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नई एंटीबायोटिक दवाएं खोजने की कोशिश

विवेक कुमार
२० नवम्बर २०२३

जैसे-जैसे एंटिबायोटिक दवाओं का असर कम हो रहा है, वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. अब नई एंटिबायोटिक दवाएं बनाने की कोशिश हो रही है.

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सुपरबग
सुपरबग बन चुकी हैं एंटिबायोटिक दवाएंतस्वीर: Aleksandra Sagan/Canadian Press/empics/picture alliance

सुपरबग यानी एंटीबायोटिक दवाओं का इंसानी शरीर पर खत्म हो जाना वैश्विक स्तर पर सेहत के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक माना जाता है. एक अनुमान के मुताबिक 2019 में इस वजह से 12.7 लाख लोगों की जान गई थी. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2050 तक यह खतरा इतना बड़ा हो जाएगा हर साल लगभग एक करोड़ लोगों की जानें सिर्फ इसलिए जा रही होंगी क्योंकि उन पर एंटीबायोटिक दवाएं असर नहींकर रही होंगी.

यह खतरा इतना बड़ा है इसलिए वैज्ञानिक इससे निपटने के लिए कई तरह की कोशिशें कर रहे हैं. इनमें नई तरह की एंटिबायोटिक दवाओं के विकास से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद लेने तक तमाम प्रयास शामिल हैं.

काम करना बंद कर रही हैं दवाएं

 उत्तरी नाईजीरिया में काम कर रहीं डॉ. नुबवा मेदुगू कहती हैं कि जब उन्होंने 2008 में कानो शहर में अपने मेडिकल करियर की शुरुआत की थी तो टाइफॉयड से ग्रस्त बहुत से बच्चे अस्पताल में इसलिए आते थे क्योंकि दवाएं उन पर काम नहीं कर रही थीं. द कन्वर्सेशन मैग्जीन में एक पॉडकास्ट में डॉ. मेदुगू ने कहा, "मुझे तब पता नहीं था कि बहुत से मरीजों के संक्रमणों का ठीक ना होना एक बहुत बड़ी समस्या की झलक भर था.”

अब नाईजीरिया की राजधानी अबुजा के राष्ट्रीय अस्पताल में क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट के रूप में शोध कर रहीं मेदुगू कहती हैं, "अब ऐसे इंफेक्शन खोजना लगभग असंभव हो गया है जिनमें कम से कम एक एंटिबायोटिक के लिए प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो गई है.”

हाल ही में इस विषय पर एक शोध पत्र में उन्होंने बताया है कि कौन-कौन सी एंटिबायाटिक दवाओं का असर लगातार कम होता जा रहा है. वह कहती हैं कि सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि जो दवाएं कभी आखरी इलाज हुआ करती थीं, उनका असर भी अब खत्म हो रहा है.

नई एंटीबायोटिक दवाओं की तलाश

दुनिया में कई वैज्ञानिक अब ऐसी नई एंटिबायोटिक दवाएं विकसित करने में लगे हैं जो पुरानी दवाओं से पार पा चुके संक्रमणों पर प्रभावी साबित हो सकें. न्यूयॉर्क के रोचेस्टर इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में बायोकेमिस्ट्री के प्रोफेसर आंद्रे हड्सन उन्हीं में से एक हैं. वह पारंपरिक बायोप्रोस्पेक्टिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें मिट्टी जैसे कुदरती तत्वों से संभावित एंटिबायोटिक्स निकालने की कोशिश की जाती है.

एंटीबायोटिक के कारण दवा बेअसर

एक इंटरव्यू में हडसन बताते हैं कि पारंपरिक रूप से किसी एक बैक्टीरिया को निकालकर उसका डीएनए पर शोध किया जाता है और उससे उस बैक्टीरिया के पूरे समुदाय पर असर डालने वाली दवा बनाई जाती है. लेकिन अब कुछ वैज्ञानिक मेटाजेनोमिक्स नामक तकनीक का भी इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसमें किसी कुदरती तत्व जैसे कि मिट्टी में मौजूद बैक्टीरिया के पूरे समुदाय की सीक्वेंसिंग की जाती है.

साथ ही बहुत से वैज्ञानिक खोज की गति बढ़ाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि यह तकनीक उस सीमा तक सोच सकती है, जहां तक वैज्ञानिक भी नहीं सोच रहा हे हैं. हालांकि यह अभी सिर्फ सिद्धांत के स्तर पर ही है.

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