घरेलू सोशल मीडिया की ओर मुड़ रहे हैं रूसी
१२ अप्रैल २०२२रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद जब यूट्यूब ने रूसी यूट्यूबर्स के लिए अपने वीडियो से धन कमाने की सुविधा बंद कर दी तो 60 हजार फॉलोअर्स वाले यूट्यूबर जॉर्ज कावानोस्यान ने अपना ध्यान स्थानीय वेबसाइट रूट्यूब (RuTube) की ओर लगाया. लेकिन जैसे-जैसे सरकारी की सख्ती बढ़ी, उनकी परेशानी भी बढ़ने लगी. रूट्यूब सरकारी ऊर्जा कंपनी गाजप्रोम के मीडिया डिविजन की वेबसाइट है.
35 वर्षीय कावानोस्यान बताते हैं, "मेरे पहले वीडियो पर दो-तीन दिन तक निगरानी रखी गई. और इसे पोस्ट करने की इजाजत देने में इतना वक्त लिया गया कि इसकी प्रासंगिकता ही खत्म हो गई.”
घरेलू तकनीक को बढ़ावा
रूट्यूब की स्थापना 2006 में की गई थी. यह उन कई रूसी सोशल मीडिया मंचों में से एक है जिन पर यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद लोगों की मौजूदगी बढ़ी है. यूक्रेन पर अपने ‘विशेष सैन्य अभियान' की शुरुआत के बाद रूसी सरकार ने इंटरनेट और सोशल मीडिया पर सख्ती बढ़ा दी है. रूस का आरोप है कि रूस के ‘विशेष सैन्य अभियान' के बारे में गलत सूचनाएं फैलाने के लिए पश्चिमी ताकतें सोशल मीडिया मंचों का प्रयोग कर रही हैं.
रूस ने ट्विटर,फेसबुक और इंस्टाग्राम पर पहले ही प्रतिबंधलगा दिया था. यह प्रतिबंध यूट्यूब पर भी लगाया जा सकता है क्योंकि उस पर देश के सूचना नियामक का दबाव लगातार बढ़ रहा है.
वैसे, विदेशी सोशल मीडिया पर निर्भरता कम करने के लिए कोई केंद्रीय नीति नहीं है लेकिन हाल ही में सरकार ने स्थानीय आईटी कंपनियों को कई तरह की सुविधाओं का ऐलान किया है. इन सुविधाओं में आयकर लाभ और विशेष कर्ज से लेकर कंपनियों के कर्मचारियों के लिए सैन्य सेवा टालने जैसे ऐलान शामिल हैं. राजनेता भी लोगों से घरेलू सोशल मीडिया प्रयोग करने की अपील कर रहे हैं.
कैसी हैं रूसी साइट?
प्रतिबंधों और प्रोत्साहनों के चलते रूस के घरेलू सोशल मीडिया मंचों पर लोगों की मौजूदगी बढ़ने से ये वेबसाइट खासी खुश हैं. लेकिन आलोचकों का कहना है कि इन मंचों के सरकारी दबाव में आने और सरकार के कहने पर सामग्री हटाने की संभावना ज्यादा है. वॉशिंगटन स्थित एक थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस की प्रमुख ऐलिना पोलियाकोवा कहती हैं, "असल में यह सब लोगों को मिल रही सूचनाओं पर ज्यादा से ज्यादा सरकारी नियंत्रण का तरीका है.”
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डेटा अनैलिटिक्स कंपनी सेंसर टावर के मुताबिक यूक्रेन युद्ध होने के 40 दिन में रूट्यूब को लगभग 14 लाख बार डाउनलोड किया गया है, जो बीते 40 दिनों से 2,000 प्रतिशत ज्यादा है. इसी तरह फेसबुक जैसी एक वेबसाइट वीकॉन्टाक्टे है जिसका बाजार पर पहले से ही दबदबा है. मार्च महीने में उसके ग्राहकों की गतिविधियों में 14 फीसदी का उछाल देखा गया है.
एक अन्य कंपनी ब्रैंड अनैलिटिक्स का कहना है कि टेलीग्रीम में 23 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि मैसेजिंग ऐप ओके 6 प्रतिशत बढ़ी है. इंस्टाग्राम का विकल्प फिएस्टा मार्च के आखिर में रूसी ऐप स्टोर पर नंबर वन बन गया था जबकि इंस्टाग्राम से मिलती-जुलती ऐप रोसग्राम ने भी बाजार में प्रवेश कर लिया है. इंस्टाग्राम की एक ब्लैक एंड व्हाइट नकल ग्रस्टनोग्राम, जिसका अनुवाद हुआ सैडग्राम, पिछले कुछ हफ्तों में ही बाजार में आई है, जहां लोग उदास तस्वीरें शेयर कर सकते हैं.
चीन की राह पर कई देश
घरेलू इंटरनेट विकल्प तैयार करने वाला रूस पहला देश नहीं है. इससे पहले चीन और भारत भी इसी तरह की कोशिशें करते रहे हैं जिनमें से कई सफल भी हुई हैं. इन देशों ने भी ऐसे वैकल्पिक सोशल मीडिया ऐप तैयार किए हैं जिन पर सरकारों का कब्जा है.
चीन में गूगल और फेसबुक पर बैन के बाद वीचैट देश का सबसे बड़ा डिजिटल प्लैटफॉर्म बन गया. चीन में कथित ग्रेट फायरवॉल के जरिए पश्चिमी वेबसाइटों पर कड़ी पाबंदी है. इसीलिए स्थानीय सर्च इंजन बायडू और ट्विटर जैसी वेबसाइट वाइबो खूब इस्तेमाल की जाती हैं. हालांकि आलोचक इन पर सेंसरशिप का स्तर बहुत ज्यादा होने के आरोप लगाते हैं.
भारत में भी पिछले साल ट्विटर के साथ सरकार की अनबन के बाद एक स्थानीय वेबसाइट कू का प्रादुर्भाव हुआ, जिसे सरकारी विभागों और मंत्रियों ने भी खूब बढ़ावा दिया. इसी तरह चीन की वीडियो शेयरिंग ऐप टिकटॉक को बैन करने के बाद भारत में जोश और मोज जैसी कई ऐप आ चुकी हैं और धीरे-धीरे पांव पसार रही हैं. जोश के 1.5 करोड़ से ज्यादा ग्राहक हो चुके हैं.
वीके/एए (रॉयटर्स)