जापानी बटेर बना किसानों की कमाई का जरिया
१६ अक्टूबर २०१९बिहार के कोसी क्षेत्र में अब लोग अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए जापानी बटेर पालने पर जोर दे रहे हैं. इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए कृषि और पशुपालन विभाग भी कोसी क्षेत्र में इस प्रजाति की बटेर का पालन करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रहा है. सहरसा कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बताया, "सरकार ग्रामीण बेरोजगार युवक-युवतियों के लिए आसान व्यवसाय उपलब्ध करवाने की खातिर बटेर पालन के लिए जागरूक कर रही है. इसके लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की भी जरूरत नहीं है, बल्कि मामूली जानकारी से ही किसान जापानी बटेर का पालन कर सकते हैं. जिन्हें मुर्गीपालन का थोड़ा भी अनुभव या जानकारी है, वे आसानी से बटेर पालन कर सकते हैं."
राज्य वन्य प्राणी परिषद के पूर्व सदस्य और पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा कहते हैं, "इसे वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 से बाहर निकाल दिया गया है, जिसके बाद यह पशुपालकों के लिए लाभप्रद व्यवसाय बन गया है. भारत में नौ प्रजातियों के बटेर पाए जाते हैं, जिसमें कुछ वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत भी आते हैं." राज्य कृषि विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि बटेर की उत्पादन क्षमता और बटेर पालन एक लाभप्रद व्यवसाय बन गया है. वह कहते हैं कि बटेर को रखने के लिए काफी कम जगह की जरूरत होती है.
जापानी बटेर से जुड़े एक व्यवसायी का कहना है कि जापानी बटेर के हर चूजे का बाजार भाव 14-15 रुपये है, जबकि बाजार में एक बटेर 60 से 70 रुपये में मिलता है. उन्होंने बताया कि बटेर काफी कम जगह में रह लेते हैं, जिस कारण इन्हें पालने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती है. शारीरिक वजन में तेजी से बढ़ोतरी के कारण बटेर का मांस पांच सप्ताह में पूरी तरह तैयार हो जाता है. सहरसा के जिला कृषि पदाधिकारी दिनेश प्रसाद सिंह कहते हैं, "कोसी क्षेत्र में लोगों को जापानी बटेर के प्रति जागरूकता बढ़ी है. कृषि विभाग और पशुपालन विभाग समन्वित प्रयास से जापानी बटेर के पालन को बढ़ावा दे रहा है."
कोसी क्षेत्र में जापानी बटेर के मांस और अंडे की मांग भी बढ़ी है. हालांकि मिश्रा आशंका जताते हैं कि कहीं ऐसा न हो जाए कि वन्यजीव के तहत आने वाले बटेरों का भी व्यापार होने लगे. उन्होंने कहा कि इसके लिए भी लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. पक्षियों के जानकार बताते हैं कि बटेर के अंडे, मांस में संतुलित मात्रा में अमीनो अम्ल, विटामिन, वसा होते हैं और खनिज पदार्थों की अच्छी मात्रा होती है. मुर्गी की अपेक्षा इसमें रोग की संभावना काफी कम रहती है. ऐसे में लोग भी मुर्गीपालन की जगह जापानी बटेर को पालने पर ध्यान दे रहे हैं.
आरएस/एमजे (आईएएनएस)
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