मोहम्मद जुबैर को सभी मामलों में मिली जमानत
२० जुलाई २०२२पुलिस द्वारा मनमानी गिरफ्तारी के प्रचलन के खिलाफ कई दिशा निर्देश देने के कुछ ही दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर को जमानत देते हुए गिरफ्तारी के बेजा इस्तेमाल के खिलाफ पुलिस को फिर से चेताया. न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, सूर्यकांत और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति की मौजूदगी को उन शक्तियों के इस्तेमाल से अलग कर के देखना जरूरी है.
"इन शक्तियों का इस्तेमाल संयम से करना चाहिए" कहते हुए पीठ ने जुबैर को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दायर की गई सभी छह एफआईआरों में जमानत दे दी. अदालत ने कहा कि मूल रूप से सभी एफआईआर जुबैर के ट्वीटों के बारे में ही हैं और इस विषय में दिल्ली पुलिस उनके खिलाफ काफी जांच कर चुकी है. अदालत ने कहा कि इसलिए हमें अब इसके बाद जुबैर को उनकी स्वतंत्रता से वंचित रखे रहने का कारण नजर नहीं आता.
पीठ ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि इसी तरह के एक मामले में जुबैर को पहले ही दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत से जमानत मिल चुकी है. पीठ ने आदेश दिया कि जुबैर द्वारा 20,000 रुपयों के मुचलके को पेश करने के बाद उन्हें तुरंत जेल से रिहा कर दिया जाए.
यूपी पुलिस की एसआईटी भंग
उत्तर प्रदेश पुलिस को अदालत में कई नाकामयाबियां हाथ लगीं. अदालत ने आदेश दिया कि यूपी पुलिस की सभी छह एफआईआरों को एक साथ जोड़ दिया जाए और उन्हें दिल्ली हस्तांतरित कर दिया जाए. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस वजह से विशेष रूप से इन्हीं मामलों की जांच के लिए बनाई गई यूपी पुलिस की एसआईटी को भी भंग कर दिया जाए.
उत्तर प्रदेश पुलिस की तरफ से जिरह कर रहे सरकारी वकील ने जब अदालत से अपील की कि जुबैर को आगे ट्वीट करने से रोकने के आदेश दे दिए जाएं, तो अदालत ने ऐसा करने से मना कर दिया. पीठ ने कहा, "यह ठीक वैसा ही है जैसे एक वकील को बहस ना करने के लिए कह दिया जाए. एक पत्रकार को हम यह कैसे कह सकते हैं कि वो लिखना बंद कर दे?"
पीठ ने आगे कहा कि अगर जुबैर के किसी "ट्वीट से कानून का उल्लंघन होगा तो वो उसके लिए जवाबदेह होंगे...इसके लिए हम पहले से आदेश कैसे दे दें?" अदालत ने यहां तक आदेश दिया कि इसी विषय पर अगर जुबैर के खिलाफ कोई और एफआईआर दर्ज की जाती है तो उन मामलों में भी अभी से यह जमानत लागू रहेगी.
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से जुबैर को अस्थायी राहत मिलेगी. उन्हें दिल्ली पुलिस ने 27 जून को 2018 में उनके द्वारा किए गए एक ट्वीट के लिए गिरफ्तार कर लिया था. अदालत ने दिल्ली पुलिस की एफआईआर और मामले में चल रही जांच पर कोई विपरीत टिप्पणी नहीं की. इसका मतलब दिल्ली पुलिस की जांच चलती रहेगी.
लोकतंत्र ना लगे पुलिस तंत्र
11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जमानत के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश लाने के लिए नया जमानत कानून बनाने के लिए कहा था. अदालत ने जांच एजेंसियों की गिरफ्तार कर लेने की और अदालतों की जमानत ना देने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई थी.
अदालत ने कहा था लोकतंत्र पुलिस तंत्र जैसा नहीं लगना चाहिए क्योंकि दोनों धारणात्मक तौर पर ही एक दूसरे के विरोधी हैं. अदालत ने बताया कि गिरफ्तारी अपने आप में एक कठोर कदम है जिसका कम ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए. पुलिस अफसर को सिर्फ इसलिए किसी को गिरफ्तार कर लेने का अधिकार नहीं है क्योंकि उसे लगता है कि गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए. गिरफ्तारी की कुछ शर्तें होती हैं और उनका पूरा होना आवश्यक है.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों से कहा कि वो ऐसे अफसरों के खिलाफ कड़ी करवाई करें जो इन धाराओं का अनुपालन किए बिना गिरफ्तारी करते हैं. कोर्ट ने राज्य सरकारों से भी कहा कि इन धाराओं के अनुपालन को सुनिश्चित कराने के लिए वो स्थायी आदेश जारी करें.
इसके अलावा अदालत ने उच्च अदालतों से कहा कि वो अपने अपने अधिकार क्षेत्र में ऐसे विचाराधीन कैदियों का पता लगाएं जिनकी गिरफ्तारी में सीआरपीसी में दी गई शर्तों का पालन नहीं हुआ और उनकी रिहाई की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं. सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और उच्च अदालतों को निर्देश दिया कि सभी दिशानिर्देशों पर चार महीनों के अंदर हलफनामा या स्थिति रिपोर्ट दायर करें.