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पटना में जुटे 15 दल क्या बिगाड़ सकेंगे बीजेपी का खेल

मनीष कुमार, पटना
२३ जून २०२३

बिहार की राजधानी पटना में 15 दलों के नेता 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी सहित एनडीए के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की रणनीति बनाने में जुटे. उनका मकसद था, नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनने से रोकना.

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
तस्वीर: Caisii Mao/NurPhoto/picture alliance

इसमें तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन से लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तक ने भाग लिया. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री (सीएम) ममता बनर्जी व कई अन्य नेता गुरुवार की शाम ही पटना पहुंच गए थे. ममता ने राबड़ी देवी के आवास जाकर आरजेडी के प्रमुख लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की और पैर छूकर आर्शीवाद भी लिया. इस भेंट के बाद ममता ने कहा कि लालू जी बहुत तगड़ा हैं, बीजेपी के खिलाफ ठीक से लड़ सकते हैं.

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पटना पहुंचने के बाद राहुल गांधी कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम पहुंचे और कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि देश में दो विचारधारा की लड़ाई चल रही है. एक तरफ कांग्रेस की भारत जोड़ो विचारधारा है तो दूसरी तरफ बीजेपी-आरएसएस की भारत तोड़ो विचारधारा है. अब हम सब मिलकर बीजेपी के खिलाफ लड़ेंगे, उसे हराएंगे. 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जीतस्वीर: PRABHAKAR/DW

शुक्रवार दोपहर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास पर शुरू हुई बैठक में कांग्रेस, आरजेडी, जेडीयू, आप, जेएमएम, एनसीपी, शिवसेना, टीएमसी, सपा, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, सीपीआई, सीपीआई (एमएल), सीपीएम व डीएमके के 27 नेताओं ने भाग लिया. इनमें पांच वर्तमान व छह पूर्व मुख्यमंत्री हैं. इन नेताओं में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, शरद पवार, ममता बनर्जी, एम के स्टालिन, अरविंद केजरीवाल, भगवंत सिंह मान, डी राजा, महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुला, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार व लालू प्रसाद यादव प्रमुख थे.

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बिहार की धरती कई ऐसे आंदोलनों की जननी रही है, जिसका देश राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा. महात्मा गांधी का चंपारण सत्याग्रह रहा हो या फिर जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति, इन आंदोलनों ने तत्कालीन सत्ता की नींव हिलाकर रख दी थी. लालू प्रसाद ने भी समय-समय पर अपनी रैलियों से कभी जनाधार का प्रदर्शन किया तो कभी अपने वोट बैंक के खिलाफ भेदभाव नहीं करने की चेतावनी दी.

फिर से अहम भूमिका में आते लालू
फिर से अहम भूमिका में आते लालूतस्वीर: Hindustan Times/IMAGO Images

शिमला की बैठक में होगा नीतीश को संयोजक बनाने पर फैसला

तीन घंटे से अधिक समय तक चली इस बैठक में बीजेपी को कड़ी टक्कर देने के लिए 15 दलों के क्षत्रपों ने एकसाथ चलने की रणनीति पर काम करने का निश्चय किया. जानकारी के अनुसार इन पार्टियों के बीच एक सीट पर बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का एक प्रत्याशी देने, गठबंधन के नाम, सीट शेयरिंग के फार्मूले व कॉमन एजेंडा आदि पर चर्चा हुई. उम्मीद थी कि विपक्षी गठबंधन का संयोजक नीतीश कुमार को बनाने की घोषणा की जाएगी, किंतु मल्लिकार्जुन खड़गे ने बैठक के बाद कहा कि अब इस पर निर्णय शिमला में 10 से 12 जुलाई के बीच होने वाली अगली बैठक में लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि शिमला की बैठक में एजेंडा बनाया जाएगा.

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हरेक राज्य में कैसे काम करना होगा, इस पर चर्चा हुई है. हर राज्य के लिए अलग रणनीति तैयार की जाएगी. ममता बनर्जी ने कहा कि इस बैठक में तीन बातों पर सहमति बनी. पहली कि हम सभी एक हैं, दूसरी कि हम सब साथ लड़ेंगे और तीसरी कि हमारी जनता के लिए है. यदि इस बार बीजेपी फिर से सत्ता में आ गई तो अगला चुनाव ही नहीं होगा. वहीं, नीतीश कुमार ने कहा कि इस बैठक में सभी नेताओं ने अपनी-अपनी बात रखी. मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में अगली बैठक होगी. उसमें गठबंधन का नाम, संयोजक व शीट शेयरिंग के फार्मूले जैसी आगे की बातों को तय किया जाएगा.

कांग्रेस के लिए आसान नहीं हैं सीटों का समझौता
कांग्रेस के लिए आसान नहीं हैं सीटों का समझौतातस्वीर: Drew Angerer/AFP/Getty Images

बीजेपी को कहां हो सकता है नुकसान

वन अगेंस्ट वन अर्थात एक के खिलाफ एक. तात्पर्य यह कि बीजेपी के एक उम्मीदवार के खिलाफ पूरे विपक्ष का एक ही प्रत्याशी लड़ेगा. नीतीश कुमार के इस फार्मूले से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. अगर नया समीकरण बना तो 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी समेत एनडीए को करीब 350 सीटों पर कड़ी टक्कर का सामना करना होगा. जिन राज्यों के प्रमुख नेताओं की इस बैठक में भागीदारी रही, उनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, बिहार, झारखंड, पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश व दिल्ली को मिलाकर लोकसभा की कुल 283 सीटें हैं, जबकि कांग्रेस शासित चार राज्यों में 68 सीटें हैं. दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसी स्थिति में इसका सीधा असर 12 राज्यों की करीब 328 सीटों पर पड़ने के आसार हैं.

