टिंडर पर डेटिंग करने वाली पाकिस्तानी महिलाएं
१२ अगस्त २०२०32 साल की फाइका पाकिस्तान के इस्लामाबाद में अपना खुद का कारोबार चलाती हैं. डेटिंग ऐप का इस्तेमाल करने वाली फाइका जैसी महिलाओं को पाकिस्तानी समाज में अभी भी लोगों की सवालिया नजर या कभी कभी हिकारत का सामना करना पड़ता है. हालांकि इस्लामी देश के ही कई हिस्सों और खासकर बड़े शहरों में कैजुअल डेटिंग को लेकर सोच बदलती भी दिख रही है.
दो साल से टिंडर इस्तेमाल कर रही फाइका इसके साथ अपने अनुभव को एक तरह से "आजाद करने वाला" बताती हैं. हालांकि कई पाकिस्तानी पुरुष अभी भी ऐसी महिलाओं को लेकर अच्छा नहीं समझते हैं जो डेटिंग करने और अपनी यौन इच्छाओं को पूरा करने में यकीन करती हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में फाइका बताती हैं, "मैं कुछ ऐसे पुरुषों से मिली हूं जो टिंडर पर तो खुद को 'खुले दिमाग वाला फेमिनिस्ट' बताते हैं लेकिन फिर मुझसे पूछते हैं: 'आपके जैसी शरीफ और पढ़ी लिखी लड़की डेटिंग ऐप पर क्या कर रही है?'"
दक्षिण एशिया में लोकप्रिय हुई ऑनलाइन डेटिंग
दक्षिण एशिया के ऑनलाइन डेटिंग बाजार में भारत सबसे आगे है लेकिन पाकिस्तान भी धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है. पाकिस्तानी समाज में अकसर महिलाओं पर परिवार की "इज्जत" संभाल कर रखने की जिम्मेदारी डाली जाती है. इंडोनेशियन जर्नल ऑफ कम्यूनिकेशन स्टडीज ने अपनी एक ताजा स्टडी में पाया कि पाकिस्तान के ज्यादातर टिंडर यूजर 18 से 40 साल की उम्र के बीच हैं और इस्लामाबाद, लाहौर और कराची जैसे बड़े शहरों से आते हैं.
टिंडर के अलावा भी मुजमैच जैसे कुछ ऐप लोकप्रिय हो रहे हैं. यह ऐप केवल ऐसे मुसलमानों के लिए हैं जो डेट की तलाश में हैं. ऐसे ही बंबल ऐप भी है जो कि अभी नया है लेकिन पाकिस्तानी फेमिनिस्ट महिलाओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें बातचीत की शुरुआत पहले महिलाएं ही कर सकती हैं. लाहौर की एक छात्र निमरा कहती हैं, "बंबल पर काफी कम पुरुष हैं इसलिए हमें उसका इस्तेमाल करना ज्यादा सुरक्षित लगता है. टिंडर को सब जानते हैं इसलिए वहां जान पहचान वालों के दिखने की काफी संभावना होती है."
ऐसे ऐप को कई पाकिस्तानी महिलाएं डेटिंग का एक ज्यादा निजी माध्यम मानती हैं. लाहौर की ही एक फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट नबीहा मेहर शेख ने बताया, "डेटिंग ऐप में महिलाएं चुन सकती हैं कि किसी के साथ सिर्फ एक रात की मुलाकात करनी है, चक्कर चलाना है या लंबे समय तक संबंध बनाने हैं. हमारी संस्कृति में असल जिंदगी में किसी महिला के लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल है."
कंजर्वेटिव समाज में यौन अभिलाषाएं समझने का जरिया
लाहौर की ही रहने वाली 26 साल की रिसर्चर सोफिया ने डीडब्ल्यू को बताया कि वह टिंडर पर "बिना किसी सीमा के अपनी यौन इच्छाओं" को टटोलना चाहती हैं." सोफिया कहती हैं, "मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग मेरे बारे में क्या राय बनाते हैं. समाज तो हमेशा ही कुछ ना कुछ कहेगा. फिर उनकी खुशी की परवाह करें ही क्यों?"
टिंडर का इस्तेमाल करने वाली सभी पाकिस्तानी महिलाएं इतने खुले विचारों वाली नहीं हैं. ज्यादातर ने तो अपने प्रोफाइल में अपनी पहचान ठीक से जाहिर नहीं की है. फोटो लगाई है तो केवल चेहरे के कुछ हिस्से की, हाथों से चेहरे को ढक कर या फिर हाथों या पैरों के क्लोज अप की. 25 साल की अलिश्बा इसकी वजह बताते हुए कहती हैं कि अगर सही नाम और फोटो डाल दें तो "ज्यादातर पुरुष पीछा करने लगते हैं. जवाब ना मिले तो सोशल मीडिया पर तलाश कर खराब खराब मैसेज भेजने लगते हैं."
समाज के दोहरे मापदंडों की ओर ध्यान दिलाते हुए वह बताती हैं कि कैसे कई शादीशुदा पुरुष इस प्लेटफार्म पर आकर अपनी "टूटी हुई शादी" का बहाना बना कर दूसरी महिलाओं को डेट करते हैं. 28 साल की ब्लॉगर फरीहा ने एक साल के लिए टिंडर का इस्तेमाल किया और इस दौरान सुरक्षित महसूस करने के लिए वह लोगों से केवल सार्वजनिक जगहों पर मिला करतीं.
शर्मिंदा करने और नाम देने की संस्कृति से दूर
डेटिंग ऐप्स ने पाकिस्तान जैसे देश में कई वर्जित विषयों जैसे महिलाओं की यौन इच्छा, उनकी मर्जी और सेफ सेक्स के बारे में बहस तो छेड़ ही दी है. ऐसे ऐप्स की बढ़ती लोकप्रियता से यह पता चलता है कि महिलाओं के शरीरों और लोगों की निजी पसंद पर राज्य-तंत्र का कितना नियंत्रण है.
इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के महासचिव अमीर उल अजीम ने डीडब्ल्यू से कहा कि "इन ऐपों को इस्तेमाल करने वाले लड़के और लड़कियां छुप छुप कर मिलते हैं क्योंकि उन्हें भी लगता है कि यह सब गलत है." अजीम आगे कहते हैं, "पश्चिम में महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए कड़े कानून हैं. लेकिन पाकिस्तान में अगर महिलाएं किसी से गुप्त रूप से मिलती हैं तो उन्हें उत्पीड़न से नहीं बचाया नहीं जा सकता क्योंकि ऐसा कोई कानून ही नहीं है."
लाहौर की ही रहने वाली कलाकार जारिश का मानना है कि महिलाओं को "इस तरह की शर्मिंदा करने वाली और नाम देने वाली संस्कृति के कब्जे में नहीं आना चाहिए." वह कहती हैं कि पाकिस्तान के सामने इससे कहीं "बड़े मुद्दे" हैं जिन पर फौरन ध्यान दिए जाने की जरूरत है. जारिश कहती हैं कि "आम लोग अपनी निजी जिंदगी में क्या करते हैं" इसे लेकर इतना बवाल करने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए. साफ शब्दों में जारिश का संदेश है, "मेरी निजी इच्छाएं और चुनाव मेरे बारे में बताती हैं कि मैं कैसी इंसान हूं, ना कि इससे मेरे परिवार या उनके सम्मान का कोई लेना देना है."
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