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10 हजार रुपये से सवा खरब रुपये तक का सफर

१८ नवम्बर २०२१

पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा सफलता की अद्भुत मिसाल हैं. दस हजार रुपये से शुरुआत करने वाले शर्मा अब 2.4 अरब डॉलर की संपत्ति के मालिक हैं. कैसे तय किया उन्होंने यह सफर, जानिए...

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तस्वीर: Morio Taga/Jiji Press Photo/dpa/picture alliance

27 साल की उम्र में विजय शेखर शर्मा 10 हजार रुपये महीना कमा रहे थे. उस सैलरी को देखकर उनकी शादी तक में मुश्किल हो रही थी. वह बताते हैं, "2004-05 मे मेरे पिता ने कहा कि मैं अपनी कंपनी बंद कर दूं और कोई 30 हजार रुपये महीना भी दे तो नौकरी ले लूं.” 2010 में शर्मा ने पेटीएम की स्थापना की, जिसका आईपीओ ढाई अरब डॉलर पर खुला.

विजय शेखर शर्मा एक इंजीनियर हैं. 2004 में वह अपनी एक छोटी सी कंपनी के जरिए मोबाइल कॉन्टेंट बेचा करते थे. वह बताते हैं कि जब लड़की वालों को उनकी आय का पता चलता था तो वे इनकार कर देते थे. वह कहते हैं, "लड़की वालों को जब पता चलता था कि मैं दस हजार रुपये महीना कमाता हूं तो वे दोबारा बात ही नहीं करते थे. मैं अपने परिवार का अयोग्य कुआंरा बन गया था.”

2.5 खरब डॉलर की कंपनी

पिछले हफ्ते 43 साल के शर्मा की कंपनी पेटीएम ने इनिशिअल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) के जरिए 2.5 अरब डॉलर यानी लगभग एक खरब 34 अरब रुपये जुटाए हैं. फाइनेंस-टेक कंपनी पेटीएम अब भारत की सबसे मशहूर कंपनियों में से एक बन गई है और नए उद्योगपतियों के लिए एक प्रेरणा भी.

एक स्कूल अध्यापक पिता और गृहिणी मां के बेटे शर्मा उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर के रहने वाले हैं. 2017 में ही वह भारत के सबसे कम उम्र के अरबपति बने थे. लेकिन उन्हें अब भी सड़क किनारे ठेले से चाय पीना पसंद है. वह अक्सर दूध और ब्रेड लेने के लिए चलकर अपने पास की दुकान पर जाते हैं.

वह कहते हैं कि बहुत समय तक उनके माता-पिता को पता ही नहीं था कि उनका बेटा करता क्या है. वह बताते हैं, "एक बार मां ने मेरी संपत्ति के बारे में हिंदी के अखबार में पढ़ा तो मुझसे पूछा कि वाकई तेरे पास इतना पैसा है.”

फोर्ब्स पत्रिका ने विजय शेखर शर्मा की संपत्ति 2.4 अरब डॉलर यानी भारतीय रुपयों में लगभग सवा खरब रुपये आंकी है.

नोटबंदी ने खोली किस्मत

पेटीएम की शुरुआत एक दशक पहले ही हुई है. तब यह सिर्फ मोबाइल रिचार्ज कराने वाली कंपनी थी. लेकिन ऊबर ने भारत में इस कंपनी को अपना पेमेंट पार्टनर बनाया तो पेटीएम की किस्मत बदल गई. पर पेटीएम के लिए पासा पलटा 2016 में जब भारत ने अचानक एक दिन बड़े नोटों को बैन कर दिया और डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा दिया.

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नोटबंदी के बाद तो पेटीएम बड़े बड़े शोरूम से लेकर ठेले-रिक्शा तक पहुंच गया. सबके यहां पेटीएम के स्टिकर नजर आने लगे. सॉफ्टबैंक और बर्कशर जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों के समर्थन वाली पेटीएम अब अपनी शाखाएं दूसरे उद्योगों में भी फैला रही है. यह सोना बेच रही है. फिल्में बना रही है, विमानों की टिकट और बैंक डिपॉजिट भी उपलब्ध करवा रही है.

पेटीएम ने जो डिजिटल पेमेंट का जो काम भारत में शुरू किया था, उसमें अब गूगल, अमेजॉन, वॉट्सऐप और वॉलमार्ट के फोनपे जैसे बड़े बड़े अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी आ चुके हैं. वजह यह है कि भारत में यह बाजार 2025 बढ़कर 952 खरब डॉलर से भी ज्यादा का हो जाने का अनुमान है.

पहली बार डर लगा

अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के भारत में आने से एक बार तो शर्मा को डर लगा था. तब उन्होंने सॉफ्टबैंक के संस्थापक खरबपति उद्योगपति मासायोशी सन को फोन किया. वह बताते हैं, "मैंने मासा को फोन किया और कहा कि अब तो सब लोग यहां आ गए हैं, अब मेरे लिए क्या बचता है. आपको क्या लगता है?”

याहू और अलीबाबा जैसी कंपनियों में शुरुआती वक्त में निवेश करने वाले सन ने बताया कि "ज्यादा पैसा जुटाओ, और अपना सब कुछ लगा दो”. सन ने कहा कि बाकी कंपनियों के लिए यह प्राथमिक बिजनेस नहीं है, पेटीएम को पेमेंट बिजनेस को बनाने में पूरी ऊर्जा लगा देनी चाहिए.

एक बेटे के पिता शर्मा कहते हैं कि उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वैसे कुछ बाजार विश्लेषकों को संदेह है कि पेटीएम मुनाफा कमा पाएगी, शर्मा को अपनी कंपनी की सफलता पर कोई संदेह नहीं है. 2017 में पेटीएम ने कनाडा में एक पेमेंट ऐप शुरू किया और उसके एक साल बाद जापान में मोबाइल वॉलेट पेश कर दिया.

शर्मा कहते हैं, "मेरा सपना है कि पेटीएम के झंडे को सैन फ्रांसिस्को, न्यू यॉर्क, लंदन, हांग कांग और टोक्यो तक लेकर जाऊं. और जब लोग इसे देखें तो कहें, यह एक भारतीय कंपनी है.”

वीके/एए (रॉयटर्स)