कश्मीर पर कहां तक पाकिस्तान का साथ देगा चीन?
१२ अक्टूबर २०१९पिछले दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने चीन का दौरा किया. इस्लामाबाद में प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी बयान में कहा गया कि इमरान खान ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को "कश्मीर मुद्दे पर समर्थन" के लिए धन्यवाद दिया है. साथ ही उन्होंने मुश्किल समय में आर्थिक मदद के लिए भी चीन का आभार जताया है. पाकिस्तान रेडियो ने इमरान खान के हवाले से लिखा, "हम चीन की तरफ से वित्तीय सहयोग को कभी नहीं भूल पाएंगे."
दूसरी तरफ चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने खबर दी कि चीनी राष्ट्रपति शी ने इमरान खान से कहा है कि वह कश्मीर की हालत पर नजर बनाए हुए हैं और "पाकिस्तान को उसके मूल हितों के जुड़े मुद्दों पर समर्थन दिया जाएगा." हालांकि चीनी राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि विवाद से जुड़े पक्षों (भारत और पाकिस्तान) को शांतिपूर्ण बातचीत से यह विवाद सुलझाना चाहिए.
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अगस्त में भारत सरकार ने जब से जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने का फैसला किया है, तभी से वहां बंद के हालात हैं. ऐसे में, भारत और पाकिस्तान के तनावपूर्ण रिश्ते और तल्ख हो गए. विवादित जम्मू कश्मीर के एक हिस्से पर भारत का नियंत्रण है और दूसरे हिस्से पर पाकिस्तान का. लेकिन वे दोनों ही समूचे हिस्से पर दावा जताते हैं. इसमें से कुछ हिस्सा चीन के पास भी है.
चीन पाकिस्तान का नजदीकी सहयोगी है और वह हमेशा रणनीतिक और आर्थिक मदद के लिए बीजिंग की तरफ देखता है. चीन ने जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और खास कर लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने पर विरोध जताया है. चीनी सरकार के एक प्रवक्ता के मुताबिक, यह कदम "अस्वीकार्य" है और चीन कश्मीर क्षेत्र में पाकिस्तान के "वैध अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए" उसकी मदद करेगा.
भारत और चीन के बीच भी सीमा विवाद लंबे समय से चला आ रहा है. भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के 90,000 वर्ग किलोमीटर इलाके पर चीन अपना दावा जताता है. दूसरी तरफ, भारत ने अक्साई चिन में 38 हजार वर्ग किलोमीटर के इलाके पर दावा जताया है जो चीन के नियंत्रण में है.
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दिल्ली में रहने वाली लेखक और विदेश नीति की जानकार नारायणी बासु कहती हैं कि कश्मीर संकट का भारत चीन संबंधों पर कोई बड़ा असर नहीं होगा. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "चीन इस समय कई तरह के संकटों से जूझ रहा है, इसलिए वह सिर्फ कश्मीर पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता है." उनका इशारा हांगकांग और ताइवान के अलावा अमेरिका के साथ चल रहे चीन के कारोबारी युद्ध की तरफ है. वह कहती हैं, "दोनों तरफ से राजनयिक हलचलें होंगी, ऐसी कोई संभावना नहीं है कि कुछ बड़ा होगा."
पर्यवेक्षकों का कहना है कि इससे पाकिस्तान के लिए मुश्किलें पैदा होंगी, क्योंकि उसे चीन की तरफ से कश्मीर पर अभी तक वैसा समर्थन नहीं मिला है जैसा वह चाहता है. फिर भी पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि वे कश्मीर पर चीन के रुख से संतुष्ट हैं.
नई दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में चाइनीज स्टडीज के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली कहते हैं कि भारत और चीन के लिए "अपने रिश्तों को स्थिर बनाना बहुत जरूरी है, क्योंकि वे दोनों ही कई मुद्दों से जूझ रहे हैं. इनमें घरेलू और क्षेत्रीय, दोनों तरह के मुद्दे शामिल हैं."
बासु कहती हैं कि चीनी राष्ट्रपति की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने परिपक्वता का परिचय दिया है और विवादों का असर सहयोग पर नहीं पड़ने दिया. हालांकि कुछ विश्लेषक यह भी मानते हैं कि चीन कश्मीर मुद्दे का इस्तेमाल भारत पर आर्थिक और व्यापारिक मुद्दों पर दबाव बनाने के लिए कर सकता है.
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