सकते हैं, लेकिन इसपर कितना खर्च होगा और फिर इससे कितना फायदा होगा, यह अभी कहना मुश्किल है. मसलन, यदि मंगल की मिट्टी में ऐसे यौगिक हुए जो पृथ्वी पर पैदा हुए जीवों के लिए हानिकारक हैं, तो मंगल को गर्म करने का कोई लाभ नहीं होगा. दूसरी ओर, यदि मंगल की सतह पर एक प्रकाश संश्लेषक जैवमंडल स्थापित किया जा सकता है, तो यह सौर मंडल में इंसान के प्रसार की क्षमता को बढ़ा सकता है. मंगल पर यदि जीवन है, तो उस जीवन का अध्ययन करने से बहुत लाभ हो सकता है."
वीके/एसएम (रॉयटर्स)