नहीं थम रहीं पाकिस्तान में ईशनिंदा आरोपियों की हत्याएं
२० सितम्बर २०२४पाकिस्तान के दक्षिणी हिस्से में पुलिस ने एक संदिग्ध व्यक्ति को गोली मार दी, जिसे ईशनिंदा के मामले में आरोपी बताया जा रहा था. अधिकारियों के अनुसार, यह घटना पिछले एक सप्ताह में दूसरी बार हुई है, जिसमें बिना मुकदमे हत्या की गई. मानवाधिकार संगठनों ने इस पर कड़ी निंदा की है.
पुलिस ने मारे गए व्यक्ति का नाम शाह नवाज बताया, जो उमरकोट जिले में एक डॉक्टर थे. उन पर इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री साझा करने के आरोप लगे, जिसके बाद दो दिन पहले उन्हें छिपना पड़ा था.
स्थानीय पुलिस प्रमुख नियाज खासो ने कहा कि नवाज "बिना इरादे के" मारे गए जब पुलिस ने मोटरसाइकिल पर जा रहे दो लोगों को रुकने के लिए कहा. उन्होंने बताया कि जब लोग रुके नहीं और फायरिंग शुरू कर दी, तो पुलिस ने जवाबी फायर किया. एक संदिग्ध भाग गया, जबकि दूसरा मारा गया.
खासो ने दावा किया कि फायरिंग के बाद ही पुलिस को पता चला कि मारा गया व्यक्ति वही डॉक्टर है जिसे वे ईशनिंदा के मामले में खोज रहे थे.
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने नवाज की हत्या की कड़ी निंदा की है. आयोग ने कहा कि ईशनिंदा के आरोप में बिना मुकदमे की हत्या का यह एक गंभीर मामला है. आयोग ने सरकार से इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की है.
नवाज की हत्या उस दिन हुई जब उमरकोट में इस्लामिक समूहों ने उनकी गिरफ्तारी की मांग करते हुए प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने नवाज के क्लिनिक को भी जला दिया.
एक हफ्ते के भीतर दूसरी घटना
एक सप्ताह के भीतर यह दूसरी घटना है जब ईशनिंदा के आरोपी को पुलिस की गोली लगी. कुछ दिन पहले क्वेटा शहर में एक पुलिस स्टेशन के अंदर एक अधिकारी ने एक ईशनिंदा के आरोपी को गोली मार दी, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया. उसे एक उग्र भीड़ से बचाया गया था, जो उसके खिलाफ शिकायत कर रही थी.
पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप के तहत, अगर किसी व्यक्ति को इस्लाम या उसके धार्मिक व्यक्तियों का अपमान करते पाया जाता है, तो उसे मौत की सजा दी जा सकती है. हाल के वर्षों में पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोपियों पर हमलों में बढ़ोतरी हुई है. इस तरह की घटनाओं के खिलाफ मानवाधिकार समूहों की चिंताएं बढ़ रही हैं.
बीती जून में ही ईशनिंदा के संदेह में एक शख्स को भीड़ ने पहले पीट-पीटकर मार डाला और फिर उसके शरीर में आग लगा दी थी. यह वारदात खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के स्वात जिले में हुई. मृतक पर कुरान के अपमान का आरोप था. पुलिस ने उसे भीड़ से छुड़ाकर थाने में रखा था. भीड़ उसे थाने से घसीटकर ले गई और मार डाला. इससे पहले मई और फरवरी में भी ऐसी ही घटनाएं हुई थीं.
इस्लामिक देश पाकिस्तान में ईशनिंदा एक संवेदनशील मुद्दा है. कई बार ऐसा हुआ है कि सिर्फ आरोप लगने पर किसी व्यक्ति की हत्या कर दी गई.
ईशनिंदा कानून क्या है?
पाकिस्तान में ईशनिंदा के खिलाफ बेहद सख्त कानून है जो कहता है कि "इस्लाम के पैगंबर के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां, चाहे वे बोली जाएं या लिखी जाएं, या किसी तस्वीर द्वारा, या किसी आरोप, इशारे या संकेत द्वारा, सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से, की जाएं, उसके लिए सजा होगी." इसमें मौत की सजा, उम्रकैद और जुर्माना शामिल होगा.
इस कानून का कुछ हिस्सा ब्रिटिश शासन के वक्त का है. 1970 के दशक तक इस कानून का इस्तेमाल बहुत ज्यादा नहीं था. लेकिन जनरल मुहम्मद जिया उल हक के सैन्य शासन के दौरान पाकिस्तान का तेजी से इस्लामीकरण हुआ और ईशनिंदा कानून का इस्तेमाल बढ़ने लगा.
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस कानून का समर्थन किया और 2021 में मुस्लिम बहुल देशों से कहा कि वे एकजुट होकर पश्चिमी सरकारों पर दबाव डालें ताकि इस्लाम के पैगंबर का अपमान करना अपराध बना दिया जाए.
ईशनिंदा के मामले
हालांकि पाकिस्तान में कभी भी किसी को इस कानून के तहत फांसी नहीं दी गई है, लेकिन ईशनिंदा के मामलों में सजा आम है. इसके साथ ही यह भी एक तथ्य है कि अधिकांश सजाएं उच्च न्यायालयों द्वारा अपील पर रद्द कर दी जाती हैं. इसके बावजूद, भीड़ ने कई लोगों को बिना मुकदमे के ही मौत के घाट उतार दिया है.
मारे गए लोगों में धार्मिक अल्पसंख्यक, प्रमुख राजनेता, छात्र, मौलवी और मानसिक रूप से बीमार लोग शामिल हैं. इनकी हत्या के तरीके भयानक रहे हैं, जैसे जलाना, फांसी देना, अदालत में गोली मारना, मारकर पेड़ से लटकाना और सड़क किनारे काटकर मारना.
स्थानीय मीडिया और शोधकर्ताओं के अनुसार, 1990 से अब तक कम से कम 85 लोग ईशनिंदा के आरोपों के कारण हत्या का शिकार हुए हैं. ईशनिंदा के मामलों की सुनवाई करने वाले जजों ने कहा है कि उन पर सजा देने का दबाव होता है, भले ही सबूत कैसा भी हो, क्योंकि उन्हें डर होता है कि यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उन्हें भी हिंसा का सामना करना पड़ सकता है.
जब ईशनिंदा के खिलाफ हिंसा होती है, तो स्थानीय पुलिस को भीड़ को हमले करने से ना रोकते पाया गया है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मुताबकि अक्सर पुलिस वालों में भी यह डर होता है कि अगर वे भीड़ को रोकते हैं, तो उन्हें भी "ईशनिंदा करने वाले" समझा जा सकता है.
विवेक कुमार (एएफपी)