मेडिकल कचरे ने बढ़ाया कूड़ा बीनने वालों का खतरा
२४ जुलाई २०२०पिछले 20 साल से मंसूर खान और उनकी बीवी लतीफा बीबी प्लास्टिक का कचरा बाहरी दिल्ली स्थित एक लैंडफिल से उठाते आए हैं. प्लास्टिक के साथ वे रिसाइकिल योग्य अन्य चीजें भी उठाते हैं. उबकाई ला देने वाली बदबू के बीच पति-पत्नी रोजाना काम कर चार सौ रुपये के करीब ही कमा पाते हैं, जिससे उनके तीन बच्चे स्कूल जा सके, उन्हें भविष्य में उनकी तरह का काम ना करना पड़े और आने वाला कल उनके लिए बेहतर बन सके. लेकिन बीते कुछ महीनों से लैंडफिल पर बायोमेडिकल कचरा अधिक मात्रा में पहुंच रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कोरोना वायरस के बाद बने हालात की वजह से हो सकता है और वहां काम करने वालों के लिए बहुत ही जोखिम भरा साबित हो सकता है. यह लैंडफिल साइट 52 एकड़ में फैली हुई है और इसकी ऊंचाई 60 मीटर से अधिक हो रही है, साइट पर इस्तेमाल किए हुए कोरोना वायरस टेस्ट किट, सुरक्षात्मक कवच, खून और मवाद से लिपटी रूई और उसके अलावा राजधानी दिल्ली का हजारों टन का कूड़ा आता है, जिसमें छोटे अस्पताल और नर्सिंग होम भी शामिल हैं.
कूड़ा बीनने वाले सैकड़ों लोगों के साथ-साथ बच्चे भी बिना दस्ताने के ही काम करते हैं. ऐसे में उन्हें उस बीमारी के होने का जोखिम अधिक बढ़ जाता है जो दुनिया भर के डेढ़ करोड़ लोगों को संक्रमित कर चुकी है और छह लाख से अधिक लोगों की जान ले चुकी है. भारत में भी कोरोना वायरस को लेकर हर रोज डराने वाले आंकड़े सामने आ रहे हैं. देश में संक्रमितों की संख्या 12 लाख को पार कर गई है और यह विश्व में तीसरे स्थान पर है.
"अगर हम मर गए तो?"
44 साल के खान को जोखिम के बारे में बखूबी पता है लेकिन उन्हें लगता है कि उनके पास विकल्प बहुत कम हैं. खान कहते हैं, "अगर हम मर गए तो? क्या पता हमें अगर यह बीमारी हो गई तो? लेकिन डर से हमारा पेट तो नहीं भरेगा ना." कूड़े के पहाड़ के पास ही खान का दो कमरे का पक्का मकान है और वे अपने परिवार के साथ इसी तरह से रह रहे हैं. 38 साल की लतीफा को संक्रमण का डर सता रहा है. उनके तीन बच्चे हैं और उनकी उम्र 16, 14 और 11 साल है. लतीफा कहती है, "जब मैं वहां से लौटती हूं मुझे घर में दाखिल होने में डर लगता है क्योंकि मेरे बच्चे हैं. इस बीमारी को लेकर हम लोग बहुत भय में हैं."
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में बायोमेडिकल कचरा विशेषज्ञ दिनेश राज बंदेला कहते हैं कि महामारी के दौरान बायोमेडिकल कचरा के निपटान के लिए जरूरी नहीं कि प्रोटोकॉल का पालन किया गया हो, ऐसे में लैंडफिल साइट में कचरा बीनने वालों के लिए जोखिम बढ़ जाता है. ना तो उत्तरी दिल्ली म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन और ना ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया दी है. बंदेला के मुताबिक राजधानी में रोजाना 600 टन मेडिकल कचरा निकलता था लेकिन वायरस के आने के बाद 100 टन अधिक कचरा निकल रहा है.
एए/सीके (रॉयटर्स)
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