बांग्लादेश में क्यों हो रही है राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग
२३ अक्टूबर २०२४बांग्लादेश की राजधानी ढाका में 22 अक्टूबर को सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन के आवास का घेराव किया. इनकी मांग थी कि शहाबुद्दीन राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दें. प्रदर्शनकारियों ने उनपर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी अवामी लीग पार्टी के प्रति वफादार होने का इल्जाम लगाया है. रात होते-होते प्रदर्शनकारियों ने पुलिस का सुरक्षा घेरा तोड़कर राष्ट्रपति के घर में घुसने की कोशिश की.
वहां तैनात पुलिस के दंगा-रोधी दस्ते और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प में कम-से-कम 30 लोग घायल हो गए. ढाका मेट्रोपोलिटन पुलिस के डिप्टी कमिश्नर तालेबुर रहमान ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि झड़प में कम-से-कम 25 पुलिस अधिकारी भी घायल हुए. रहमान ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर अंधाधुंध पत्थर फेंके और नौ अधिकारियों का अभी भी इलाज चल रहा है.
बांग्लादेश के राष्ट्रपति के किस बयान से नाराजगी
20 अक्टूबर को "मानव जमीन" अखबार की पत्रिका "जनतार चोख" में राष्ट्रपति शहाबुद्दीन का एक साक्षात्कार छपा, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके पास हसीना का इस्तीफा नहीं है. उन्होंने पत्रिका को बताया कि 5 अगस्त 2024 को उन्होंने हसीना के देश छोड़ देने की खबर सुनी, लेकिन हसीना ने उन्हें खुद कुछ नहीं बताया.
राष्ट्रपति ने इंटरव्यू में यह भी कहा कि हसीना के देश छोड़कर जाने की खबर सुनकर उन्होंने सेना प्रमुख जनरल वकर-उज-जमान से जानना चाहा कि पीएम ने इस्तीफा दे दिया है या नहीं. शहाबुद्दीन के मुताबिक, इस सवाल पर सेना प्रमुख ने कहा, "मैंने सुना है कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है. शायद उनको हमें बताने का समय नहीं मिला."
इसी बयान पर ढाका में कई लोग शहाबुद्दीन से नाराज हो गए हैं और उनपर हसीना के प्रति वफादारी का इल्जाम लगा रहे हैं. उनके आवास का घेराव कर रहे प्रदर्शनकारियों में से एक फारूक हुसैन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "छात्र आंदोलन के फासीवादी हुकूमत को गिरा देने के बाद अब उसी हुकूमत का राष्ट्रपति नहीं होना चाहिए. जनता के राष्ट्रपति को उनकी जगह ले लेनी चाहिए."
प्रधानमंत्री का इस्तीफा एक कानूनी चुनौती
बांग्लादेश में कई दिनों से जारी हिंसक प्रदर्शनों के बीच 5 अगस्त को जब आंदोलन के प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री आवास की तरफ बढ़ रहे थे, तो उनके पहुंचने से पहले ही हसीना वहां से निकल गईं. वह सेना के एक हेलिकॉप्टर से भारत चली गईं. बाद में शहाबुद्दीन ने ही कहा था कि हसीना ने इस्तीफा दे दिया है. देश छोड़ने के बाद से हसीना भारत में ही रह रही हैं. बांग्लादेश ने अभी तक भारत को उनके प्रत्यर्पण के लिए अनुरोध नहीं भेजा है.
शहाबुद्दीन का कहना है कि उनके पास आधिकारिक तौर पर हसीना का इस्तीफा ना देना एक कानूनी चुनौती थी, जिसका हल निकालने के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी थी. उनके अनुरोध के जवाब में अदालत ने 8 अगस्त को कहा कि प्रधानमंत्री की गैरमौजूदगी के कारण संवैधानिक रिक्तता की जो स्थिति बनी है, उसे खत्म करने के लिए अंतरिम सरकार बनाई जा सकती है. साथ ही, राष्ट्रपति मुख्य सलाहकार व अन्य सलाहकारों को शपथ दिला सकते हैं. बांग्लादेश में राष्ट्रपति की शक्तियां मोटे तौर पर रस्मी हैं.
शहाबुद्दीन एक समय हसीना के सहयोगी थे. उनके खिलाफ पनपी नाराजगी का यह भी एक कारण है. उनके घर के बाहर हो रहे प्रदर्शन तब समाप्त हुए, जब छात्र आंदोलन का नियंत्रण करने वाले समूह के नेता वहां आए और कहा कि वो राष्ट्रपति पद पर शहाबुद्दीन की जगह लेने के लिए किसी और की तलाश करेंगे.
बांग्लादेश के 'डेली स्टार' अखबार के मुताबिक, छात्र नेता हसनत अब्दुल्ला ने कहा, "हम 23 अक्टूबर तक सेना प्रमुख के सामने राजनीतिक पार्टियों से बात करेंगे और उसके बाद इस पद को संभालने के लिए किसी को चुनेंगे." छात्रों की इस चेतावनी के कारण कई राजनीतिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि शहाबुद्दीन को जल्द ही पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है.