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वर्तमान में इनमें से 165 पर बीजेपी तथा 128 पर विपक्षी पार्टियों के सांसद हैं. शेष सीटें अन्य दलों के पास हैं, जो इस महागठबंधन का हिस्सा नहीं हैं. विपक्षी एकता की इस बैठक में शामिल हो रहे क्षत्रपों के राज्यों के पास लोकसभा की 90 सीटें हैं. इनमें बिहार में जेडीयू के पास 16, पश्चिम बंगाल में टीएमसी के पास 23, महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट) के पास 18 व एनसीपी के पास चार, तमिलनाडु में डीएमके के पास 23, पंजाब व दिल्ली में आप के पास दो और जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के पास तीन तथा झारखंड में जेएमएम के पास एक सीट है.

बीजेपी के खिलाफ एक उम्मीदवार की रणनीति पर रजामंदी की कोशिश
बीजेपी के खिलाफ एक उम्मीदवार की रणनीति पर रजामंदी की कोशिशतस्वीर: Manjunath KIRAN/AFP

2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक 185 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी का मुकाबला क्षेत्रीय दलों से था. वहीं, देश में 97 सीटें ऐसी हैं, जहां क्षेत्रीय दल ही नंबर एक या नंबर दो पर थे, यानी मुकाबला इन्हीं के बीच था. यहां बीजेपी या कांग्रेस तीसरे या चौथे नंबर पर थी. इनमें 43 सीटों पर विपक्ष काबिज है ही तो इनके एकजुट लड़ने की स्थिति में शेष 54 सीटों पर बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. वहीं, 71 सीटों पर कांग्रेस व क्षेत्रीय दल आमने-सामने थे. जबकि 190 सीटों पर बीजेपी व कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला था. अभी इनमें से 175 पर बीजेपी का कब्जा है.

सबके अपने-अपने दांव, एकजुटता आसान नहीं

राहुल गांधी व ममता बनर्जी ने बैठक में भाग तो ले लिया है, लेकिन सीट बंटवारे के फार्मूले पर दोनों कितने सहमत होंगे, यह कहना मुश्किल है. जिन राज्यों की पार्टियों ने बैठक में हिस्सा लिया है, उनमें से अधिकांश में तो क्षेत्रीय दलों का मुकाबला तो कांग्रेस से ही है. पत्रकार अमित रंजन कहते हैं, ‘‘क्षेत्रीय दलों के अपने-अपने स्वार्थ हैं, उनकी अलग-अलग राजनीति है. किसी अन्य के प्रभुत्व व रणनीति को वे कैसे स्वीकार करेंगे, यह तो आने वाला समय बताएगा. शायद यही वजह थी कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो पहले ही कह दिया था कि सबको कुर्बानी देनी होगी, तभी हम एकजुट हो सकेंगे. किसी का दबदबा नहीं चलेगा.'' 

बैठक के बाद बदले आप के सुर
बैठक के बाद बदले आप के सुरतस्वीर: Narinder Nanu/AFP/Getty Images

जानकार बताते हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखा जाए तो यह साफ है कि अगर वन अगेंस्ट वन का फार्मूला तय होता है तो सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को उठाना होगा. वह करीब पौने दो सौ सीटों पर ही अपने प्रत्याशी खड़े कर पाएगी, जबकि पार्टी बार-बार तीन सौ से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कहती आ रही है. इसमें संशय है कि वह इसके लिए तैयार होगी. एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डॉ डीएम दिवाकर कहते हैं, ‘‘गैर भाजपाई दलों को अहसास हो गया है कि एक-दूसरे से हाथ मिलाए बिना सत्ता परिवर्तन संभव नहीं है. नीतीश कुमार ने एक मंच पर लाकर अपना काम कर दिया है, अब इन पार्टियों पर है कि वे क्या करते हैं और कैसे आगे बढ़ते हैं.''

वहीं सामाजिक विश्लेषक डॉ एनके चौधरी कहते हैं, ‘‘यह एक सकारात्मक संकेत है. क्षेत्रीय दलों के नेताओं की अपनी जमीन है. ये दल आसानी से कांग्रेस के पाले में आने वाले नहीं हैं. यही असली चुनौती होगी.'' वैसे इनकी खटास बैठक के तुरंत बाद सामने आ गई. अरविंद केजरीवाल के दिल्ली पहुंचने के बाद आप पार्टी ने एक बयान जारी कर कहा कि केंद्र द्वारा जारी अध्यादेश पर कांग्रेस अपना रुख साफ करे, नहीं तो उसके साथ किसी बैठक में पार्टी भाग नहीं लेगी. हालांकि, यह बात दीगर है कि कांग्रेस को छोड़ पटना की बैठक में भाग लेने 11 दलों ने इस अध्यादेश का राज्यसभा में विरोध करने का भरोसा दिया है. इन पार्टियों ने कांग्रेस से केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ केजरीवाल का समर्थन करने को कहा है.

बहरहाल इतना तो तय है कि अगर नए सियासी समीकरण ने आकार ले लिया तो एनडीए को 2024 के लोकसभा के चुनाव में कड़ी चुनौती मिलेगी.